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Rameshwaram
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जयपुर एयरपोर्ट पर चैन्नई जाने के लिये प्लेन का इन्तजार करते हुये।

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 जयपुर एयर पोर्ट पर।

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इन्डिगो कम्पनी के हवाई जहाज में जयपुर से प्रवेश करते हुये।

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प्लेन में बैठ

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  • प्लेन के ऊपर से आसमान का द्र्श्य,बादलों के ऊपर।
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  • चैन्नई एग्मोर स्टेशन पर रामेश्वरम जाने वाली गाडी का इन्तजार करते हुये।
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  • रामेश्वरम में अग्नि तीर्थ में पितृ अर्पण और स्नान करते हुये।
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  •  सूर्य नमस्कार करते हुये।
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  •  सूर्य नमस्कार करते हुये।
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  • समुद्र देवता को पितृ तर्पण देते हुये,इसके द्वारा पुराने किये गये कार्यों और लोगों के प्रति सोची जाने वाली धारणायें पूरी होती है,तथा लोक कल्याण के प्रति सोचे गये कार्य भी सफ़ल होते है,केवल जो लोग दुखी होते है,उनके नाम और उनके गोत्र आदि का नाम लेना बहुत जरूरी होता है।
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  • बांगड धर्मशाला जहां पर हम सब रुके थे,अच्छी सुविधा वाली धर्मशाला है,लेकिन स्टाफ़ की मर्जी है उसे किसी को रखना है या नही,एक बिहारी कर्मचारी है,जो हमेशा किसी न किसी प्रकार से कमाने की ही फ़िराक में रहता है।
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  • रामेश्वरम मंदिर के दक्षिणी द्वार पर बनी माहेश्वरी धर्मशाला,केवल ट्रस्ट वालों की पहिचान ही काम करती है।
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  • रामेश्वरम मंदिर की गौसाला, गायें कम और पत्थर अधिक है,कमजोर गायों को देखकर मन दुखी हुआ,साथ ही गायों की नाक में नकेल देखकर और भी दुख हुआ।
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  • दक्षिणी दरवाने के ऊपर नवग्रहों के साथ राशियों और नक्षत्रों का चित्रण,इसके नीचे से सभी श्रद्धालुओं के निकलने से ग्रह बाधा में फ़ायदा मिलता है।
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  • भोले नाथ के मंदिर में मानसिक प्रार्थना भी बहुत काम करती है,उनसे परेशानियों के लिये अगर प्रार्थना की जावे तो वे जरूर दूर करते है।
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  • उत्तरी दरवाजे पर स्थापित गणेशजी जिनके साथ ऋद्धि सिद्धि विराजमान है,ऋद्धि लाल कपडों में और सिद्धि सफ़ेद कपडों में गणेशजी के साथ है।
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  • मन्दिर में स्थापित १०८ शिवलिंगों के साथ जललहरियों में कामरूप शिव और शक्ति का अलग अलग विवेचन समझाया गया है,जिनके अन्दर जिस प्रकार से स्त्रियों को मासिक धर्म होता है,उसी प्रकार से प्राकृतिक रूप से महिने में एक बार जल लहरियों से रक्त जैसा पदार्थ बहता है,लेकिन हर समय उपस्थित नहीं मिलता है।
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  • इन दोनो शिवलिंगों के साथ हस्तिनी और म्रुगिनी नामकी योनियों के साथ शिवलिंग स्थापित है,दोनो एक साथ ही महिने में मासिक धर्म जैसा पदार्थ छोडती है।
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  • कामिनी और वंशिनी जल लहरियां चौकोर सतह पर स्थापित की जाती है,उनका रूपण बन्द प्राचीर वाले स्थानों में ही स्थापित किया जाता है,इनके अन्दर वायु और सफ़ेद रंग के रूप में मसिक धर्म होता है।
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  • गोल सतह पर जल लहरियां और शिव लिंग का स्थापन तथा सतह से मिले हुये और सतह से ऊंचे शिवलिंगो के प्रति धारणा है कि वे उच्च और निम्न कुल तथा गोत्रीय और विजातीय काम सम्बन्धों से किस प्रकार से प्रकृति परिवार को उत्पन्न करने में सहायक होती है,तथा परिवार को आगे बढाने और परिवार को बरबाद करने के प्रति किस प्रकार से शिव और शक्ति का प्रकार बनता है,इन दोनों शिवलिंगो से समझा जा सकता है।
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  • धन की चाहत रखने वाले और शक्ति को प्रदर्शन करने वाले संसारी मानवों का रूप शिव और शक्ति के रूप में इन दोनो शिवलिंगो और जल लहरियों में प्रदर्शित किया गया है,जिस प्रकार से जमीन को ऊपर ऊपर से ही जोता जाये और बीज का रोपण किया जाये तो वह या तो उगता नही है,और उगता भी है तो अधिक समय तक टिकता नही,इन दोनो शिव लिंगों और जल लहरियों में बताया गया है,इस प्रकार से एक सौ आठ शिव लिंगो में आप जाकर देख सकते है,बात सिर्फ़ दर्शन करने की नही,समझने की भी है,आप अपने रूप और अपनी शक्ति अपनी पत्नी के रूप से समझ सकते है।
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  • गज लक्ष्मी के नीचे स्थापित गणेशजी जो धन की चाहत रखने वाले व्यक्तियों की मनोकामना पूरी करते है,लगभग तीन हजार साल पुरानी मूर्ति को देखकर यह नही लगता है कि मूर्ति कहीं से भी खराब है।
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  • मन्दिर के भूपुर में तीन परिक्रमा है,उनके अन्दर देवी देवताओं के और प्राचीन राजाओं के चित्रण मूर्तियों के रूप में बताया गया है,प्राचीन काल से मान्याताओं में धारणा स्थापित होने से मनुष्य की प्रकृति का सजीव चित्रण अलग अलग रूपों में किया गया है।
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  • भगवान दत्तात्रेय को भी मन्दिर में स्थान दिया गया है,जिन्हे शिव रूप में ही जाना जाता है।
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  • माता पार्वती के मुख्य दरवाजे का द्र्शय मन्दिर को आज के मनुष्यों ने पूरी तरह से छुपाकर रखा है,किसी प्रकार की फ़ोटो लेना मना है।
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  • एक पदीय महाराज नटराज की प्रतिमा का चित्रण मनोहारी है लेकिन मंदिर के कार्यकर्ता ही अपनी अपनी गाडियों और वाहनों को उनके नीचे खडा करते है।
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  • पूर्वी भाग वाले मन्दिर के हिस्से को चटाइयों से पूरी तरह से ढक दिया गया है,जब वार्षिक रूप से सफ़ाई और रंग आदि होता है तो इसी प्रकार से पूरे मंदिर को ढक दिया जाता है।
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  • पूर्वी भाग वाले दरवाजे का द्र्श्य जो अग्नि तीर्थ से आने के बाद प्रवेश द्वार है।
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  • पश्चिमी दरवाजे का द्र्श्य,दक्षिण भारत की भवन निर्माण शैली को बहुत ही खूबशूरती से बनाया गया है,पश्चिम दिशा में पूज्य सभी धर्मों के देवताओं का चित्रण बहुत ही खूबसूरती से किया गया है।