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राहु का नशा
राहु क्या है 
राहु एक छाया ग्रह है,जिसे चन्द्रमा का उत्तरी ध्रुव भी कहा जाता है,इस छाया ग्रह के कारण अन्य ग्रहों से आने वाली रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती है,और जिस ग्रह की रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती हैं,उनके अभाव में पृथ्वी पर तरह के उत्पात होने चालू हो जाते है,यह छाया ग्रह चिंता का कारक ग्रह कहा जाता है।
राहु की पूजा 
राहु की पूजा का समय अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में की जाती है,भारत में यह पूजा श्राद्ध-पक्ष के रूप में मान्य है,राहु को पितरों के रूप में माना जाता है,और वैदिक विवेचना के अनुसार इस समय में पृथ्वी पर चन्द्रमा के ऊर्ध्व भाग से सीधी किरणें आती है,और जो भी श्राद्ध पक्ष में पितरों के लिये तर्पण किया जाता है,उसे ग्रहण करती हैं। इसके अलावा दोपहर के दो बजे रोजाना यह किरणें पृथ्वी की तरफ़ आती है,और जो भी दिन रात में पितरों के लिये किया जाता है,वह इन किरणों के माध्यम से चन्द्रमा के ऊर्ध्व भाग में श्रद्धा के रूप में चला जाता है।

राहु का रूप 
राहु को देवी सरस्वती के रूप में जाना जाता है,इसका रंग नीला है,और अनन्त भाव है,यह सूर्य और चन्द्र को भी अपने घेरे में ले लेता है,राहु की सीमा का कोई विस्तार नही है,आसमान में दिखाई देने वाला नीला रंग ही इसके रूप में जाना जाता है,विद्या और ज्ञान के क्षेत्र में राहु की विवेचना इन्फ़ोर्मेशन टेक्नोलोजी और एवियेशन के रूप में जानी जाती है,रिस्तेदारी में राहु को पूर्वज माना जाता है,इसका विस्तार ससुराल खानदान से भी सम्बन्ध रखता है,कालसर्प दोष में राहु के पास वाले ग्रह प्रताणित होते है,और केतु की तरफ़ वाले ग्रह सुरक्षित होते हैं।

राहु नशा देता है,वह जिस भाव का मालिक होता है,उसी भाव का नशा दिमाग में छाने लगता है और धीरे धीरे वह उसी प्रकार के काम करने का नशा दिमाग में इस कदर फैला देता है कि दिमाग अन्य कहीं काम करने का नाम ही नही लेता है। राहु गुरु शनि और केतु जो कुछ भी होते है अपना असर अपने से छोटों पर फ़िर अपने पुत्र पुत्रियों पर और अपने जानकार और जीवन साथी पर साथ ही अपने कुल के ऊपर असर देते है,केवल शनि कुल पर अपना असर इसलिये नही दे पाता क्योंकि जो जैसा करता है वह वैसा फ़ल प्राप्त करता है,कर्म का फ़ल कर्मानुसार ही मिलता है। इन्दौर के एक सज्जन की कुन्डली देखी तो उनके जीवन और उनके द्वारा किये गये सवालों का उत्तर राहु के देखते ही मिलना शुरु हो गया था। उनकी कुन्डली तुला लगन की है,और छठे तथा तीसरे भाव के मालिक गुरु वक्री होकर लगन में विराजमान है,उनके बारहवें भाव में दूसरे और सातवें भाव के स्वामी मंगल विराजमान है,मंगल का साथ भी चौथे और पांचवें भाव के स्वामी शनि के साथ है लेकिन शनि बक्री है,ग्यारहवें भाव में चन्द्रमा विराजमान है,नवें भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु विराजमान है,लगनेश और अष्टमेश शुक्र सप्तम मे विराजमान है,भाग्येश और व्ययेश बक्री होकर अष्टम मृत्यु स्थान में विराजमान है,ग्यारहवें भाव के मालिक सूर्य भी आठवें यानी मृत्यु के भाव में विराजमान हैं।

इस व्यक्ति की जीवनी बहुत ही रहस्यमय और मजेदार है,जथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे कथन के अनुसार यह सभी ग्रह अपने अपने अनुसार जन्म के समय में आसमान में अपनी स्थिति तो दर्शा रहे थे,लेकिन जातक के शरीर में भी इस प्रकार का मेल उन्होने पैदा कर दिया था,लगन का मतलब होता है,शरीर की बनावट और शरीर का तेज नाम और पहिचान,गुरु का लगन में होना साफ़ तौर पर जाहिर करता है कि जातक ज्ञानी है,और छठे तथा तीसरे भाव का मालिक होने का भी मतलब साफ़ है कि वह छुपी हुयी बातों को साफ़ तौर पर जाहिर कर सकता है,लेकिन बक्री होने का मतलब भी साफ़ है कि जातक किसी भी काम को करने के लिये अपने आगे नही अपने पीछे देखता है,यानी जब कोई ग्रह बक्री होता है तो वह अपने से आगे के भाव को नही पीछे के भाव को देखता है,अगर यह गुरु मार्गी होता तो यह काफ़ी खतरनाक था,जैसे कि यह अपने द्वारा प्राप्त किये जाने वाले ज्ञान को प्रकाशित करने के लिये अपने से दूसरे धन भाव को देखता,लेकिन बक्री होने के कारण यह अपने द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले ज्ञान को केवल इसलिये प्रकाशित करता है कि इसे मोक्ष की जरूरत है,बारहवां भाव मोक्ष का कारक है। बक्री गुरु आशिकी का भी एक उदाहरण माना जाता है,लेकिन सप्तम में मंगल के घर में शुक्र यानी पत्नी के आने से यह भटक नही सकता,सप्तम में शुक्र होने से यह जातक अपनी सलाह में अपनी पत्नी को रखेगा,लालकिताब के अनुसार जीवन का राजा लगन है तो सप्तम उस राजा का मंत्री है,और आठवां भाव उस राजा के नेत्र है और ग्यारहवां भाव उसके पैर है,जातक की लगन में गुरु तो राजा है,मंत्री शुक्र है बुध नेत्र है और चन्द्रमा पैर। लालकिताब के अनुसार ही माना जावे तो गुरु जीव है,शुक्र उसकी पत्नी बुध उसकी बहिन बुआ या बेटी,और चन्द्रमा उसकी माता।

व्यक्ति को मोक्ष के लिये यह माना जाता है कि उसके पुत्र संतान नहीं होती है,अगर होती भी है तो वह नालायक होती है,और खुद को संतान पैदा करने के लिये योग्य नही मानती है,अथवा उसकी पत्नी के द्वारा अनैतिक रूप से अवैद्य संतान के रूप में पुत्र को प्राप्त कर लिया जाता है,साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि उसकी पुत्र संतान अपनी औकात अपने से तीन सौ कोश यानी चार सौ पचास किलोमीटर के आगे जाकर बनाती है,लेकिन इस जातक को मोक्ष प्राप्त नही है,कारण गुरु लगन में है,और अगर यह गुरु बारहवें भाव में होता,तो इसे मोक्ष प्राप्त हो सकता था,मोक्ष के स्थान में मंगल शनि (वक्री) के साथ विराजमान है,शनि चौथे और पांचवें भाव का मालिक है,मंगल दूसरे और सातवें भाव का मालिक है,इसकी मृत्यु चौथे,पांचवें,सातवें और दूसरे भाव के कारणों से ही होगी,यह तो निश्चित है,इन कारणों को और भी साफ़ तरीके से देखने के लिये कुंडली को पलट कर देखा जावे तो शुक्र चन्द्र केतु एक तरफ़ और गुरु राहु एक तरफ़ होने से गुरु राहु का युद्ध शुक्र चन्द्र केतु से है।

गुरु जीव है और राहु उसका सिर केतु उसका धड,शुक्र उसकी जननेद्रियां चन्द्र उसके शरीर का पानी,उसकी सोच और उसके जान पहिचान के लोग। शुक्र चन्द्र का मतलब है कि माता के द्वारा प्राप्त किया जाने वाला धन और भौतिक सम्पत्ति,और केतु का मतलब है उसकी रखवाली करना,देखभाल करना,केतु कुत्ता है,तो कुत्ते की भांति उस भौतिक संपत्ति पर नजर रखना। सूर्य पिता भी है और पुत्र भी,पत्नी के भाव से दूसरे भाव में (अष्टम) सूर्य के आने से अपने को पिता की तरह से दिखाना और अपना नाम रोशन करना पत्नी के कुटुंब के अन्दर ही समझ में आता है,पत्नी से नवें भाव में केतु का आना,धर्म पुत्र की तरह से अपनी औकात चलाना,पत्नी के द्वारा जनता के अन्दर अपने को धार्मिक रूप से प्रदर्शित करना,बुध बक्री होने से संतान के रूप में पत्नी की बहिन के पुत्र को संभालना और उसकी ही देखभाल करना,आदि कारण माने जाते है।

जातक के द्वारा जो प्रश्न किया गया है उसका रूप भी मंगल से सम्बन्धित है,उसने पूंछा है कि उसने अपने सीधे हाथ की सूर्य की उंगली में मूंगा पहिन रखा है,गुरु बक्री होकर बारहवें भाव के मंगल को देख रहा है,पूरे तीस अंश का अन्तर है,मंगल का रत्न मूंगा है,मंगल को त्रिकोणात्मक रूप से देखने वाले ग्रह बुध और सूर्य है,सूर्य सोना है और बुध गोल अंगूठी,लेकिन बुध बक्री होने से वह हमेशा नही पहिनी जा सकती है,भाग्येश का बक्री होना और आठवें भाव में बैठना तथा बक्री होकर सूर्य के साथ अपने को समाप्त कर लेना,और असहाय होकर लगातार पत्नी की तरफ़ देखना,पत्नी को सूर्य की चकाचौंध में खुद के भाग्य में केवल इकलौते पुत्र का समझ में आना,आदि बातों से मंगल किसी भी प्रकार से जातक की कुन्डली में दोषी नही है,साथ ही शनि के साथ मंगल के होने से अंगारे को बर्फ़ पर रखने से वह अपना प्रभाव कहां तक दिखा सकता है,अगर पहिनना ही तो बक्री बुध को सम्भालने के लिये रैनबो पहिनना जरूरी है,जो ग्यारहवें चन्द्र की तरह सफ़ेद हो,नवें राहु का नीला प्रकास आठवें सूर्य की रोशनी से प्राप्त करने के बाद बक्री गुरु (गले) में चांदी में पहिना जावे।

राहु के कुप्रभाव से बचने के लिये रत्न धारण करना

राहु के कुप्रभाव से कालान्तर तक बचने के लिये रत्नों को धारण किया जाता है,अलग अलग भावों के राहु के प्रभाव के लिये अलग अलग तरह के रंग के और प्रकृति के रत्न धारण करवाये जाते है,अधिकतर लोग गोमेद को राहु के लिये प्रयोग करवाते है,लेकिन गोमेद एक ही रंग और प्रकृति का हो,यह जरूरी नही होता है,जैसे धन के भाव को राहु खराब कर रहा है,और अक्समात कारण बनने के बाद धन समाप्त हो जाता है,तो खूनी लाल रंग का गोमेद ही काम करेगा,अगर उस जगह पीला या गोमूत्र के रंग का गोमेद पहिन लिया जाता है,तो वह धार्मिक कारणों को करने के लिये और सलाह लेने का मानस ही बनाता रहेगा.
इसके अलावा भी राहु के लिये कई उपाय जीवन में बहुत जरूरी है,इन उपायों के करने से भी राहु अपनी सिफ़्त को कन्ट्रोल में रखता है।

  • राहु का पहला कार्य होता है झूठ बोलना और झूठ बोलकर अपनी ही औकात को बनाये रखना,वह किसी भी गति से अपने वर्चस्व को दूसरों के सामने नीचा नही होना चाहता है। अधिकतर जादूगरों की सिफ़्त में राहु का असर बहुत अधिक होता है,वे पहले अपने शब्दों के जाल में अपनी जादूगरी को देखने वाली जनता को लेते है फ़िर उन्ही शब्दों के जाल के द्वारा जैसे कह कुछ रहे होते है जनता का ध्यान कहीं रखा जाता है और अपनी करतूत को कहीं अंजाम दे रहे होते है,इस प्रकार से वे अपने फ़ैलाये जाल में जनता को फ़ंसा लेते है.
  • राहु का कार्य अपने प्रभाव में लेकर अपना काम करना होता है,सम्मोहन का नाम भी दिया जाता है,जो लोग अपने प्रभाव को फ़ैलाना चाहते है वे अपने सम्मोहन को कई कारणों से फ़ैलाना भी जानते है,जैसे ही सम्मोहन फ़ैल जाता है लोगों का काम अपने अपने अनुसार चलने लगता है। जैसे पुलिस के द्वारा अक्सर शक्ति प्रदर्शन किया जाता है,उस शक्ति प्रदर्शन की भावना में लोगों के अन्दर पुलिस का खौफ़ भरना होता है,यही खौफ़ अपराधी को अपराध करने से रोकता है,यह खौफ़ नाम का सम्मोहन फ़ायदा देने वाला होता है। इसी प्रकार से अपने कार्यालय आफ़िस गाडी घर शरीर को सजाने संवारने के पीछे जो सम्मोहन होता है वह अपने को समाज में बडा प्रदर्शित करने का सम्मोहन होता है,अपने को बडा प्रदर्शित करना भी शो नामका सम्मोहन राहु की श्रेणी में आता है.
  • राहु की जादूगरी से अक्सर लोग अपने को दुर्घटना में भी ले जाते है,जैसे उनके अन्दर किसी अच्छे या बुरे काम को करने का विचार लगातार दिमाग में चल रहा है,अथवा घर या कोई विशेष टेंसन उनके दिमाग में लगातार चल रही है,उस टेंशन के वशीभूत होकर जहां उनको जाना है उस स्थान पर जाने की वजाय अन्य किसी स्थान पर पहुंच जाते है,अक्सर गाडी चलाते वक्त जब इस प्रकार का कारण दिमाग में चलता है तो अक्समात ही अपनी गाडी या वाहन को मोडना या साइड में ले जाना या वचारों की तंद्रा में खो कर चलना दुर्घटना को जन्म देता है,राहु की यह कार्यप्रणाली बहुत ही खतरनाक होती है.
  • राहु अगर कमजोर है तो किसी ग्रह की सहायता से केतु राहु से बचाने का काम करता है,वह वक्त पर या तो ध्यान देता है और या फ़िर किसी के द्वारा इशारा करवा कर आने वाली दुर्घटना को दूर कर देता है.
  • राहु शराब के रूप में शरीर के खून में उत्तेजना देता है,मानसिक गति को भुलाने का काम करता है लेकिन शरीर पर अधिक दबाब आने के कारण शरीर के अन्दरूनी अंग अपना अपना बल समाप्त करने के बाद बेकार हो जाते है,यह राहु अपने कारणों से व्यक्ति की जिन्दगी को समाप्त कर देता है.
  • लाटरी जुआ सट्टा के समय राहु केवल अपने ख्यालों में रखता है और जो अंक या कार्य दिमाग में छाया हुआ है उस विचार को दिमाग से नही निकलने देता है,सौ मे से दस को वह कुछ देता है और नब्बे का नुकसान करता है.
  • ज्योतिष में राहु अपनी चलाने के चक्कर में ग्रह और भावों को गलत बताकर भय देने के बाद पूंछने वाले से धन या औकात को छीनने का कार्य करता है.
  • वैसे राहु की देवी सरस्वती है और अपने समय पर व्यक्ति को सत्यता भी देती है लेकिन सरस्वती और लक्ष्मी में बैर है,जहां सरस्वती होती है वहां लक्ष्मी नही और जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नही.जो लोग दोनो को इकट्ठा करने के चक्कर में होते है वे या तो कुछ समय तक अपने झूठ को चलाकर चुप हो जाते है या फ़िर सरस्वती खुद उन्हे शरीर धन और समाज से दूर कर देती है,अथवा किसी लक्ष्मी के कारण से उन्हे खुद राहु के साये में जैसे जेल या बन्दी गृह में अपना जीवन निकालना पडता है.
  • राहु मंगल गुरु अगर बारहवें भाव में है तो केतु अपने आप छठे भाव में होगा,जातक को समाज में कहा तो जायेगा कि वह बहुत विद्वान है लेकिन छुपे रूप में वह शराब मांस का शौकीन होगा,या फ़िर अस्पताल की नौकरी करता होगा या जेल के अन्दर खाना बनाने का काम करता होगा.
  • धर्म स्थान पर राहु का रूप साफ़ सफ़ाई करने वाले व्यक्ति के रूप में होता है,धन के स्थान में राहु का रूप आई टी फ़ील्ड की सेवाओं के रूप में माना जाता है,जहां असीमित मात्रा की गणना होती है वहां राहु का निवास होता है.