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तीनों उत्तरा रोहिणी हस्त अशिवनी पुष्य अभिजित मृगसिरा रेवती चित्रा अनुराधा श्रवण धनिष्ठा मूल मघा और स्वाति ये सभी नक्षत्र चतुर्थी नवमी और चतुर्दशी ये सभी तिथियां तथा मंगलवार रविवार और बुधवार इन वारों को छोड कर अन्य सभी नक्षत्र तिथि तथा वार में नववधू का घर मे प्रवेश शुभ होता है।
ज्येष्ठा अनुराधा हस्त रोहिणी स्वाति धनिष्ठा मृगसिरा और उत्तरा इन नक्षत्रों मे शुभ वार एवं शुभ तिथियों में रजस्वला स्त्री को स्नान करना शुभ है। वैसे तो यह नियम प्रतिमास के लिये शुभ तथापि प्रत्येक मास रजस्वला होने वाली स्त्री जातकों को प्रतिपालन संभव नही हो सकता है,अत: प्रथम बार रजस्वला होने वाली स्त्री को के लिये ही इस नियम का पालन करना उचित समझना चाहिये।
नव वधू के साथ प्रथम सहसवास गर्भाधान के नक्षत्रों ( मृगशिरा अनुराधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा स्वाति धनिष्ठा और शतभिषा) में चन्द्र शुद्धि एवं रात्रि के समय करना चाहिये।
जिस स्त्री को जिस दिन मासिक धर्म हो,उससे चार रात्रि पश्चात सम रात्रि में जबकि शुभ ग्रह केन्द्र (१,४,७,१०) तथा त्रिकोण (१,५,९) में हों,तथा पाप ग्रह (३,६,११) में हों ऐसी लग्न में पुरुष को पुत्र प्राप्ति के लिये अपनी स्त्री के साथ संगम करना चाहिये। मृगशिरा अनुराधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा स्वाति धनिष्ठा और शतभिषा इन नक्षत्रों में षष्ठी को छोड कर अन्य तिथियों में तथा दिनों में गर्भाधान करना चाहिये,भूल कर भी शनिवार मंगलवार गुरुवार को पुत्र प्राप्ति के लिये संगम नही करना चाहिये।
आर्द्रा पुनर्वसु पुष्य पूर्वाभाद्रपदा उत्तराभाद्रपदा हस्त मृगशिरा श्रवण रेवती और मूल इन नक्षत्रों में रवि मंगल तथा गुरु इन वारों में रिक्त तिथि के अतिरिक्त अन्य तिथियों में कन्या मीन धनु तथा स्थिर लगनों में (२,५,८,११) एवं गर्भाधान से पहले दूसरे अथवा तीसरे मास में पुंसवन कर्म तथा आठवें मास में सीमान्त कर्म शुभ होता है। रवि गुरु तथा मंगलवार तथा हस्त मूल पुष्य श्रवण पुनर्वसु और मृगशिरा इन नक्षत्रों मेम पुंसवन संस्कार शुभ भी माना जाता है,षष्ठी द्वादसी अष्टमी तिथियां त्याज्य हैं। सीमान्त कर्म देश काल और परिस्थिति के अनुसार छठे अथवा आठवें महिने में करना भी शुभ रहता है। पुंसवन के लिये लिखे गये शुभ नक्षत्र ही सीमान्त के लिये शुभ माने जाते है।
हस्त अश्विनी तीनों उत्तरा रोहिणी मृगशिरा अनुराधा स्वाति और रेवती ये सभी नक्षत्र तथा गुरु रवि और मंगल ये दिन प्रसूता स्नान के लिये शुभ माने जाते हैं। द्वादसी छठ और अष्टमी तिथियां त्याज्य हैं।
बालक का जात कर्म पूर्वोक्त पुंसवन के लिये वर्णित नक्षत्र और तिथियों के अनुसार ही माना जाता है। शुभ दिन जन्म से ग्यारहवां बारहवां ,मृदु संज्ञक नक्षत्र मृगशिरा रेवती चित्रा अनुराधा तथा ध्रुव संज्ञक नक्षत्र तीनो उत्तरा और रोहिणी क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र हस्त अश्विनी पुष्य और अभिजित तथा चर संज्ञक नक्षत्र स्वाति पुनर्वसु श्रवण धनिष्ठा और शतभिषा शुभ होते हैं।
पुनर्वसु पुष्य हस्त चित्रा स्वाति अनुराधा ज्येष्ठा मृगशिरा मूल तीनो उत्तरा तथा धनिष्ठा इन नक्षत्रों में जन्म से ग्यारहवें बारहवें दिन शुभ योग बुध सोम रवि तथा गुरु को इन दिनों स्थिर लग्नों में बालक का नामकरण शुभ होता है।
मूल पुनर्वसु पुष्य श्रवण मृगशिरा और हस्त इन नक्षत्रों में तथा शुक्र शनि और मंगलवार इन दिनों के अतिरिक्त अन्य वारों में प्रसूता को कूप और जल पूजन करना चाहिये।
तीनो पूर्वा आश्लेषा आर्द्रा शभिषा तथा भरणी इन नक्षत्रों को छोड कर अन्य नक्षत्र शनि तथा मंगल को छोडकर अन्य वार द्वादसी सप्तमी रिक्ता पर्व तथा नन्दा संज्ञक तिथियों को छोडकर अन्य तिथियां मीन वृष कन्या तथा मिथुन लग्न शुक्ल पक्ष शुभ योग तथा शुभ चन्द्रमा में जन्म मास से सम मास छठे अथवा आठवें महिने में बालक का तथा विषम मास में बालिका का प्रथम वार अन्न प्रासन (अन्न खिलाना) शुभ माना जाता है।
पुनर्वसु पुष्य ज्येष्ठा मृगशिरा श्रवण धनिष्ठा हस्त चित्रा स्वाति और रेवती इन नक्षत्रों में शुक्ल पक्ष उत्तरायण में सूर्य,वृष कन्या धनु कुम्भ मकर तथा मिथुन लगनों में शुभ ग्रह के दिन तथा शुभ योग में चूडाकर्म प्रशस्त माना गया है।
अनुराधा ज्येष्ठा श्रवण धनिष्ठा रोहिणी मृगशिरा पुनर्वसु पुष्य हस्त उत्तराषाढा रेवती उत्तराफ़ाल्गुनी तथा अश्विनी ये नक्षत्र सिंह कन्या तुला तथा कुम्भ यह लगन जन्म से तीसरा या चौथा महिना यात्रा के लिये शुभ तिथियां तथा शनि और मंगल को छोडकर अन्य सभी दिन,यह सब शिशु को पहली बार घर से बाहर निकलने के लिये शुभ माने गये हैं।
हस्त चित्रा स्वाति श्रवण धनिष्ठा तीनों पूर्वा म्रुगशिरा अश्विनी पुनर्वसु पुष्य आश्लेषा मूल तथा रेवती ये सभी नक्षत्र तथा रविवार बुधवार और गुरुवार ये वार प्रथम वार मुण्डन के लिये शुभ माने गये हैं।
श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पुनर्वसु पुष्य अनुराधा हस्त चित्रा स्वाति तीनों उत्तरा पूर्वाफ़ाल्गुनी रोहिणी मृगशिरा मूल रेवती और अश्विनी यह सभी नक्षत्र शुभ ग्रहों के दिन एवं मिथुन कन्या धनु मीन और कुम्भ यह लगन कर्णवेध के लिये उत्तम हैं,चैत्र तथा पौष के महिने एवं देव-शयन का समय त्याज्य है।
पूर्वाषाढ अश्विनी हस्त चित्रा स्वाति श्रवण धनिष्ठा शतभिषा ज्येष्ठा पूर्वाफ़ाल्गुनी मृगशिरा पुष्य रेवती और तीनो उत्तरा नक्षत्र द्वितीया तृतीया पंचमी दसमी एकादसी तथा द्वादसी तिथियां,रवि शुक्र गुरु और सोमवार दिन शुक्ल पक्ष सिंह धनु वृष कन्या और मिथुन राशियां उत्तरायण में सूर्य के समय में उपनयन यानी यज्ञोपवीत यानी जनेऊ संस्कार शुभ होता है। ब्राह्मण को गर्भ के पांचवें अथवा आठवें वर्ष में क्षत्रिय को छठे अथवा ग्यारहवें वर्ष में वैश्य को आठवें अथवा बारहवें वर्ष में यज्ञोपवीत धारण करना चाहिये। किसी कारण से अगर समय चूक जाये तो ब्राह्मण को सोलहवें वर्ष में क्षत्रिय को बाइसवें वर्ष में वैश्य को चौबीसवें वर्ष में यज्ञोपवीत धारण कर लेना चाहिये। इन वर्षों के बीत जाने से गायत्री मंत्र को लेने के अधिकार समाप्त हो जाते हैं। बिना यज्ञोपवीत धारण किये गायत्री उल्टा प्रभाव देने लगता है।
इन मुहूर्तों के अलावा विद्यारम्भ मुहूर्त,नया वस्त्र धारण करने का मुहूर्त नया अन्न ग्रहण करने का मुहूर्त मकान या व्यापार स्थान की नीवं रखने का मुहूर्त गृह प्रवेश का मुहूर्त देवप्रतिष्ठा का मुहूर्त क्रय विक्रय का मुहूर्त ऋण लेने और देने का मुहूर्त गोद लेने का मुहूर्त आदि के बारे में भी जानकारी की जा सकती है।
आपको भी अपने किसी शुभ समय का मुहूर्त जानना है तो अपने जन्म वृतांत को भेजिये