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ओ3म् जय पंचानन देवा , प्रभु जय पंचानन देवा । ब्रह्मा विष्णु शंकर आदि करते नित्य सेवा ।1। भव मय त्राता जगत विधाता, मुक्ति फल दाता । स्वर्ण सिहासन मुकुट शीश चहूँ, सबके मन भाता ।2। प्रभात पिता भवना (माता) विश्वकर्मा स्वामी । विज्ञान शिल्प पति जग मांहि, आयो अन्तर्यामी ।3। त्रिशुल धनु शंकर को दीन्हा, विश्वकर्मा भवकर्ता । विष्णु महल रचायो तुमने, कृपा करो भर्ता ।4। भान शशि नक्षत्र सारे, तुम से ज्योति पावें । दुर्गा इन्र्द देव मुनि जन, मन देखत हर्षावें ।5। श्रेष्ठ कमण्डल कर चक्तपाणी तुम से त्रिशुल धारी । नाम तुम्हारा सयाराम और भजते कुँज बिहरी ।6। नारद आदि शेष शारदा, नुत्य गावत गुण तेरे । अमृत घट की रक्षा कीन्ही, जब देवों ने टेरे ।7। सिन्धु सेत बनाय राम की पल में करी सहाई । सप्त ऋषि दुख मोचन कीन्हीं, तब शान्ति पाई ।8।(तब) सुर नर किन्नर देव मुनि, गाथा नित्य गाते । परम पवित्र नाम सुमर नर, सुख सम्पति पाते ।9। पीत वसन हंस वाहन स्वानी, सबके मन भावे । सो प्राणी धन भाग पिता, चरण शरण जो आवे ।10। पंचानन विश्वकर्मा की जो कोई आरती गावे । निश्वप्रताप, दुख छीजें सारा सुख सम्पत आवे ।11।
ओ3म् जय पंचानन स्वामी प्रभु पंचानन स्वामी । अजर अमर अविनाशी, नमो अन्तर्यामी । चतुरानन संग सात ऋषि, शरण आपकी आये । अभय दान दे ऋषियन को, सार कष्ट मिटाये ।1। निगम गम पथ दाता हमें शरण पडे तेरी । विषय विकार मिटाओ सारे, मत लाओ देरी ।2। कुण्डल कर्ण गले मे माला इस वाहन सोहे । जति सति सन्यासी जग के, देख ही मोहे ।3। श्रेष्ठ कमण्डल मुकमट शीश पर तुम त्रिशूल धारी । भाल विशा सुलोचन देखत सुख पावँ नरनारी ।4। देख देख कर रुप मुनिजन, मन ही मन रीझै । अग्नि वायु आदित्य अंगिरा, आनन्द रस पीजै ।5। ऋषि अंगिरा कियो धारे तपस्या, शान्ति नही पाई । चरण कमल का दियो आसय, तब सब बन आई ।6। भक्त की जय कार तुम्हारी विज्ञान शिल्प दाता । जिस पर हो तेरी दया दृष्टि भव सागर तर जाता ।7। ऋषि सिर्फ ज्ञान विधायक जो शरण तुम्हारी आये । विश्वप्रताप दुख रोग मिटे, सुख सम्पत पावे ।8।
ओ3म् जय विश्वकर्मा हरे जय विश्वकर्मा हरे । दीना नाथ शरण गत वत्सलभव उध्दार करे ।1। भक्त जनों के समय समय पर दुख संकट हर्ता । विश्वरुप जगत के स्वामी तुम आदि कर्ता ।2। ब्रह्म वशं मे अवतार धरो, निज इच्छा कर स्वामी । प्रभात पिता महतारी भूवना योग सुता नामी ।3। शिवो मनुमय त्वष्टा शिल्पी दैवज सुख दाता । शिल्प कला मे पांच तनय, भये ब्रह्म ज्ञाता ।4। नारद इन्द्रशेष शारदा तव चरणन के तेरे । अग्नि वायु आदित्य अंगिरा, गावें गुण तेरे ।5। देव मुनि जन ऋषि महात्मा चरण शरण आये । राम सीया और उमा भवानी कर दर्शन हर्षाये ।6। ब्रह्मा विष्णु शंकर स्वमी, करते नित्य सेवा । जगत प्राणी दर्श करन हित, आस करें देवा ।7। हेली नाम विप्र ने मन से तुम्हारा गुण गाया । मिला षिल्प वरदान विप्र को, भक्ति फल पाया ।8। अमृत घट की रक्षा कीन्ही, सुर भय हीन भये । महा यज्ञ हेतु इन्द्र के घर, बन के गुरु गये ।9। पीत वसन कर चक्र सोहे. महा वज्र धारी । वेद ज्ञान की बहे सरिता, सब विध सुखकारी ।10। हम अज्ञान भक्त तेरे तुम सच्चे हितकारी । करो कामना सब की पूर्ण, दर पर खडे भिकारी ।11। विश्वकर्मा सत्गुरु हमारे, कष्ट हरो तन का । विश्वप्रताप शरण सुख राशि दुख विनेश मन का ।12।
ओ3म् जय विश्वकर्मा प्रभु जय विश्वकर्मा । शरण तुम्हारी आये हैं, रक्षक श्रुति धर्मा । उमा भवानी शंकर भोले, शरण तुम्हारी आये । कुंज बिहारी कृष्ण योगी, दर्शन करने धाये ।1। सृष्टि धर्ता पालन कर्ता, ज्ञान विकास किया । धनुष बना छिन माहिं तुमने, शिवाजी हाथ दिया ।2। आठ व्दीप नौ खण्ड स्वामी, चौदह भुवन बनायें । पंचानन करतार जगत के, देख सन्त हर्षाये ।3। शेष शारदा नारद आदि देवन की करी सहाई । दुर्गा इन्द्र सीया राम ने निज मुख गाथा गाई ।4। ब्रह्म विष्णु विश्वकर्मा तूं शक्ति रुपा । जगहितकारी सकंट हारी , तुम जग के भूपा ।5। ज्ञान विज्ञान निधि दाता त्वष्टा भुवन पति । अवतार धार के स्वामी तुमने जग में कियो गति । 6। मनु मय त्वष्टा पाँच तनय, ज्ञान शिल्प दाता । शिल्प विधा का आदि युग में, तुम सम को ज्ञाता ।7। मन भावन पावन रुप स्वामी ऋषियों ने जाना । पीत वसन तन सोहे स्वामी, मुक्ति पद बाना ।8। विश्वकर्मा परम गुरु की जो कोई आरती गावै । विश्वप्रताप सन्ताप मिटै, घर सम्पत आवै ।9।