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श्री विश्वकर्मा भगवान की प्रात: कालीन स्तुति

 

श्री विश्वकर्मा विश्व के भगवान सर्वाधारणम् ।

शरणागतम्  शरणागतम् शरणागतम् सुखाकारणम् ।।

कर शंख चक्र गदा मद्दम त्रिशुल दुष्ट संहारणम् ।

धनुबाण धारे निरखि छवि सुर नाग मुनि जन वारणम् ।।

डमरु कमण्डलु पुस्तकम् गज सुन्दरम् प्रभु धारणम् ।

संसार हित कौशल कला मुख वेद निज उच्चारणम् ।।

त्रैताप मेटन हार  हे ! कर्तार कष्ट निवारणम् ।

नमस्तुते जगदीश जगदाधार ईश खरारणम् ।।

सर्वज्ञ व्यापक सत्तचित आनंद सिरजनहारणम् ।

सब करहिं स्तुति शेष शारदा पाहिनाथ पुकारणम् ।।

श्री विश्वपति भगवत के जो चरण चित लव लांइ है ।

करि विनय बहु विधि प्रेम सो सौभाग्य सो नर पाइ है ।।

संसार की सुख सम्पदा सब भांति सो नर पाइ है ।

गहु शरण जाहिल करि कृपा भगवान तोहि अपनाई है ।।

प्रभुदित ह्रदय से जो सदा गुणगान प्रभु की गाइ है ।

संसार सागर से अवति सो नर सुपध को पाइ है ।।

हे विश्वकर्मा विश्व के भगवान सर्वा धारणम् ।

शरणागतम् । शरणागतम् । शरणागतम् । शरणागतम् ।।

श्री विश्वकर्मा भगवान की मुरति अजब विशाल ।

भरि निज नैन विलोकिये तजि नाना जंजाल ।।

आरती

आरती गाऊं जगदीश हरी को । विश्वकर्मा स्वामी परम श्री की ।
 तन मन धन सब अर्पण तेरे । करो वास हिये मेँ प्रभु मेरे ।
 शिव विरंची तुमरे गुण गावें । घनश्याम राम सिया मां ध्यावें । 1 ।
 कलियुग में कर साधन कीन्हां । चतुरानन वेद पढयो मुनि चारा ।
 शिल्प कला शुभ मार्ग दीन्हा । साम यजु ऋग शिल्प भडारा । 2 ।
 विश्वकर्मा नाम सदा अविनाशी । अगम अगोचर घट घट वासी ।
 कल्पतरु पद सब सुख धामा । सत्य सनातन मुद मगंल नामा । 3 ।
 करें अर्चन सुमरण पूजा किसकी । नहीं तुम बिन दूजा करे आसा जिसकी ।
 विषय विकार मिटाओ मन के । दुख व्याधा रोग कटें तब तन के । 4 ।
 माता पिता तुम शरणा गत स्वामी । तुम पूरण प्रभु नित्य अन्तर्यामी ।
 हम पावन पाठ करेंहिं चितलाई । करो संकट नाश सदा सुख दाई । 5 ।
 परम विज्ञानी सत्य लोक निवासी । देव तनु धर आयो ,ख राशी ।
 तुम बिन जग में कौन गोसाँई । विश्वप्रताप की अब जो करे सहाई । 6 ।