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माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ । परन्तु लोक परम्पराओं में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को हरियाणा, पंजाब और दिल्ली मेंविश्वकर्मा जी की आराधना की जाती हैं। देश के अन्य भागों में भी उनकी पूजा माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही होती है । बंगाल में भाद्रपद की संकान्ति को विश्वकर्मा की पूजा बड़ी धूम-धाम से होती है उस दिन प्रत्येक शिल्पी अपने-अपने उपकरणों को इन्हीं का प्रतीक मानकर धूप-दीप और नैवेद्य से अपने-अपने औजारों की पूजा करता है यही विश्वकर्मा की पूजा मानी जाती है । कोई भी शिल्पकार लकड़ी आदि पदार्थ से किसी भी चीज की रचना करता है तो वास्तव में वहविश्वकर्मा की ही पूजा कर रहा होता है । जो लोग अपने कार्य को सफलतापूर्वक करना चाहते हैं उसे देव विश्वकर्मा की ही पूजा करनी चाहिए । जिनको समस्त कलाओं के ज्ञाता और समस्त शिल्प कला में पारंगत कहा गया है ।