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गर्भाधान
संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है। मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये।
शोध से पता चला है कि ज्योतिष से गर्भाधान के लिये एक निश्चित समय होता है। इस समय में स्त्री पुरुष के सहसवास से गर्भाधान होने के अस्सी प्रतिशत मौके होते है। इन समयों में एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि स्त्री को रजस्वला होने के चौदह दिन तक ही यह समय प्रभावी होता है,उसके बाद का समय संज्ञा हीन हो जाता है,जो व्यक्ति अलावा संतान नही चाहते हों,उनके लिये भी यह समय बहुत ही महत्वपूर्ण इसलिये होता है क्योंकि अगर इस समय को छोड दिया जाये तो गर्भाधान होने की कोई गुंजायश नही रहती है। यह समय सामान्य रूप से लिखा जा रहा है,लेकिन अपनी जन्म तिथि के अनुसार बिलकुल सही समय को जानने के लिये आप सम्पर्क कर सकते है।
समयानुसार प्रत्येक जन्म पत्री के द्वारा जिसके अन्दर सही समय और स्थान का नाम होना जरूरी है,से जन्म समय को निकालने के लिये आप सम्पर्क कर सकते है। दो साल का समय निकालने की फ़ीस मात्र Rs.2100/- है.सम्पर्क करने के लिये padam.dhiman786@gmail.com पर सम्पर्क करें.
ईश्वर ने जन्म चार पुरुषार्थों को पूरा करने के लिये दिया है। पहला पुरुषार्थ धर्म नामका पुरुषार्थ है,इस पुरुषार्थ का मतलब पूजा पाठ और ध्यान समाधि से कदापि नही मानना चाहिये। शरीर से सम्बन्धित जितने भी कार्य है वे सभी इस पुरुषार्थ में शामिल है। शरीर को बनाना ताकत देना रोग आदि से दूर रहना अपने नाम को दूर दूर तक प्रसिद्ध करना,अपने कुल समाज की मर्यादा के लिये प्रयत्न करना,अपने से बडे लोगों का मान सम्मान और व्यवहार सही रखना आदि बातें मानी जाती है। इसके बाद माता पिता का सम्मान उनके द्वारा दिये गये जन्म का सही रूप समझना अपने को स्वतंत्र रखकर किसी अनैतिक काम को नही करना जिससे कि उनकी मर्यादा को दाग लगे आदि बातें इस धर्म नाम के पुरुषार्थ में आती है शरीर के बाद बुद्धि को विकसित करने के लिये शिक्षा को प्राप्त करना,धन कमाने के साधनों को तैयार करना और धन कमाकर जीवन को सही गति से चलाना,उसके बाद जो भी भाग्य बढाने वाली पूजा पाठ रत्न आदि धारण करना आदि माना जाता है। इस पुरुषार्थ के बाद अर्थ नामका पुरुषार्थ आता है इसके अन्दर अपने पिता और परिवार से मिली जायदाद को बढाना उसमे नये नये तरीकों से विकसित करना,उस जायदाद को संभालना किसी प्रकार से उस जायदाद को घटने नही देना,जायदाद अगर चल है तो उसे बढाने के प्रयत्न करना,रोजाना के कार्यों को करने के बाद अर्थ को सम्भालना अगर कोई कार्य पीछे से नही मिला है तो अपने बाहुबल से कार्यों को करना नौकरी पेशा और साधनो को खोजना जमा पूंजी का सही निस्तारण करना जो खर्च किया गया है उसे दुबारा से प्राप्त करने के लिये प्रयोग करना,खर्च करने से पहले सोचना कि जो खर्च किया जा रहा है उसकी एवज में कुछ वापस भी आयेगा या जो खर्च किया है वह मिट्टी हो जायेगा,फ़िर रोजाना के कामों के अन्दर लगातार इनकम आने के साधनो को बनाना और उन साधनों के अन्दर विद्या और धन के साथ अपनी बुद्धि का प्रयोग करना और लगातार इनकम को लेकर अपने परिवार की उन जरूरतों को पूरा करना जो हमेशा के लिये भलाई दें,अर्थ नामके पुरुषार्थ के बाद काम नामका पुरुषार्थ आता है,पुरुष के लिये स्त्री और स्त्री के लिये पुरुष का होना एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करने के लिये माना जाता है,जिस प्रकार से आपके माता पिता ने संतान की इच्छा करने के बाद आपके शरीर को उत्पन किया है उसी प्रकार से अपनी इच्छा करने के बाद नये शरीरों को उत्पन्न करना पितृ ऋण को उतारना भी कहा जाता है। संतान की इच्छा करने के बाद ही सहसवास करना,कारण जो अन्न या भोजन किया जाता है वह चालीस दिन की खुराक सही रूप से खाने के बाद एक बूंद वीर्य या रज का निर्माण करता है,अगर व्यक्ति अपनी कामेच्छा से या किसी आलतू फ़ालतू कारणों में जाकर प्यार मोहब्बत के नाम पर या स्त्री भोग या पुरुष भोग की इच्छा से अपने वीर्य या रज को समाप्त कर लेता है तो शरीर में कोई नया कारण वीर्य और रज जो उत्पन्न करने के लिये नही बनता है.शरीर के सूर्य को समाप्त कर लेने के बाद शरीर चेतना शून्य हो जाता है,शराब कबाब आदिके प्रयोग के बाद जो उत्तेजना आती है और उस उत्तेजना के बाद संभोग में रुचि ली जाती है वह शरीर में विभिन्न बीमारियों को पैदा करने के लिये काफ़ी माना जाता है।
भारत में भोजन के रूप में चावल और गेंहूं को अधिक मात्रा में खाया जाता है,चावल को खाने के बाद शरीर में कामोत्तेजना पुरुषों के अन्दर अधिक बढती है और गेंहूं को खाने के बाद स्त्रियों में कामोत्तेजना अधिक बढती है,लेकिन वीर्य को बधाने के लिये ज्वार पुरुषों के लिये और मैथी रज बढाने के लिये स्त्रियों में अधिक प्रभाव युक्त होती है.प्रकृति ने जो अनाजों का निर्माण किया है उनके अन्दर जो तस्वीर बनाई है वह भी समझने के लिये काफ़ी है,जैसे चने के अन्दर पुरुष जननेन्द्रिय का रूप स्पष्ट दिखाई देता है,इसे खाने से पुरुष की जननेन्द्रिय की वृद्धि और नितम्बों का विकास स्त्री जातकों में होता है। गेंहूं को अगर देखा जाये तो स्त्री जननेन्द्रिय का निशान प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलता है,सरसों के अन्दर खून के रवों का निशान पाया जाता है,मूंग के अन्दर खून की चलित कणिकाओं का रूप देखने को मिलता है आदि विचार सोच कर भोजन को करना चाहिये.
मानसिक चिन्ता से शरीर की गति बेकार हो जाती है,नींद और भोजन का कोई समय नही रह पाता है,नींद नही आने से और भोजन को सही समय पर नही लेने से शरीर की रक्त वाहिनी शिरायें अपना कार्य सुचारु रूप से नही कर पाती है,दिमागी प्रेसर अधिक होने से मानसिक भावना सेक्स की तरफ़ नही जा पाती है,स्त्री और पुरुष दोनो के मामले में यह बात समान रूप से लागू होती है। खुशी का वारावरण भी सन्तान की प्राप्ति के लिये जरूरी है,माहौल के अनुसार ही संभोग करने के बाद जो संतान पैदा होता है,वह उसी प्रकार की संतान के लिये मानी जाती है,जैसा माहौल संभोग के समय में था।