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कालसर्प दोष निवारण

क्या है कालसर्प दोष ?

जयोतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह का नाम दिया गया है। राहु शंकाओं का कारक है और केतु उस शंका को पैदा करने वाला स्थान। जब शंका को पैदा करने वाले स्थान,और शंका के एक तरफ़ ही सब बोलने वाले हों और समाधान करने वाले हों तो फ़ैसला एक तरफ़ा ही माना जायेगा,अगर शंका के समाधान के लिये दूसरी तरफ़ से कोई अपना बचाव या फ़ैसले के प्रति टीका टिप्पणी करे,तो अगर एक तरफ़ा फ़ैसला किसी अहित के लिये किया जा रहा है,तो उसके अन्दर समाधान का कारक मिल जाता है,और किसी भी प्रकार का अहित होने से बच जाता है। जीवन शंकाओं के निवारण के प्रति समर्पित है,किसी को शरीर के प्रति शंका है,किसी को धन और कुटुम्ब के प्रति शंका है,किसी को अपना बल और प्रदर्शन दिखाने के प्रति शंका है,किसी को अपने निवास स्थान और लगातार मन ही शंकाओं से हमेशा घिरा है,किसी को अपनी शिक्षा और संतान के प्रति शंका है,किसी को अपने कर्जा दुश्मनी और बीमारी के प्रति शंका है,किसी को अपने जीवन साथी और जीवन के अन्दर की जाने वाली जीवन के प्रति लडाइयों के प्रति शंका है,किसी को अपने शरीर की समाप्ति और अपमान के साथ जानजोखिम के प्रति ही शंका है,किसी को अपने जाति कुल धर्म और भाग्य के प्रति ही शंकायें है,किसी को अपने कार्य और जीवन यापन के लिये क्या करना चाहिये उसके प्रति ही शंकायें हैं,किसी को अपने मित्रों अपने बडे भाइयों और लगातार लाभ के प्रति ही शंकाये हैं,किसी को अपने द्वारा आने जाने खर्चा करने और अंत समय के प्रति शंकायें हुआ करती हैं। अक्सर कोई शंका जब की जाती है तो उस शंका के समाधान के लिये कोई न कोई हल अपने आप अपने ही दिमाग से निकल आता है,अपने दिमाग से नही तो कोई न कोई आकर उस शंका का समाधान बता जाता है,लेकिन राहु जो शंका का नाम है और केतु जो शंका को पैदा करने का कारक है,के एक तरफ़ बहुत सभी ग्रह हों और दूसरी तरफ़ कोई भी ग्रह नही हो तो शंका का समाधान एक तरफ़ा ही हो जाता है,और अगर वह समाधान किसी कारण से अहित देने वाला है तो उसे कोई बदल नहीं पाता है,जातक का स्वभाव एक तरफ़ा होकर वह जो भी अच्छा या बुरा करने जा रहा है करता ही चला जाता है,जातक के मन के अन्दर जो भी शंका पैदा होती है वह एक तरफ़ा समाधान की बजह से केवल एक ही भावना को पैदा करने का आदी हो जाता है,जब कोई शंका का समाधान और उस पर टिप्पणी करने का कारक नहीं होता है तो जातक का स्वभाव निरंकुश हो जाता है,इस कारण से जातक के जीवन में जो भी दुख का कारण है वह चिरस्थाई हो जाता है,इस चिरस्थाई होने का कारण राहु और केतु के बाद कोई ग्रह नही होने से कुंडली देख कर पता किया जाता है,यही कालसर्प दोष माना जाता है,यह बारह प्रकार का होता है।

विष्णु अथवा अनन्त

इस योग का दुष्प्रभाव स्वास्थ्य आकृति रंग त्वचा सुख स्वभाव धन बालों पर पडता है,इसके साथ छोटे भाई बहिनों छोटी यात्रा में दाहिने कान पर कालरबोन पर कंधे पर स्नायु मंडल पर, पडौसी के साथ सम्बन्धों पर अपने को प्रदर्शित करने पर सन्तान भाव पर बुद्धि और शिक्षा पर परामर्श करने पर पेट के रोगों पर हाथों पर किसी प्रकार की योजना बनाने पर विवेक पर शादी सम्बन्ध पर वस्तुओं के अचानक गुम होजाने,रज और वीर्य वाले कारणों पर याददास्त पर किसी प्रकार की साझेदारी और अनुबन्ध वाले कामों पर पिता और पिता के नाम पर विदेश यात्रा पर उच्च शिक्षा पर धर्म और उपासना पर तीर्थ यात्रा पर पौत्र आदि पर पडता है.

अजैकपाद अथवा कुलिक

इसका प्रभाव धन,परिवार दाहिनी आंख नाखूनों खरीदने बेचने के कामों में आभूषणों में वाणी में भोजन के रूपों में कपडों के पहिनने में आय के साधनों में जीभ की बीमारियों में नाक दांत गाल की बीमारियों में धन के जमा करने में मित्रता करने में नया काम करने में भय होने शत्रुता करवाने कर्जा करवाने बैंक आदि की नौकरी करने कानूनी शिक्षा को प्राप्त करवाने नौकरी करने नौकर रखने अक्समात चोट लगने कमर की चोटों या बीमारियों में चाचा या मामा परिवार के प्रति पेशाब की बीमारियों में व्यवसाय की जानकारी में राज्य के द्वारा मिलने वाली सहायताओं में सांस की बीमारियों में पीठ की हड्डी में पुरस्कार मिलने में अधिकार को प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की सफ़लता को प्राप्त करने में अपना असर देता है.

अहिर्बुन्ध अथवा वासुकि

राहु तीसरे भाव में और केतु नवें भाव में होता है तो इस कालसर्प योग की उत्पत्ति होती है। ग्रहों का स्थान राहु केतु के एक तरफ़ कुंडली में होता है। यह योग किसी भी प्रकार के बल को या तो नष्ट करता है अथवा उत्तेजित दिमाग की वजह से कितने ही अनर्थ कर देता है।

कपाली या शंखपाल

इस दोष में राहु चौथे भाव में और केतु दसवें भाव में होता है,यह माता मन और मकान के लिये दुखदायी होता है,जातक को मानसिक रूप से भटकाव देता है।

हर या पद्म

इस योग मे राहु पंचम में और केतु ग्यारहवें भाव में होता है,बाकी के ग्रह राहु केतु की रेखा से एक तरफ़ होते हैं इस योग के कारण जातक को संतान या तो होती नही अगर होती है तो अल्प समय में नष्ट होजाती है।

बहुरूप या महापद्म

इस योग में राहु छठे भाव मे और केतु बारहवें भाव में होता है जातक अपने नाम और अपनी बात के लिये कोई भी योग्य अथवा अयोग्य कार्य कर सकता है,जातक की पत्नी या पति बेकार की चिन्ताओं से ग्रस्त होता है,साथ जातक के परिवार में अचानक मुसीबतें या तो आजाती है या खत्म हो जाती है,धन की बचत को झूठे लोग चोर या बीमारी या कर्जा अचानक खत्म करने के लिये इस दोष को मुख्य माना जाता है।

त्र्यम्बक या तक्षक

यह योग जीवन के लिये सबसे घातक कालसर्प योग होता है,त्र्यम्बक का मतलब त्रय+अम्ब+क=तीन देवियों (सरस्वती,काली,लक्ष्मी) का रूप कालरूप हो जाना। इस योग के कारण जीवन को समाप्त करने के लिये और जीवन में किसी भी क्षेत्र की उन्नति शादी के बाद अचानक खत्म होती चली जाती है,जातक सिर धुनने लगता है,उसके अन्दर चरित्रहीनता से बुद्धि का विनाश,अधर्म कार्यों से और धार्मिक स्थानों से अरुचि के कारण लक्ष्मी का विनाश,तथा हमेशा दूसरों के प्रति बुरा सोचने के कारण संकट में सहायता नही मिलना आदि पाया जाता है।

अपाराजित या करकट

यह योग भी शादी के बाद ही अचानक धन की हानि जीवन साथी को तामसी कारणों में ले जाने और अचानक मौत देने के लिये जाना जाता है,इस योग के कारण जातक जो भी काम करता है वह शमशान की राख की तरह से फ़ल देते है,जातक का ध्यान शमशान सेवा और म्रुत्यु के बाद के धन को प्राप्त करने में लगता है,अचानक जातक कोई भी फ़ैसला जीवन के प्रति ले लेता है,यहां तक इस प्रकार के ही जातक अचानक छत से छलांग लगाते या अचानक गोली मारने से मरने से मृत्यु को प्राप्त होते है,इसके अलावा जातक को योन सम्बन्धी बीमारियां होने के कारण तथा उन रोगों के कारण जातक का स्वभाव चिढ चिढा हो जाता है,और जातक को हमेशा उत्तेजना का कोपभाजन बनना पडता है,संतान के मामले में और जीवन साथी की रुग्णता के कारण जातक को जिन्दगी में दुख ही मिलते रहते हैं।

वृषाकपि या शंखचूड

इस योग में राहु नवें भाव में और केतु तीसरे भाव में तथा सभी अन्य ग्रह राहु केतु के एक तरफ़ होते है,इस योग के अन्दर जातक धर्म में झाडू लगाने वाला होता है,सामाजिक मर्यादा उसके लिये बेकार होती है,जातक का स्वभाव मानसिक आधार पर लम्बा सोचने में होता है,लोगों की सहायता करने और बडे भाई बहिनों के लिये हानिकारक माना जाता है,जातक की पत्नी को या पति को उसके शरीर सहित भौतिक जिन्दगी को सम्भालना पडता है,जातक को ज्योतिष और पराशक्तियों के कारकों पर बहस करने की आदत होती है,जातक के घर में या तो लडाइयां हुआ करती है अथवा जातक को अचानक जन्म स्थान छोड कर विदेश में जाकर निवास करना पडता है।

शम्भु या घातक

इस योग में राहु दसवें भाव मे और केतु चौथे भाव में होते है अन्य ग्रह राहु केतु के एक तरफ़ होते है,इस योग के कारण जातक को या तो दूसरों के लिये जीना पडता है अथवा वह दूसरों को कुछ भी जीवन में दे नही पाता है,जातक का ध्यान उन्ही कारकों की तरफ़ होता है जो विदेश से धन प्रदान करवाते हों अथवा धन से सम्बन्ध रखते हों जातक को किसी भी आत्मीय सम्बन्ध से कोई मतलब नही होता है। या तो वह शिव की तरह से शमशान में निवास करता है,या उसे घर परिवार या समाज से कोई लेना देना नही रहता है,जातक को शमशानी शक्तियों पर विश्वास होता है और वह इन शक्तियों को दूसरों पर प्रयोग भी करता है।

कपर्दी या विषधर

इस योग में ग्यारहवें भाव में राहु और पंचम स्थान में केतु होता है,इसकी यह पहिचान भी होती है कि जातक के कोई बडा भाई या बहिन होकर खत्म हो गयी होती है,जातक के पिता को तामसी कारकों को प्रयोग करने की आदत होती है जातक की माँ अचानक किसी हादसे में खत्म होती है,जातक की पत्नी या पति परिवार से कोई लगाव नही रखते है,अधिकतर मामलों में जातक के संतान अस्पताल और आपरेशन के बाद ही होती है,जातक की संतान उसकी शादी के बाद सम्बन्ध खत्म कर देती है,जातक का पालन पोषण और पारिवारिक प्रभाव दूसरों के अधीन रहता है।

रैवत या शेषनाग

इस योग में लगन से बारहवें भाव में राहु और छठे भाव में केतु होता है,जातक उपरत्व वाली बाधाओं से पीडित रहता है,जातक को बचपन में नजर दोष से भी शारीरिक और बौद्धिक हानि होती है,जातक का पिता झगडालू और माता दूसरे धर्मों पर विश्वास करने वाली होती है,जातक को अकेले रहने और अकेले में सोचने की आदत होती है,जातक कभी कभी महसूस करता है कि उसके सिर पर कोई भारी बजन है और जातक इस कारण से कभी कभी इस प्रकार की हरकतें करने लगता है मानों उसके ऊपर किसी आत्मा का साया हो,जातक के अन्दर सोचने के अलावा काम करने की आदत कम होती है,कभी जातक भूत की तरह से काम करता है और कभी आलसी होकर लम्बे समय तक लेटने का आदी होता है,जातक का स्वभाव शादी के बाद दूसरों से झगडा करने और घर के परिवार के सदस्यों से विपरीत चलने का होता है,जातक की होने वाली सन्तान अपने बचपन में दूसरों के भरोसे पलती है।

 

कालसर्प का अर्थ :

 

 

काल का अर्थ समय और सर्प का मतलब ग्यारह रुद्रों में एक माना जाता है,विभिन्न लोगों ने अपने अपने विवेक और बुद्धि से कालसर्प योगों की व्याख्या की है,लेकिन भूतडामर तंत्र के अनुसार कालसर्प का पूरा ब्यौरा भगवान रुद्र (शिव) के प्रति ही माना गया है,इस प्रकार का योग ही भगवान शिव के द्वारा अभिशापित माना जाता है,जिस प्राणी को जो सजा देनी होती है उसे उसी समय में भूलोक में उतारा जाता है,और आत्मा को जीवन-मरण,यश-अपयश,लाभ-हानि,सुख-दुख,आदि के द्वारा उसका फ़ल दिया जाता है। इस भोगात्मक जीवन में भी अगर प्राणी किसी प्रकार के घमंड में अगर किसी प्राणी विशेष का मनसा वाचा कर्मणा से अहित करने की कोशिश करता है,अथवा प्रकृति की पालना में अपना दखल अपने घमंड के कारण करता है तो उसे दुबारा से भूलोक में आकर दुखी होना पडता है। जो व्यक्ति धर्म को बेचते है,धर्म का उपहास उडाते है,प्रकृति को अपनी बपौती समझते है,वेदों का अपमान करते है,जो आदि युग से चला आ रहा है उसे भूल से अपने द्वारा सृजित मानकर घमंड कर बैठते है,और भौतिक कारणों का सहारा लेकर उस पर अपना नाम चलाने की कोशिश करते हैं वे इस राहु द्वारा समय आने पर भयंकर रूप से पीडित किये जाते है,जब उनको पीडा भुगतनी पडती है तो वे असहाय से होकर उस घडी को कोशते है जब उन्होने जो उनका है ही नही को अपना माना और उस अपना मानने के कारण इस निश्छल आत्मा को प्रतिकार के रूप में जलाया। कुंडली में लगन को नारायण और अलावा भावों को ग्यारह रुद्रों के रूप में जाना जाता है,उनके नाम इस प्रकार से हैं -अजैकपात, अहिर्बुन्ध, कपाली, हर, बहुरुप, त्र्यम्बक, अपाराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी और रैवत । शिव संहारक है,ब्रह्मा उत्पत्ति और विष्णु पालक के रूप में जाने जाते हैं। कुंडली के भावों में पहला विष्णु का पांचवां ब्रह्मा का और नवां शिव का,उसी प्रकार से दूसरा अजैकपाद,छठा त्र्यम्बक का और दसवां रैवत का माना जाता है,तीसरा अहिर्बुन्ध का सातवां अपाराजित और ग्यारहवां वृषाकपि का माना जाता है,चौथा शम्भु आठवां कपाली और बारहवां भाव कपर्दी का माना जाता है,इन्ही नामों के अनुसार कालसर्प दोषों का वर्गीकरण किया गया है।

विष्णु नाम कालसर्प :
 
  • लगन मे राहु और सप्तम में केतु

यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे के अनुसार लगन में राहु और सप्तम में केतु के होने से और दो,तीन,चार,पांच,छ: भावों सभी ग्रहों के होने से अथवा आठ,नौ,दस,ग्यारह बारह भावों सभी ग्रहों के होने से इस कालसर्प योग का निर्माण होता है,राहु जो शंका का रूप है,शरीर के प्रति शंकायें पैदा करता है,अगर सभी ग्रह राहु के बाद है तो शंकायें सूर्य से पिता,या पुत्र चन्द्र से माता या बहिन,मंगल से भाई या पति,बुध से चाचा या मामा या बहिन बुआ बेटी,गुरु से शिक्षा या ज्ञान देने वाले लोग,शुक्र से पत्नी या घर या भौतिक सम्पत्ति या वाहन,शनि से जायदाद या कार्य के रूप में चिन्तायें पैदा होती हैं,चूंकि यह भाग खुद के शरीर से सम्बन्ध रखने वाले कारकों से होता है,और जीव के बाद के समस्त कारकों के प्रति अपनी क्रिया को जाहिर करता है। यह प्रभाव शादी से पहले ही जीवन में अच्छा बुरा फ़ल प्रदान करता है,शादी के बाद इसका कारक केतु पति या पत्नी के रूप में अपने द्वारा समस्त अच्छी या बुरी अलामतों को संभाल लेता है और जातक का जीवन सुचारु रूप से चलने लगता है।राहु पहले भाव में मंदी की निशानी माना जाता है,यहां राहु होन से व्यक्ति दौलतमंद तो होता है किंतु उसका अच्छे कामों में खर्चा भी बहुत होता है,यहां पर राहु के असर को शुभ करने के लिये सूर्य की चीजों जैसे गेंहूं आदि का दान बहुत शुभ होता है,यह राह की शुभ और अशुभ हालतों में एक बहुत बढिया उपाय माना जाता है। राहु केतु का सीधा सम्बन्ध एक सौ अस्सी डिग्री के अन्दर में होता है,राहु और केतु का असर उस प्रकार से भी मान सकते है जैसे कि एक रोशनी सीधी अन्धकार की तरफ़ जा रही है,वह रोशनी इतनी तेज होती है कि उसके आरपार किसी भी ग्रह का प्रभाव नही जा सकता है,और इसी कारण से राहु केतु के एक तरफ़ ग्रह होने के कारण वे ग्रह किसी प्रकार से अपने सामने वाले भाव पर अपना असर नही दे पाते और जातक का जीवन या तो अपने लिये अथवा दूसरे के लिये ही होकर रह जाता है। राहु केतु में पहले भाव से सातवें भाव के केतु के बाद के अगर ग्रह होते है और मंगल अगर राहु से बारहवां होता है,तो राहु के द्वारा दिये जाने वाले प्रभावों में गलत प्रभाव अपना असर मंगल की ताकत के अनुसार ही प्रदान कर पाते है,जैसे मंगल अगर कमजोर है तो राहु अपने प्रभाव अधिक देगा और मंगल अगर सशक्त है तो राहु अपना असर नही दे पायेगा,राहु को अगर हाथी माने और मंगल को अंकुश माने तो मंगल राहु पर अपना कन्ट्रोल कर सकता है। लेकिन राहु के आसपास वाले ग्रह अगर कमजोर है तो राहु कमजोर मंगल की ताकत को लेकर उन्हे धीरे धीरे जलाने लगता है,जैसे सूर्य है तो पिता को तकलीफ़ें बढ जाती है,अन्जानी मुशीबतें पिता पर आनी शुरु हो जाती है राहु राजकीय मामलों में अचानक किसी न किसी प्रकार का बल लेकर जातक को परेशान करने लगता है। इस कालसर्प योग में राहु की अच्छी या बुरी हालत को देखने के लिये अगर बुध पहले भाव से लेकर छठे भाव तक कमजोर है तो राहु बुरा फ़ल अधिक देगा और अगर बुध की हालत मजबूत है तो राहु अच्छे फ़ल देगा और कालसर्प दोष का असर कम मिलेगा। बुध के कमजोर होने की निशानियों के लिये बहिन बुआ बेटी की हालत देखकर भी पता किया जा सकता है,राहु सशक्त है और बुध कमजोर है यानी बुध पांच डिग्री से कम है तो जातक की बहिन दुखी रहेगी,जातक की बुआ जातक के पैदा होने के बाद या उससे पहले ही मर जायेगी,जातक की बेटी की शादी के बाद या तो वह वापस अपने पिता के पास आजायेगी,अथवा वह किसी न किसी राहु वाले कारण से खत्म हो जायेगी,राहु वाले कारणों में वाहन से हादसा,मिट्टी के तेल या पेट्रोल से आग लगा लेना,दवाई के किसी प्रकार से रियेक्सन करने के बाद मर जाना,किसी अस्पताली गल्ती से मृत्यु का हो जाना माना जाता है। इस कालसर्प दोष की एक पहिचान और मानी जाती है कि जातक के पैदा होने के बाद आसमानी ताकतें अपना बल दिखातीं है,जैसे कि आंधी आजाये,अचानक तूफ़ान आजाये,छत पर रखा सामान किसी प्रकार से नीचे गिर जाये,अथवा घर की या अस्पताल की बिजली ही चली जाये,अथवा पैदा होने की साल में या गर्भ में आने के बाद घर के पूर्वज यानी पिता से बडे व्यक्ति की मृत्यु हो जाये। इस प्रकार के कालसर्प दोष की एक और पहिचान मानी जाती है कि जातक जिस घर में जन्म के बाद रहता है उस घर के सामने वाले घर की हालत लगातार खराब होती जाती है,अधिकतर मामलों में अगर उस घर की नर औलाद अगर उस घर में नही रहती है तो एक दिन वह घर नेस्तनाबूद हो जाता है। पहले भाव के राहु और सप्तम भाव के केतु वाले कालसर्प दोष वाले के लिये उम्र की चालीस तक राहु वाले रिस्तेदारों से खराब असर ही मिलते रहेंगे,राहु सम्बन्धित रिस्तेदारों के अन्दर पिता के पिता से सम्बन्धित लोग,ससुराल वाले लोग साले या देवर आदि राहु के रिस्तेदारों में माने जाते है,इसके अलावा काले लंगडे गंजे और नि:संतान लोग भी राहु की श्रेणी में आजाते है,शराबी और दवाइयां लगातार प्रयोग करने वाले लोग भी राहु के अन्दर माने जाते हैं। इस कालसर्प से ग्रसित लोग अधिकतर बेईमान और धोखेबाज होने के साथ चालबाज भी होते है अगर राहु जरा सा भी खराब असर दे रहा है,इसी कारण से इस प्रकार के लोग अपने जीवन में स्थिरता नही ला पाते हैं,और अपनी आदतों के कारण तरक्की भी नही कर पाते है,राहु के द्वारा सूर्य पर हमेशा ग्रहण लागू रहेगा,और अक्सर पिता,पुत्र और खुद की इमेज कभी सही नही हो पाती है। लेकिन इसके अन्दर भी अगर सूर्य बुध के साथ तीसरे भाव में है तो राहु अपना ग्रहण सूर्य (पिता पुत्र और खुद की इमेज) पर नही लगा पायेगा। इस कालसर्प दोष में अगर सूर्य नवें भाव में है तो व्यक्ति के अन्दर धर्म और ईमान के प्रति भी ग्रहण लगा माना जायेगा,वह धर्म और ईमान को बेच कर खाने वाला हो सकता है। राहु जब सूर्य को ग्रहण देता है तो केतु चन्द्रमा (माता बडी बहिन मौसी और मामी आदि) के फ़लों में कमी कर देता है। इसका प्रत्यक्ष असर यात्रा करने,कृषि से सम्बन्धित व्यापार करने,आदि में पडता है और जो चन्द्रमा माता की तरह से पालता है वही चन्द्रमा जातक के साथ छल और कपट करने लगता है। इस प्रकार के जातक की पहिचान एक तरह से और देखी जा सकती है कि जातक को हमेशा बोलते रहने की आदत होती है,उसकी बुद्धि अपना प्रभाव नही देपाती है और बिना बुद्धि का प्रयोग किये जातक कई प्रकार के अनर्थ कर बैठता है। इस असर को कम करने के लिये जातक अपने पास चांदी की डिब्बी में चावल रखकर अपने पास रखे तो असर कुछ कम हो जाता है,लेकिन पूरी तरह से असर कम नही होता है,जातक अगर शराब या तामसी कारणों में ग्रस्त हो तो भी जातक कोई उपाय करे,कामयाब नही होता है,उसे ज्योतिषी और झाडफ़ूक करने वाले लूटते रहते हैं।

इस कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव को कम करने के लिये जो उपाय कारगर हुये उनमें:-

  • जातक को अकेले किसी भी कार्य के प्रति फ़ैसला नहीं लेना चाहिये.
  • कार्य को आरम्भ करने से पहले साधक,साध्य और साधनों का आकलन किसी परिवार से अलग रहने वाले व्यक्ति से करवा लेना चाहिये.
  • जातक को अपने सोने वाले स्थान पर तेज धार वाले हथियार,बारूद वाले हथियार और टीवी तथा मनोरंजन वाले साधन नहीं रखने चाहिये.
  • जातक के लगन का राहु जातक के प्रदर्शन वाले तरीकों,जातक से छोटे भाइयों को अपने जन्म के बारह घंटे,बारह दिन,बारह साल में बुरा असर देता है,इसके लिये इन समयों में जातक को उपरोक्त कारकों से अलग रखना चाहिये.
  • पढाई करते वक्त या खेलते वक्त जातक को अचानक अनन्त प्रकार से सोचने की आदत होती है,वह विराट संसार में लीन हो जाता है,जातक को चाय या पानी इस समय में प्रयोग करते रहना चाहिये.
  • जातक को नीले कपडे नही पहिनाने चाहिये,और न ही नीले वाहनों का प्रयोग करने देना चाहिये.
  • इस दोष वाले जातक को नजर दोष अधिक लगता है,इससे बचने के लिये नजर दोष का उपाय करते रहना चाहिये.
  • इस राहु की द्रिष्टि में अगर तीसरे भाव में पंचम भाव में शुक्र या मंगल है तो जातक का रुझान विजातीय लोगों की तरफ़ अधिक होता है,इससे बचने के लिये जातक को अपने पास लाल कपडे में सौंफ़ और मिश्री रखनी चाहिये.
  • इस राहु की द्रिष्टि में अगर सूर्य है तो जातक अपने पिता और पुत्र के लिये ग्रहण देने वाला होता है,जातक को बचने के लिये सोमवती अमावस्या को एक छाता अपने ऊपर तान कर या किसी काले वस्त्र का छायादान करना चाहिये.
  • इस राहु की द्रिष्टि मे अगर चन्द्रमा है तो जातक की माँ लगातार चिन्ता से ग्रस्त होती है,अधिक चिन्ता के कारण उसके बुढापे में उसके शरीर के जोड भयंकर दर्द करते है,इससे बचने के लिये जातक की माता को रोजाना सुबह को चार गिलास पानी पीना चाहिये,और एक घंटे तक और कुछ नही खाना पीना चाहिये.
  • इस दोष के कारण जातक का जीवन साथी शादी के बाद गृहस्थी की बागडोर अपने हाथ मे लेलेता है,उससे परिवार वालों या रिस्तेदारों को कोई दखल नही करना चाहिये।
  • इस दोष में अगर केतु शनि से युति लेता है तो जातक के जीवन में कोर्ट केश और तलाक जैसे मुकद्दमे चल सकते है,इससे बचने के लिये जातक को छतरी किसी डाकोत को दान में देना चाहिये.
  • राहु के कारण जातक की वाणी सत्य होने लगती है,उसके द्वारा अपनी वाणी पर घमंड करने के कारण राहु कभी भी किसी भी स्थान पर फ़टकारा दे सकता है,अत: जातक को मिथ्या घमंड से बचकर रहना चाहिये.
  • जातक को अपने बराबर के जौ किसी बहती हुयी पवित्र नदी में बहाना चाहिये.
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले कपडे में सजाकर पूजा स्थान में रखनी चाहिये तथा लक्ष्मी की मूर्ति को हरे कपडे में सजाकर पूजा स्थान में रखना चाहिये.
  • पिता और पुत्र की बातों का अनादर नही करना चाहिये,उनकी बातों को दिमाग से सुनकर ही उत्तर या कार्य करना चाहिये.

अजैकपाद :

यह कालसर्प दोष तब माना जाता है जब राहु लगन से दूसरे भाव में और केतु लगन से आठवें भाव में होता है और बाकी के ग्रह या तो दूसरे भाव से अष्टम भाव तक होते है या फ़िर अष्टम से दूसरे भाव तक होते है,इस योग में जातक को सब कुछ होते हुये भी कुछ समझ में नही आता है,वह दुविधा में अपने को फ़ंसाकर अपने किये जाने वाले कामों के अन्दर ही शंकाओं में घिरा रहता है,जातक को या तो शराब आदि तामसी चीजों के द्वारा अपने को ग्रसित रखता है अथवा किसी न किसी प्रकार के सांस के अथवा ह्रदय के रोग पैदा करने के बाद दवाइयों से जुडा रखता है। इस प्रकार के जातकों की पहिचान लगातार नशीली चीजें प्रयोग करने के रूप में भी देखा जा सकता है। इस दोष का परिणाम यह भी होता है कि जातक के शरीर के जोड अधिकतर टूटते रहते है अथवा उनके अन्दर किसी न किसी प्रकार का दोष पैदा हो जाता है और जातक किसी भी कार्य के लिये परेशान होता रहता है,जातक के अन्दर गाली देने और भद्दी बात कहने में कोई अरुचि नही होती है वह किसी भी प्रकार से मान या अपमान की चिन्ता नही करता है,वह अपने ही लोगों को लडाकर दूर बैठ कर तमाशा देखने का आदी होता है,उसे चुगली करने की आदत होती है और वह किसी न किसी प्रकार से छुपी हुयी बातों को निकाल कर कर्जा दुश्मनी और बीमारी पालने का शौकीन होता है। जातक के पास कभी तो वहुत सा काम होता है,और कभी जातक बिलकुल निठल्ला होता है,जातक की रुचि आलसी होने के कारण आमद कभी अधिक होती है और कभी कम तथा कभी होती ही नही है,जातक धन और तामसी कारकों के लिये मानसिक चिन्ता मे रहता है कि किस प्रकार से धन की आवक बिना मेहनत के हो और किस प्रकार से तामसी कारकों की प्राप्ति मुफ़्त में मिले। शंकाओं के कारण उसकी अपने छोटे भाई बहिनों से नही बनती है,अधिकतर वह उनके ऊपर भूत जैसा हावी होता है,तथा घर के अन्दर विभिन्न कारण पैदा करने के बाद एक प्रकार का डर या टेंसन पैदा किये रहता है,जातक के रिहायसी स्थान पर एक प्रकार की खामोशी रहती है और झूठे और तत्वहीन विचारों से घर के लोग लडा करते है,अक्सर उनके अन्दर आपस में गाली गलौज और मारपीट आम बात होती है.इस दोष को दूर करने से पहले जातक को सबसे पहले तामसी कारकों को दूर कर देना चाहिये.मैने पहले भी बताया है कि राहु खुद अपने काम जातक के जीवन में अच्छे या बुरे नही करता है,राहु शंका का रूप है,राहु छिपी हुयी शक्ति का रूप माना जाता है,दूसरे घर मे राहु और आठवें घर के केतु का रूप शंका का स्थिर होना नही माना जाता है,जैसे एक व्यक्ति के ऊपर शक हो जाये और उस शक का कारण किसी प्रकार से मिल जाये तो वह शक पक्का होता है,लेकिन शक का दायरा बढता जाये और शक किये जाने वाले व्यक्ति की शक में तो बढोत्तरी होती जाये लेकिन शक का कारण नही मिले तो कभी तो लगेगा कि अगला व्यक्ति बहुत भला है और कभी लगेगा कि अगला व्यक्ति बहुत बुरा है,इसी प्रकार का हाल इस काल सर्प योग वाले का होता है वह कभी भी एक स्थान पर रुकता नही है,जिस प्रकार से घडी का पेंडुलम लगातार हिलता रहता है उसी प्रकार से व्यक्ति की जिन्दगी होती है,कभी इधर तो कभी उधर,टिकता तभी है या तो वह पागल हो जाये या फ़िर दुनिया से उठ जाये। इस प्रकार के व्यक्ति की जिन्दगी या तो बहुत अच्छी होती है या बहुत ही बुरी होती है,इस प्रकार के व्यक्ति को गृहस्थी का सुख तो मिलता है लेकिन कुन्डली के अन्दर गुरु की हालत के अनुसार ही उसकी सम्पत्ति के बारे में जाना जा सकता है। इस प्रकार के व्यक्ति के लिये सबसे उत्तम समय तभी माना जा सकता है जब गोचर से शनि लगन में आयेगा और गुरु की स्थिति उत्तम होगी। इस प्रकार के कालसर्प वाले व्यक्ति को धन और भौतिक सम्पत्ति की चोरी या ठगी का सबसे अधिक डर रहता है,उसे लोग बडे आराम से अपने झूठे जाल में लेकर ठग सकते है,अथवा उसको बातों में या किसी अन्य कार्य में उलझाकर चोरी कर सकते हैं। इस प्रकार के कुप्रभाव को रोकने के लिये अथवा कम करने के लिये व्यक्ति बुध और चन्द्र की सहायता ले सकता है इसके लिये वह चांदी जो चन्द्रमा की कारक की गोली (बुध के रूप) में बनवाकर अपने पास हमेशा के लिये रख ले। इस कालसर्प योग को धारण करने वाला अपनी आदतों से लोगों पर अपना हुकुम चलाकर बात करने का आदी होता है,लोग किसी न किसी इल्म के कारण उसकी इज्जत जरूर करते है,उसके जीवन में आशा और निराशा के कारण बनते और बिगडते रहेंगे,कभी तो वह बहुत धनवान मानने लगेगा और कभी अपने को बिलकुल गरीब आदमी मानने लगेगा,इस प्रकार का जातक अपने को परिवर्तन में लगाये रहता है,चाहे वह रहने वाले स्थान के परिवर्तन हो,या कार्य करने वाले परिवर्तन हों,अथवा सोने और स्थाई निवास के परिवर्तन हों,अथवा उसकी आदतों के प्रति परिवर्तन हों। इस कालसर्प के योग वाला स्थान जलवायु और प्राकृतिक बदलाव से कभी घबडाता नही है वह भारत की जलवायु में जिस प्रकार से रहता उसी प्रकार से वह अमेरिका के न्यूफ़ाउलेंड में भी उसी प्रकार से रह सकता है। व्यक्ति के जीवन में पति या पत्नी के साथ धन की स्थिति उम्र के पच्चीस साल तक बहुत अच्छी रहती है,लेकिन इस भाव में राहु अगर धनु या मीन राशि का हो तो उम्र की बयालीसवीं साल तक वह इन सबसे दुखी ही रहेगा। केतु भी अपना फ़ल उम्र के छब्बिस साल तक तो अच्छा देता रहेगा लेकिन उसके बाद वह भी दुलत्ती मारने लगेगा। इस कालसर्प योग वाले जातक की कुन्डली में शनि अगर मंदा है अथवा नीच का है अथवा किसी प्रकार से त्रिक भाव में है,अस्त है या बक्री है तो जातक पर मुशीबतें लगातार आती रहतीं है,इसकी पहिचान होती है कि हाथ पैर के नाखून या तो चटकने लगते है अथवा कमजोर होकर झडने लगते है,यही हाल बालों का होता है जातक गंजा होने लगता है,अथवा उसके बाल कमजोर होने लगते है,जातक के पुत्र और पिता भी अपने जीवन को स्थिर नही रख पाते है,जातक का रूप परिवर्तन भी होता रहता है कभी वह बलवान दिखाई देता है तो कभी वह बेहद कमजोर,कभी वह गोरा हो जाता है तो कभी वह काले रंग का दिखाई देने लगता है,कभी वह बहुत अधिक धार्मिक होता है और कभी वह बिलकुल पापकर्मों पर चलने वाला होता है।

  • जातक को सुबह जागकर सबसे पहले अपने चेहरे को धोना चाहिये.
  • जातक को कहीं भी जाने से पहले मुंह में मीठा डालकर और पानी पीकर निकलना चाहिये.
  • जातक को कोई भी बात अक्समात नही कहनी चाहिये,जो भी कहना है उसे पहले ह्रदय में सोचना चाहिये,फ़िर गले से निकालने के पहले उसकी कठोरता को मधुरता में बदलना चाहिये फ़िर होंठों से बाहर निकालते वक्त शब्दों को उचित रूप से कहना चाहिये।
  • अचानक कहीं जाने से पहले किसी पूंछ लेना चाहिये,अगर कोई काम अक्समात करना है तो किसी से पूंछ कर करना चाहिये,अगर कोई न मिले तो दर्पण के सामने खडे होकर खुद अपने से ही पूंछना चाहिये.
  • चेहरे पर दाढी नही रखनी चाहिये,तथा तम्बाकू धूम्रपान शराब का सेवन बन्द कर देना चाहिये.
  • अपने परिवार के प्रति किसी भी शंका को करने से पहले कारण को खोजना चाहिये.और परिवार के प्रति कभी भी जादू टोना भूत प्रेत वाली बातें नही सोचना चाहिये,परिवार के मुखिया से बनाकर चलनी चाहिये,दादा या दादी की सम्पत्ति को ट्रस्ट के रूप में बचाकर रखनी चाहिये।
  • अपने द्वारा या परिवार के द्वारा प्राप्त किये गये धन को सुरक्षित रखना चाहिये,किसी भी प्रकार से बिना एस्टीमेट के काम नही करना चाहिये,शराब या तामसी कारकों से ग्रस्त होने के बाद धन को अपने पास नही रखना चाहिये।
  • जातक का धन किसी न किसी कारण से अक्समात नष्ट होता है,इसलिये अधिक धन साथ लेकर नहीं चलना चाहिये।
  • जातक को नाना या नानी परिवार से कोई सम्पत्ति मिले तो उसे अपने परिवार यानी पुत्र पुत्रियों के प्रति खर्च नही करनी चाहिये,अधिकतर इस योग में नाना परिवार पर जातक के पैदा होने के बाद लगातार दुष्प्रभाव ही मिलते हैं,जातक को नाना परिवार की उन्नति और उस परिवार की सुरक्षा के लिये पत्नी के या पति के नाना परिवार से बनाकर चलना चाहिये।
  • अपनी राशि के आदमी या औरत के साथ कभी भी एक साथ दुपहिया वाहन पर नही चलना चाहिये,अन्यथा शरीर के किसी भी अंग पर कोई भी असर हो सकता है।
  • जातक की कामशक्ति इस योग के कारण अधिकतर क्षीण होती है,इसके लिये जातक अधिक से अधिक पौष्टिक वस्तुओं का सेवन करना चाहिये,और जातक को कामसुख के लिये दवाइयों का हरगिज प्रयोग नहीं करना चाहिये।
  • इस योग के बाद जातक को गुदा वाली बीमारियां जैसे पाइल्स,भगन्दर,आंत का सडना और मल का बंधा होने के कारण कई तरह की बीमारियां होती है इसलिए जातक को उचित मात्रा में पानी का सेवन करना चाहिये।



अहिर्बन्धु :

 

 

यह कालसर्प दोष बहुत उत्तम माना जाता है और अगर अन्य ग्रह बल देते है तो जातक उम्र और धन के मामलों में उत्तम होता है,तुला और मकर लगन वालों के लिये यह राहु बेकार का होता है। अन्य के लिये यह कालसर्प एक पहरेदार की तरह से जातक की रक्षा करने का मालिक होता है,जातक जो कह देता है वह पूरा होता है,जातक को आंख बन्द करने के बाद विचार करने की आदत होती है और वह जो द्र्श्य आंख बन्द करने के बाद देखता वे द्र्श्य कालान्तर में सत्य होते देखे गये हैं। ऐसा व्यक्ति सवा सात सौ दिन पहले किसी भी बात का अनुमान लगा कर अगर बात को कह दे तो वह पूर्णत: सत्य मानी जाती है,इस प्रकार के जातक अक्सर प्लानिंग और मीडिया के अन्दर जाकर अपनी कलम और जुबान को हथियार की तरह से प्रयोग करते है,और जो काम बहुत बली नही कर पाता है अक्सर इस प्रकार के जातक कर लेते हैं। इस प्रकार के कालसर्प दोष वाले व्यक्ति के पुत्र और पिता की स्थिति अच्छी होती है,जातक अपने समाज में राजनीति में और धर्म तथा जातिगत मामलों में लोगों पर छाजाने वाला होता है,लालकिताब के अनुसार यहां का राहु मंगल के पक्के घर में होता है और मंगल की कन्ट्रोलिंग पावर की बजह से कोई गलत हरकत नही करता है,अगर किसी प्रकार से मंगल भी इस राहु का साथ दे रहा हो तो जातक एक बडे शासक के रूप में अपनी स्थिति को जाहिर करता है। राहु पर अगर किसी प्रकार से शुक्र का प्रभाव पडता है तो भी जातक को चमकदमक और फ़िल्मी स्टाइल पसंद नही होगी,वह अपने उद्देश्य के लिये तो इस प्रकार की आदतों में जा सकता है लेकिन हमेशा के लिये नही जा सकता है,ऐसा जातक पति या पत्नी और धन सम्पत्ति के मामलों में उत्तम किस्म का इन्सान ही माना जाता है। राहु अगर किसी प्रकार से धनु या मीन राशि का हो तो उसके मंदे असर के कारण उसके भाई बन्धु ही उसकी सम्पत्ति को खराब करते है,उसकी पारिवारिक जिन्दगी में उसकी खुद की बहिने दखल देतीं है और अक्सर इस प्रकार से जातक के जीवन में तलाक जैसे केश बनते देखे गये हैं।इस प्रकार के प्रभावों के लिये भी चांदी की डिब्बी में चावल अपने निवास में रखने से इस प्रकार के कालसर्प दोष में सुधार मिलता है,अक्सर इस प्रकार के कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव जातक के भाई दिखाते है,वे शराब कबाब और अन्य मामलों में दोषी होते है और जातक के लिये एक अभिशाप बनकर जीवन को गर्त में डालने वाले होते हैं। अगर नवें केतु के बाद के भावों में अन्य ग्रह तथा बारहवें घर में मंगल के अलावा और अन्य ग्रह हों तो जातक के जीवन में उसके साधन पुत्र भतीजे और मान्जे उसके जीवन में नयी नयी समस्यायें लेकर परेशान करेंगे और बुध वाले कारक जैसे बहिन बुआ बेटी भी किसी न किसी प्रकार के चारित्रिक या भौतिक मामलों में जातक को परेशान करने वाले होंगे। इस कालसर्प योग की एक और पहिचान है कि जातक का पति या पत्नी ज्योतिष से बहुत लगाव रखता होगा। इस राहु का सबसे बडा दुष्प्रभाव बहिन बुआ या बेटी पर होता है,यानी बुध और सूर्य अगर किसी प्रकार से राहु का साथ दे रहे हों और कुन्डली में मंगल खराब हो तो बहिन बुआ या बेटी जातक की उम्र के बाइसवें या तेईसवें साल में अथवा चौतींसवी और पैंतीसवीं साल में विधवा हो सकती हैं।इस प्रकार के योग में जातक को पुराने वाहन खरीदने और उनको प्रयोग करने तथा पुराने वाहनों का सामान अपने पास रखने,गणेश पूजा से विमुख होने से भी जातक को भारी हानि हो सकती है। जातक जब भी सफ़ेद कपडे प्रयोग करेगा जातक के कपडों पर कोई न कोई दाग लग ही जायेगा। जातक को अपनी दाहिनी भुजा पर सौंफ़ और मिश्री लाल कपडे में बांध कर रखने से इस प्रकार के कालसर्प योग में फ़ायदा होता है। जातक की माता को कभी भूल कर नीले कपडे नही पहिनने चाहिये,जातक को नीलम नही धारण करना चाहिये,जात को जब भी घर से बाहर जाता है उसे रविवार को पान सोमवार को दर्पण मंगल को गुड, बुध को धनिया गुरु को राई शुक्र को दही और शनि को अदरक का प्रयोग करके जाना चाहिये,यह उपाय सभी प्रकार के कालसर्प दोषों के लिये मान्य है।

  • जातक को कभी भी अचानक गाली गलौज से बात नही करनी चाहिये.
  • लडने के लिये उतारू होने पर खून खराबा हो सकता है इसलिये इस प्रकार के स्थानो से दूर ही रहना चाहिये.
  • शनि के प्रति दान नही करना चाहिये,बल्कि शनि वाले कारकों से सामान को ग्रहण करना चाहिये.
  • काले कपडे पहिनने वाले दाढी रखकर बाबा का भेष बनाकर दान लेने वाले और हाथ के इशारे करने वाले लोगों की बातों में नही आना चाहिये.
  • घर की छत पर खडे होकर कभी भी नीचे झांकना नही चाहिये,और न ही किसी ऊंचे स्थान से कूदने और छलांग लगाने की कोशिश करनी चाहिये.
  • मीडिया और समाचार पत्रों में कार्य करने वाले लोगों का आदर करना चाहिये.
  • दादा या दादी की सेवा करना चाहिये तथा पितृ दोष की मुक्ति के लिये हर शनिवार को कौओं को चावल और घी मिलाकर लड्डू बनाकर खिलाने चाहिये.
  • धन खर्च करने के लिये अचानक कोई फ़ैसला नही करना चाहिये,और न ही लाटरी सट्टा और जल्दी से धन आने वाले क्षेत्रों में अपनी रुचि को लगाना चाहिये.
  • वाहन से सम्बन्धित व्यवसाय करने वालों को चाहिये कि अपने वाहनों के आगे स्वास्तिक का निशान लाल रंग के सिन्दूर से बना लेना चाहिये.
  • सन्तान का रुझान कम्पयूटर और नेटवर्किंग की तरफ़ अधिक जाता है,उसे इस काम में आगे बढाने के उपाय करने चाहिये.


कपाली :

 

 

 

इस कालसर्प योग में राहु चौथे भाव में होता है और केतु दसवें भाव में होता है। चौथा भाव माता मन मकान का होता है,इस भाव से वाहन के लिये भी माना जाता है,जानकार लोग इसी भाव के अन्दर होते है,सुख का स्थान भी यही होता है,जातक के जन्म का स्थान भी इसी भाव को जाना जाता है,कालपुरुष के अनुसार यह भाव चन्द्रमा का होता है और राहु चन्द्रमा के साथ मिलकर धर्मी हो जाता है,वह क्या करे और क्या नही करे इस कारण जातक के साथ कभी अनहोनी नही करपाता है,इस भाव में इस योग के कारण जातक का खर्चा बहुत होगा,लेकिन खर्चा शुभ कामों में ही होता है,जातक कभी भी अनर्थ और चोरी चकारी के काम में नही जाता है। इस योग के अन्दर अगर शुक्र सही हालत में हो,तो जातक की शादी के बाद ससुराल खानदान की माली हालत सुधरती चली जाती है ससुराल का घर मालामाल हो जाता है,जातक की हालत अगर चौबीस साल की उम्र तक शादी हो जाती है तो बहुत खराब रहती है लेकिन शादी अगर चौबीस साल के बाद होती है और सन्तान के पैदा होने के दिन से जातक के माता पिता की हालत सुधरती चली जाती है,यह हाल जातक की उम्र की अडतालीस साल तक होती है। इस योग वाले व्यक्ति अगर किसी प्रकार से अपने द्वारा घर के अन्दर लैट्रिन का निर्माण करवायें,जमीन के नीचे पानी इकट्ठा करने वाले साधन बनवायें घर के अन्दर भट्टी या बेकरी वाले काम करें,कोयले की खरीद बेच करें या शराब का ठेका या वाहन चलवाने के काम करें तो यह राहु साधनों के साथ जातक की गृहस्थी को चौपट कर देता है। जातक की माता पर बहुत बुरा असर तब और पडता है जब राहु के साथ चन्द्रमा भी स्थापित हो,अगर राहु के साथ शुक्र चन्द्र भी स्थापित हों तो जातक का मन वैश्यागीरी या परपुरुष की तरफ़ जाता है,इस युति से जातक के एक से अधिक अवैद्य रिस्ते होने की सम्भावना रहती है। माता या पत्नी विजातीय होती है और शादी सम्बन्धों के बाद माता और पत्नी में नही बनती है। इस योग के अन्दर जातक जिस स्थान में पैदा होता है उस स्थान का उम्र के उन्नीसवीं साल से बरबादी शुरु हो जाती है,वह मकान या रहने का स्थान शमशान के माफ़िक हो जाता है। जातक के कई मकान बनते है और हर मकान के पूर्वोत्तर में किसी न किसी प्रकार से गंदा पानी इकट्ठा होने की निशानी आम मानी जाती है। जातक का मन टेक्नीकल कामों की तरफ़ जाता है और जातक उन कामों को आसानी से कर लेता है जो किसी न किसी प्रकार से मीडिया या फ़िल्म अथवा टीवी से सम्बन्धित होते है,जातक को कमन्यूकेशन वाले काम भी पसंद होते है,लेकिन चन्द्रमा का राहु के साथ सम्बन्ध होने से जातक की रुचि नीच लोगों के साथ रहने और तामसिक कारणॊं की तरफ़ ध्यान जाने के प्रति माना सकता है। इस योग के अन्दर अगर जातक के भाई उसे परेशान करें और वह उनको माफ़ करता जाये तो जातक के ऊपर यह योग अपना गलत असर नही देता है,कुन्डली में शनि का स्थान अगर सही है तो जातक के पास धन की कमी भी नही रहती है,यहां तक जातक को मिट्टी से सोना बनाने के लिये भी तकलीफ़ नही होती है और वह आराम से कबाड से जुगाड बनाने में माहिर होता है। इस योग में अगर जातक का ध्यान किसी भी प्रकार से दूसरी औरतों या दूसरे मर्दों की तरफ़ हो तो इस योग के कारण जातक का पारिवारिक जीवन बिलकुल समाप्त हो जायेगा और वह जो चाहता है वह सदा के लिये नही हो सकता है,इस कारण से जातक के एक के बाद एक करके सात पुत्रियां पैदा हो सकतीं है और नर औलाद की कोई गुंजायस नही रहती है,अगर होती भी है तो वह अपंग या नालायक निकल जाती है,जो केवल जातक के द्वारा की गयी गलत कमाई और साधनों को समाप्त करने के लिये ही आती है। जातक के इस योग में अगर मंगल का सम्बन्ध किसी न किसी प्रकार से केतु से हो रहा हो तो जातक का का चरित्र अवश्य गंदा होगा,वह अपनी माता जैसी स्त्री या पिता जैसे पुरुष से भी गलत सम्बन्ध स्थापित करने में संकोच नही करेगा। इस योग का उपाय है कि जातक अपने मकान की नींव के नीचे दूध या शहद दबाये तो उसके चरित्र के साथ नर औलाद का विषम असर दूर हो सकता है,इसके साथ व्यापार के स्थान में गद्दी के नीचे दूध को किसी मिट्टी के बर्तन में रखकर फ़र्स के नीचे दबाये तो मिलने वाला दुष्प्रभाव दूर हो सकता है। राहु के साथ शनि होने से जातक के तीन पुत्र तक किसी न किसी कारण से समाप्त हो सकते हैं।

  • कुसंगति में जाने से बचना चाहिये.
  • अपने जीवन साथी के अलावा रति करने से यौन रोग पैदा हो जाते है
  • पुत्र संतान में बाधा पैदा होती है इसके लिये पूर्णमासी को गंगा स्नान या दरिया के पानी से स्नान करना चाहिये.
  • नदी या तालाब में नहाते वक्त तांबे का गोल सिक्का पानी के अन्दर छोडना चाहिये.
  • हाथी दांत या पुराने वाहन को नही खरीदना चाहिये.
  • हवाई यात्रा के समय अपने कपडों में कोई भी लाल रंग का कपडा पहिनना चाहिये.
  • अपने मकान का सदर दरवाजा दक्षिण की तरफ़ नही रखना चाहिये,वैसे भी अधिकतर जातकों के दरवाजे उत्तर की तरफ़ होते हैं
  • मकान के सामने रहने वाले काले नि:संतान लोगों से बैर भाव नही करना चाहिये,और किसी भी प्रकार से गाली देने वाले लोगों से बचना चाहिये.
  • दाहिने कान में सोने की गोल बाली पहिनना चाहिये.
  • घर के अन्दर धार दार हथियार और बारूद वाले हथियारों के साथ कोई न कोई नमक का पात्र रखना चाहिये.