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तलिस्मान का मतलब होता है भाग्यवर्धक वस्तुयें। जिस प्रकार से प्रकृति ने बीमारियां प्रदान की है,उसी प्रकार से प्रकृति ने बीमारियों के निवारण के लिये दवाइयां भी प्रदान की हैं। उसी प्रकार से प्रकृति ने दुर्भाग्य पैदा किया है तो सौभाग्य को देने के लिये संसार में वस्तुयें और जीवों की भी रचना की है। बीमारियों का पता जैसे एक डाक्टर अपनी विद्या के अनुसार लगा लिया करता है उसी प्रकार से दुर्भाग्य का पता एक ज्योतिषी अपनी विद्या के द्वारा पता कर लेता है,डाक्टर को सांइस ने भौतिक द्रष्टा होने के कारण डिग्री दी है लेकिन ज्योतिष को भौतिक द्र्ष्टा नही होने के कारण डिग्री नही दी है,ज्योतिष का ज्ञान केवल व्यवहारिक ज्ञान होता है,जिस प्रकार से मनुष्य ने अपनी प्रकृति को प्राचीन काल से लेकर आज तक के समय में बदल लिया है,उसी प्रकार से ज्योतिष ने अपना रूप भी मनुष्य के अनुसार बदल लिया है।
रुद्राक्ष के बारे में पौराणिक कथन मिलता है,एक बार स्कन्दजी ने शिवजी से पूंछा-हे! देव महान गुण सम्पन्न रुद्राक्ष का निर्माण कैसे हुआ,रुद्राक्ष के कितने मुख होते है,और उनकी धारण विधि क्या है,साथ ही उनके मंत्रों के वारे में भी ज्ञान की आकंक्षा है।
भगवान शंकर ने कहा - हे! स्कन्द प्राचीन काल में त्रिपुर नामक एक अजेय राक्षस दैत्य था,ब्रह्मा विष्णु तथा इन्द्रादि देवता उससे पराजित होकर मेरे पास आये और त्रिपुर को मारने की प्रार्थना की, तब जिसे देखने का कोई सामर्थ्य न कर सके ऐसा कालाग्नि नाम का अघोर शस्त्र मैने धारण किया। उस शस्त्र को देखने मात्र से देवताओं की आंखें एक हजार साल तक उन्मीलन करती रहीं। तेज प्रकाश की व्याकुलता से उनकी आंखों से जो आंसू गिरे,उनसे मनुष्यलोक में आरोग्यदायी रुद्राक्ष वृक्ष का निर्माण हुआ। इसकी माला पहिनने से जप और जाप्य से भी करोडों गुना फ़ायदा होता है। साथ ही हाथ कान मस्तक तथा गले में सच्चा रुद्राक्ष धारण करने से अत्यन्त दुर्लभ मृत्युंजय पद मिलता है। हे ! महाभाग,रुद्राक्ष धारण करने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। स्कन्द ने प्रश्न किया- हे ! भगवान,रुद्राक्ष में जो एक मुख से लेकर चौदह मुख तक के प्रकार है,उनके गुणों का वर्णन क्रमश: कीजिये। भगवान शंकर ने कहा- हे ! स्कन्द इन सभी रुद्राक्षों का विवरण सुनो।
एक मुख वाले रुद्राक्ष को सोमवार के दिन प्रात: काल यथाविधि न्यासादि करके ** ऊँ एं हं औं ऐं ऊँ ** मन्त्र का १०८ बार जाप करके धारण करना चाहिये। कभी एक मुखी रुद्राक्ष में बीच में छेद करके नही धारण करना चाहिये,अन्यथा उसकी आन्तरिक शक्तियों का विनाश हो जाता है,और वह रुद्राक्ष अच्छे फ़ल की जगह खराब फ़ल देना शुरु कर देता है। इसे स्वर्ण धातु से मडित करवाकर ही धारण करना चाहिये,तथा शराब मांस के सेवन तथा स्त्री पुरुष के साथ रति के समय पूजा स्थान में रख देना चाहिये। और शुद्ध होकर ही धारण करना चाहिये,लेकिन जब भी उतार कर धारण करे,तो उपरोक्त मंत्र का जाप जरूर करना चाहिये। होली दिवाली और दसहरा तथा ग्रहण के दिन इसे गंगाजल से या किसी साफ़ दरिया के पानी से धोकर साफ़ कर लेना चाहिये,अगर नही मिले तो पहले से एकत्रित वर्षा जल से धोना चाहिये,फ़िर मंत्र को उच्चारण के बाद धारण करना चाहिये। वैश्यागामी पुरुष या परपुरुषगामी स्त्री इस रुद्राक्ष को धारण करने के बाद कोढी हो जाता है।
एक मुखी रुद्राक्ष शिव स्वरूप हो जाता है,इसके धारण करने से ब्रह्महत्या जैसे पाप भी दूर हो सकते है,लेकिन धारण करने के बाद किसी भी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिये,अन्यथा यह तुरत ही विपरीत फ़ल प्रदान करता है। इसके धारण करने के बाद माता पार्वती का आशीर्वाद साथ रहता है,प्राणी हमेशा लक्ष्मी से पूर्ण रहता है। लगातार उपरोक्त मंत्र को प्रतिदिन जाप करते रहने से किसी प्रकार की बाधा शरीर या निवास में प्रवेश नही कर सकती है।
गाय के दूध में इस रुद्राक्ष को धोकर बीमार व्यक्ति को पिलाते रहने से और बीमार व्यक्ति के द्वार उपरोक्त मंत्र का जाप करते रहने से भयानक से भयानक बीमारियां भी दूर हो जाती है। इस रुद्राक्ष का सुबह को जगते ही दर्शन और स्पर्श करने से पूरा दिन सुखमय बीतता है,भयानक स्थान में जाते वक्त इसे धारण करने से डर नही लगता है।
इस रुद्राक्ष की दक्षिणा मात्र ३१००/- रुपया है,कोरियर का भेजने का खर्चा अलग से है,यह मेष और तुला राशि वालों को धन,वृष और वृश्चिक राशि वालों को मान सम्मान,मिथुन और धनु राशि वालों को समाज में जगह,कर्क और मकर राशि वालों को अचल सम्पत्ति,सिंह और कुम्भ राशि वालों को विदेश यात्रा तथा आराम वाले साधन प्रदान करवाता है।
दो मुख वाले रुद्राक्ष को भी सोमवार या पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के समय गाय के दूध में धोकर और पहले से चांदी के पत्र में मढवाकर चांदी की चैन में धारण करना चाहिये,लेकिन शिवरात्रि को इसका बील पत्र और दूध से अभिषेक जरूर करना चाहिये,धारण करने के समय इस मंत्र का १०८ बार जाप करना चाहिये,और प्रतिदिन सुबह को इसके दर्शन करने चाहिये। मंत्र है ** ऊँ ह्रीं क्षौं व्रीं ऊँ ** । इस रुद्राक्ष का दूसरा नाम "देव-देव" है,यह धन धान्य से पूर्ण करने के बाद दिमाग को शांत करता है,जिनकी कुण्ड्ली में राहु केतु से कालसर्प दोष बनता है,अथवा चन्द्र-राहु की आपसी युति होती है,अथवा शनि राहु बारहवें भाव का असर देखर जेल जाने जैसी स्थितियां पैदा करते है उन्हे धारण करना चाहिये। जिनका चन्द्रमा बारहवां हो उन्हे किसी भी तरह से इस रुद्राक्ष को नही पहिनना चाहिये,अन्यथा चलता हुआ दिमाग व्यक्ति को घर से बाहर कर सकता है।
इस रुद्राक्ष की दक्षिणा मात्र ११००/- रुपया है,कोरियर से भेजने का खर्चा अलग है। यह रुद्राक्ष मेष राशि के लिये सुख और भवन,वृष राशि के लिये राजकीय सम्मान और औलाद का सुख,मेथुन राशि के लिये कार्य और कर्जा दुश्मनी बीमारी में राहत,कर्क राशि वालों के लिये व्यवसाय पति या पत्नी के सुख में वृद्धि,सिंह राशि वालों के लिये अजीव कारणों से धन तथा साहस की बढोत्तरी कन्या राशि वालों के लिये भाग्य और धर्म की बढोत्तरी से फ़ायदा,तुला राशि वालों के लिये कैरियर और सरकारी कारणों में फ़ायदा,वृश्चिक राशि वालों के लिये अचल सम्पत्ति में बढोत्तरी और मित्रों से फ़ायदा धनु राशि वालों के लिये विदेश जाने तथा उच्च शिक्षा के लिये योग्यता मकर रासि वालों के लिये व्यक्तियों के प्रति विश्वास राजनैतिक फ़ायदा तथा शरीर में साहस और बल की वृद्धि कुम्भ राशि वालों के लिये धन का फ़ायदा,मीन राशि वालों के लिये पराक्रम में फ़ायदा सिनेमा नाटक मीडिया में प्रवेश दिलवाने में सहायता करता है।
तीन मुख वाले रुद्राक्ष को भी सोमवार के दिन यथाविधि ** ऊँ रं ह्रैं ह्रीं ह्रुं ऊँ ** मन्त्र का जाप १०८ बार जाप करने के बाद पहिनना चाहिये। इस रुद्राक्ष के पहिनने के बाद अपनी स्त्री या अपने पति को कभी दुर्वचन नहीं कहने चाहिये। इसे पहिनने के बाद भूख बहुत लगती है,मीठा खाने का बहुत मन करता है,मैथुन की बहुत इच्छा होती है,इन सब पर कन्ट्रोल करके चलना चाहिये। अग्नि रूपी यह रुद्राक्ष इन्जीनियर वाले कामों के अन्दर व्याप्त पुरुषों और महिलाओं को धारण करने से आशातीत सफ़लता मिलती है। अगर किसी प्रकार से भी इसका गलत उपयोग जैसे कमान्धता और ऐशो आराम में मन लगाकर निरीह लोगों को सताया गया तो यह रुद्राक्ष लकवा जैसी बीमारियां भी देता है। अपने पराक्रम को बढाने के लिये इस त्रिमुखी रुद्राक्ष का पहिनना जरूरी होता है।
इस रुद्राक्ष की दक्षिणा २७००/- रुपया है,तथा कोरियर से भेजने के लिये खर्चा अलग से है। मेष राशि वालों के लिये यह खूबशूरती में बढोत्तरी करता है,वृष राशियों के लिये घर मकान और ऐशो आराम के साधन जुटाने में सहायता करता है,मिथुन राशि के लिये राजनीतिक में सफ़लता देता है,परीक्षा परिणाम के लिये फ़ायदा देता है,कर्क राशि वालों के लिये कर्जा दुश्मनी और बीमारी में राहत देता है,सिंह राशि वालों के लिये व्यवसाय और साझेदारी के कामों में सफ़लता देता है,विदेश से व्यवसाय करने और आयात निर्यात वाले काम करने में फ़ायदा देता है,कन्या राशि के लिये पारिवारिक रिस्तों के अन्दर सामजस्यता देता है,तुला राशि वालों के लिये धर्म और भाग्य वाले कामों के अन्दर मन लगाता है,तथा भाग्य को बढाकर दुर्भाग्य को दूर करता है। वृश्चिक राशि वालों के लिये कैरियर और राजनीतिक क्षेत्र में तथा पिता से सम्बन्ध बनाने में सहायता करता है। धनु राशि वालों के लिये अचल सम्पत्ति का प्रदाता और कमन्यूकेशन के कामों के अन्दर फ़ायदा देता है,मकर राशि वाले इस रुद्राक्ष से यात्रा और विदेश से फ़ायदा वाले काम तथा टूर आदि के कामों में फ़ायदा ले सकते है। कुम्भ राशि वाले अपनी सेहत और बीमारियों में फ़ायदा ले सकते है,मीन राशि वालों के लिये धन और भौतिक सम्पत्ति में फ़ायदा देने वाला यह रुद्राक्ष कामयाब है।
चौमुखी रुद्राक्ष को सोमवार के दिन विधि पूर्वक प्रात:काल मन्त्र "ऊँ वां क्रां त्तां ह्रां ह्रं" एक प्रहर जाप करके गले में धारण करे,यदि इच्छा हो तो पाकिट में रखे,प्रतिदिन एक माला का जाप जरूर करना चाहिये,चार मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात ब्रह्मा का रूप होता है,इसे धारण करने वाला वेद शास्त्र ज्ञाता सबका प्रिय तथा धन सम्पन्न होता है,किसी प्रकार की कमी उसके परिवार में नही रहती है,इससे हत्या जैसे पातक परेशान नहीं करते है,ऐसा वेदों में बखान मिलता है,आंखों में तेज वाणी में मिठास शरीर से स्वस्थ तथा दूसरों को आकर्षित करने का गुण उसमे आ जाता है।
चौमुखी रुद्राक्ष की दक्षिणा मात्र २७००/- रुपया है,कोरियर से भेजने का खर्चा अलग से है। यह मेष राशि को सात्विक गुण से पूर्ण करता है,वृष राशि को राजसिक गुण देता है,मिथुन राशि को तामसिक गुण देता है,तथा कर्क राशि को सात्विक गुण देता है,इसी प्रकार क्रम से प्रत्येक राशि को यह अपना प्रभाव देता है। चूंकि यह पुरुष तत्व प्रधान रुद्राक्ष है,इसलिये महिला जातकों को धारण करने के बाद यह स्त्री गुणों से दूर करने लगता है,इस रुद्राक्ष का जो मंत्र है,उसके अन्दर अक्षर "वां" खाने पीने और मदिरा आदि तथा मैथुन की बढोत्तरी करता है,"क्रां" अक्षर खून के अन्दर तेज देता है,और शरीर को तुरत गर्म करने के लिये जाना जाता है,"त्तां" अक्षर फ़ैशन और शरीर की सजावट से सम्बन्ध रखता है,"ह्रां" अक्षर माया और धन को प्रदान करने वाला है,"ह्रं" अक्षर एकाधिपति बनाने के लिये अग्रसर करता है। लेकिन इन बीज मन्त्रों को चलते फ़िरते नहीं जपना चाहिये।
इस रुद्राक्ष को सोमवार के दिन प्रात:काल काले धागे के अन्दर गूंथकर यथाविधि धारण करे,और मन्त्र "ऊँ ह्रां क्रां वां ह्रां" या "ऊँ ह्रीं नम" का एक प्रहर जाप करना चाहिये,रोजाना एक माला का जाप करना जरूरी है। यह रुद्राक्ष कालाग्नि नाम से जाना जाता है,सभी रुद्राक्षों में शुभ तथा पुण्यदायी माना जाता है,इसे धारण करने से वैभव संपन्नता सुख शांति प्राप्त होती है। इसको धारण करने के बाद मांस मदिरा और अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करने के बाद उत्पन्न विकारों का शमन होता है।
इस रुद्राक्ष की दक्षिणा मात्र ५०/- रुपया है,और कोरियर से भेजने का खर्चा अलग से है। इस रुद्राक्ष को कोई भी धारण कर सकता है,बुरी आदतों वालों को जरूर इसे धारण करना चाहिये।
मन्त्र है "ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं सौं ऐं" मन्त्र का जाप सोमवार को पहिनकर करना चाहिये।
सात मुखी | ऊँ ह्रं क्रीं ह्रीं सौं | एक प्रहर जाप |
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आठ मुखी | ऊँ ह्रां ग्रीं लं आं श्रीं | एक प्रहर जाप |
नौ मुखी | ऊँ ह्रीं वं यं रं लं | एक प्रहर जाप |
दस मुखी | ऊँ श्रीं ह्ल्रीं क्लीं व्रीं ऊँ | सत्रह हजार जाप |
११ मुखी | ऊँ रूं मूं औं | एक प्रहर जाप |
१२ मुखी | ऊँ ह्रीं क्षौं घृणि: श्रीं नम: | एक प्रहर जाप |
१३ मुखी | ऊँ ईं यां आप औं | एक प्रहर जाप |
१४ मुखी | ऊँ हं स्फ़्रैं ख्व्फ़्रैं हस्त्रौं हसव्फ़्रैं | एक प्रहर जाप |