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ग्रहफ़ल

कुंडली में ग्रह फ़ल अपने अपने भावानुसार कौन सा फ़ल देता है और उस ग्रह के साथ अन्य ग्रह जब अपनी शक्ति को शामिल कर देते है तो वह किस प्रकार से अपने फ़लों को ग्रहों के अनुसार मिलाकर फ़ल देना शुरु कर देता है उसके लिये यह लेख आपके लिये ज्योतिष में बहुत ही लाभदायक होगा।

केतु का भावानुसार फ़ल :-

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तंत्र में केतु को हत्था जोडी से जोडकर बताया गया है,केतु के लिये इस तांत्रिक वस्तु के बारे में कहा जाता है कि शादी नही हो रही हो तो केतु की इस हत्थाजोडी में सिन्दूर लगाकर और गुलाब के इत्र से भिगोकर हमेशा पास में रखा जाये तो जैसे ही गोचर से शुक्र का प्रभाव शरीर पर आयेगा,यह हत्थाजोडी शादी करवाने और मन भावन जीवन साथी को प्राप्त करवाने के लिये उत्तम व्यवस्था मानी जाती है। लेकिन बिना किसी मंत्र और सिन्दूर या खुशबू के यह बिलकुल ही बेकार मानी जाती है,खाली रखने या बिना किसी प्रयोजन के घर में रखने से यह घर की अन्य कारक वस्तुओं आदि को समाप्त करने के बाद खुद को समाप्त कर लेती है,इसे घर में सिन्दूर से पूरित करने के बाद किसी धातु की बन्द डिब्बी में रखना चाहिये,तथा ग्रहण और होली दीपावली को इसे जगाने के लिये धूप अगरबत्ती और दीपक के साथ इसके लिये सम्बन्धित मंत्रों का जाप करना चाहिये।

चौथे भाव का केतु

चौथे भाव से केतु का विस्तार से वर्णन करने के लिये भावना यही है कि व्यक्ति का जन्म चौथे भाव से ही शुरु होता है,माता का गर्भ और माता की गोद चौथे भाव से ही जानी जाती है। चौथे भाव के केतु के लिये सबसे पहले कालपुरुष की कुंडली के अनुसार चन्द्रमा का असर माना जाता है,दूसरे यह जिस राशि में होता है उस राशि के प्रभाव को उसी प्रकार से ग्रहण कर लेता है जैसे मन्दिर में लगातार जलती अगरबत्तियों की खुशबू को मन्दिर की दीवाले और अन्य वस्तुयें जो मन्दिर में रखी होती है वे ग्रहण कर लेती है। राशि के असर के बाद केतु की द्रिष्टि जिन भावों पर होती है उन भावों पर वह कर्क राशि के प्रभाव के साथ उपस्थिति राशि का प्रभाव भी देता है,और जो ग्रह अपना प्रभाव विभिन्न भावों से इस पर दे रहे होते है उन प्रभावों को भी द्रिष्टि देने वाले स्थानों पर प्रेषित करता है। जैसे के व्यक्ति की कुंडली में चौथे भाव में मकर राशि है और मकर राशि के केतु पर कर्क राशि के राहु का असर तो जरूरी ही होगा,जो कि केतु से सप्तम में विराजमान होगा,इसके साथ ही जो ग्रह राहु के साथ होंगे जैसे मानलो राहु के साथ चन्द्रमा और शुक्र है तो केतु को बल देने वाले ग्रह शुक्र और चन्द्रमा के साथ राहु भी बल देगा,चौथे भाव के त्रिकोण यानी बारहवे भाव मे और अष्टम भाव में जो ग्रह होंगे उन भावों के ग्रह और राशियां भी इस भाव के केतु को देंगे,साथ ही द्रिष्टि देने वाले ग्रह जैसे लगन में मंगल होगा तो वह भी मकर राशि के केतु पर तुला राशि के मंगल का प्रभाव देगा। इस प्रकार से मकर राशि के केतु पर सर्व प्रथम कर्क राशि,फ़िर मकर राशि,उसके बाद केतु से त्रिकोण में वृष राशि,जो वृश्चिक राशि के प्रभाव से पूर्ण होगी,उसके बारहवे भाव में स्थिति कन्या राशि जो मीन राशि से मिक्स होगी सप्तम की राशि जैसे कर्क और कर्क राशि के अन्दर मकर का भी प्रभाव मिक्स होगा देने के लिये अपना असर देगी। चौथे भाव का केतु क्या क्या फ़ल देता है आइये आपको आगे बताते हैं.

चौथे भाव के केतु के फ़ल

चौथा भाव कालपुरुष की कुंडली के अनुसार कर्क राशि का प्रभाव देने वाला होता है,इस भाव में प्रभाव देने वाली राशियां मकर राशि दसवें भाव से वृश्चिक राशि अष्टम भाव से,मीन राशि बारहवें भाव से अपना राशि वाला प्रभाव देती है,केतु नकारात्मक होता और हमेशा राहु की शक्ति पर निर्भर होता है,चौथे भाव के केतु पर दसवें भाव के राहु का असर जरूर होता है,दसवें भाव का राहु कार्य भाव में होता है,और कार्य को देने के लिये वह केतु का सहारा लेता है,चौथे केतु को वह अपने कार्य के लिये साधनों के रूप में प्रस्तुत करता है। लालकिताब के अनुसार केतु को कुत्ता भी कहा जाता है और पूंछ वाले जानवरों के लिये भी माना जाता है,चौथे भाव का केतु उस कुत्ते के लिये माना जाता है जो घर में सहायता देने के लिये हमेशा तैयार हो,उसे कार्य भाव का बल आदेश से देना पडता है और कार्य को देने के बाद केतु उतना ही कार्य करता है जितना कि उसे आदेश दे दिया जाता है,अगर केतु को गुरु का सहारा किसी तरह से मिल गया होता है तो वह ज्ञानी कुत्ते के रूप में जाना जाता है,बुध का सहारा मिल गया होता है तो वह बातूनी कुत्ता और कमन्यूकेशन से साथ देने वाला कुत्ता बन जाता है और आवाज के साथ चलने के लिये हमेशा तैयार होना पडता है,रिस्तों में इस केतु को ससुराल में जंवाई कुत्ता,बहिन के घर भाई कुत्ता,और मामा के घर भानजा कुत्ता के रूप में भी माना जाता है,लेकिन साली के लिये जीजा कुत्ता भी बन जाता है,भाभी के लिये देवर भी कुत्ता बन जाता अगर अलग अलग ग्रहों से इस केतु का बखान किया जाये,कार्यों के अन्दर अगर राहु सूर्य से शक्तिमान है तो यह एक सरकारी कुत्ता भी बन जाता है राहु पर अगर आगे या पीछे से बुध का असर है तो यह डाक बांटने वाला डाकघर का पोस्तमेन रूपी कुत्ता बन जाता है,जो दरवाजे पर जाकर चिट्ठिया बांटा करता है,इसके अलावा अगर शनि ने इसका साथ ले लिया है तो यह मकान को बनाने वाला और ईंटों को चिनने वाला मिस्त्री नामका कुत्ता भी बन जाता है। आफ़िस में चपरासी या केयरटेकर की नौकरी करने वाला कुत्ता भी चौथे भाव के कुत्ते के रूप में माना जाता है,पानी का नल भी केतु के रूप में है ह्र्दय की बीमारियों में सहायक डाक्टर भी केतु के रूप में है। घर के अन्दर बिछा शानदार पलंग भी केतु के रूप में अपना प्रभाव सामने होकर देता है,मंगल से कंट्रोल होने पर यह हवा देने वाला पंखा भी बन जाता है,घर में देखा जाने वाला टीवी भी बन जाता है और कम्पयूटर बनकर घर बाहर की जनता से मिलने और समाचारों को आदान प्रदान करने वाला भी बन जाता है। घर के ऊपर में दिखने वाली ऊंचाई भी केतु की करामात होती है,उत्तर दिशा में लगा कोई खम्भा या मोबाइल का टावर भी केतु का भान करवाता है,उत्तर दिशा में बने मंदिर या गिरजाघर की चोटी को भी केतु के रूप में माना जाता है,किसी बिना पत्ते के पेड को भी इसी केतु की श्रेणी में मान लिया जाता है केतु का रूप पानी की राशि में होने के कारण इस केतु को पानी में खडा हुआ खम्भा भी मान लिया जाता है,और पानी के किनारे बना एक घर जो कहीं भी लेजाकर सिफ़्ट कर दिया जाये वह भी केतु की श्रेणी में आजाता है। चौथे भाव के केतु वाले जातक के मन में हमेशा दुर्गा की भक्ति विराजमान रहती है,कारण केतु चौथे भाव में रहकर ममत्व का रूप ग्रहण कर लेता है,और जो भी भावनायें धर्म और विश्वास के प्रति बनती है वे सभी माँ दुर्गा के प्रति मानी जाती है। जातक को दुर्गा के भजन गाने और सुनने के लिये भी माना जाता है। अक्सर चौथे भाव के केतु वाले व्यक्ति के पास अगर वह शनि या चन्द्र शुक्र और बुध की राशियों में नही है तो बहू का सुख और अगर वह सूर्य मंगल गुरु की राशियों में है तो दामाद का सुख अच्छा मिलता है। केतु अपनी शक्ति को बडी ही ईमानदारी से राहु और उसके तीसरे भाव पंचम भाव और नवम भाव के ग्रहों से ग्रहण करता है और उसके प्रभाव से वह जीवन में तरक्की के रास्तों पर चलता चला जाता है। अगर केतु के लिये यह आवश्यक है कि किसी प्रकार से गलत राशि या गलत ग्रह का असर न मिले,कभी कभी गोचर का ग्रह केतु को अपने बस में कर लेता है और केतु खुद को काटने के लिये अपना प्रभाव देने लगता है,कमजोर राशि का शनि अगर कमजोर होकर जातक के केतु पर असर देता है तो जातक केवल अर्दली के रूप में काम करता है लेकिन शनि अगर ऊंची राशि में और किसी ज्ञान वर्धक ग्रह के साथ मिलकर अपना असर देता है तो जातक के अन्दर कानूनी बातों को समझने और मर्यादा में रह कर चलने की औकात को दे देता है।

केतु की युति अन्य ग्रहों से होने पर मिलने वाले फ़ल

चौथा केतु कर्क राशि में होता है और प्रभाव भी मानसिक देता है,अगर चौथे भाव में कोई अन्य राशि है तो मिलने वाले फ़लों में उस राशि का प्रभाव भी शामिल हो जायेगा,जैसे कर्क राशि में होने से घर माता पानी पानी वाले साधन जानकार लोग वाहन और आना जाना गीत लिखना भावनाये प्रदर्शित करना आदि होता है,लेकिन अगर कोई अन्य राशि जैसे कि मकर राशि चौथे भाव में हो तो केतु का फ़ल मकर राशि से सम्बन्धित हो जायेगा,घर में भी रहना है और काम पर भी जाना है,यानी घर के कामों के साथ साथ आफ़िस या कार्य स्थान के भी काम करने है,घर की गाडी में भी घूमना है और आफ़िस की गाडी को भी यूज करना है,अथवा गाडी में केवल घर आने और आफ़िस जाने के लिये प्रयोग करना है,घर में माता की तीमारदारी भी करनी है और कार्य करने के स्थान में माता जैसी स्त्री की भी आज्ञा का पालन करना है,घर के अन्दर की बातें आफ़िस में ले जानी है और आफ़िस की बातें घर के अन्दर भी लानी है,घर में रहकर भावनात्मक गीत लिखने है तो आफ़िस में जाकर कार्य वाले रूप लिखने है,घर के पलंग पर सोते समय ख्यालों में जाना है तो आफ़िस में कार्य करते समय बिलकुल ही सजग रहना है,घर के अन्दर पानी वाले साधनों का बन्दोबस्त करना है तो आफ़िस के अन्दर जाकर जनरल पब्लिक को संभालने के काम करने है,घर के अन्दर नौकर या किसी रिस्तेदार से काम करवाना है,या रिस्तेदार के यहाँ उसकी हुकुम उदूली करनी है तो आफ़िस में जाकर मुख्य कार्याधिकारी की हुकुम उदूली करनी है,इसी प्रकार के अन्य कार्यों को करना है। इसके साथ ही जब चौथे भाव की राशि का योगात्मक रूप इस राशि के त्रिकोण की राशियों से जैसे चौथे भाव की पंचम की राशि वृश्चिक राशि होती है,इस राशि का स्वभाव जोखिम लेना होता है,इस राशि के सामने अच्छे अच्छे की बोलती बंद हो जाती है,इस राशि वालों को डर नही लगता है,वे एक बार काल से भी कुश्ती लड सकते है,इस राशि का स्वभाव खुद को सम्भालने का भी होता है,यह अपने को तैयार करके रखने वाली राशि होती है,यह अपने लोगों के लिये अपने शरीर का त्याग भी कर देती है,इस राशि का उद्देश्य लडाई करने का होता है,जब इस राशि की हार होनी होती है तो यह हार नाम के बोझ को लेकर नही रहती है,खुद को अपने ही प्रयास से समाप्त कर लेती है,यह राशि गूढ होती है,यह उन कारणों पर विश्वास करती है जो साधारण आदमी की पहुंच से बहुत दूर होते है,आदि कारण इस राशि के माने जाते है,इस राशि में जैसे कि मैने पहले केतु के मकर राशि में होने का वर्णन किया है के अनुसार शुक्र की वृष राशि स्थापित होती है,दोनो राशियों के प्रभावों को मिलाने से जैसे वृष राशि का सम्बन्ध धन से होता है,तो धन को खर्च करने में व्यक्ति के अन्दर डर नही होगा,व्यक्ति को साहसिक कामों के लिये धन खर्च करने से कोई हिचक नही होगी,धन को वह गूढ कार्यों के लिये आराम से खर्च करेगा,इसके बाद जो भी काम जोखिम के होते है उनसे वह धन को कमाने की हिम्मत रखेगा,पराशक्तियों के द्वारा या अपने प्रयास से पराशक्तियों की साधना से वह अपने धन को बढाने के काम करेगा,यह राशि खाने पीने के साधनो की तरफ़ भी अपना इशारा करती है,जातक के अन्दर आमिष खाने के लिये या शमशानी भोजन के लिये भी कोई हिचक नही होगी,लेकिन मंगल अगर कहीं भी ऊंचे स्थान में अपना स्थान बनाकर विराजमान है तो वह इन खानों से दूर रखने में मदद करेगा,आदि बाते जानी जाती है,इसके साथ चौथे भाव से नवें भाव में मीन राशि का होना पाया जाता है,इस मीन राशि में जो भी राशि होती है वह अपना प्रभाव भी मीन राशि के अन्दर सम्मिलित कर लेती है,मीन राशि मोक्ष की राशि है और कन्या राशि सेवा की राशि है,मीन राशि जातक के विदेश में निवास की राशि है तो कन्या राशि विदेश में सेवा करने के लिये अपना बल देगी,मीन राशि शांति प्रदान करने की राशि है तो कन्या राशि कर्जा दुश्मनी बीमारी देकर अशान्ति देने वाली राशि है इस राशि के स्वभाव से बैंक बीमा और धन वाले साधनों का विदेश से सम्बन्ध भी बन जाता है। राशियों के अलावा केतु का सम्बन्ध ग्रहों से होने पर भी अपना अपना फ़ल मिलता है,जैसे सूर्य से सम्बन्ध होने पर यह शेर कुत्ते की लडाई को मान्यता देता है,जीवन इस प्रकार के व्यक्ति से सम्बन्ध बन जाता है जो इस केतु के ऊपर हमेशा गुर्राने का ही कार्य करता है और जातक को भीगी बिल्ली बनकर रहना पडता है,अगर बुध अपना प्रभाव देता है तो केतु के साथ बुध होने से यह अंग्रेजी का अच्छा जानकार होता है और बोलने में अन्य भाषाओं का भी प्रयोग करने लगता है,केतु से पंचम में बुध होने से वह अपनी जुबान को खरी रखने वाला होता है और उसी तरह से बात करता है जैसे कि बिच्छू अपना डंक मार रहा हो,बुध अगर केतु से नवां होता है तो बहिन बुआ या बेटी का पति सहायक बन जाता है,मुशीबत के वक्त सहायता करने वाला और जीवन तथा धन का रक्षक बनकर सहायता करने वाला होता है। यह केतु दुभाषिया का काम भी करता है,जीवन में आने वाली मुशीबतों के वक्त अपनी जुबान से किये जाने वाले कार्यों का यह भुगतान प्राप्त करता है,ज्योतिष या गूढ विषयों में यह अपनी जानकारी अच्छी रखता है,नेटवर्किंग और कम्पयूटर का अच्छा ज्ञान होता है,शनि के होने से घर में वकालत का कार्य करता है या कमजोर होने पर दर्जी का कार्य करता है,कम्पनियों को जोडने का नये ग्राहक बनाने का और मकान के निर्माण करने का सहायक बन जाता है,शनि का अष्टम में होने से कार्य करने वाले आदमियों को विदेश भेजने के लिये दलाली करने वाला जमीन जायदाद या शनि वाले कारकों को खरीदने बेचने का कार्य करने वाला माना जाता है,दवाई की कम्पनियों में कार्य करने वाला और अस्पताल के अन्दर कम्पाउंडरी का कार्य करने वाला बन जाता है,शमशान में कब्र खोदने वाला बन जाता है,या गंदी बस्ती में पडा रहने वाला व्यक्ति बन जाता है। इस प्रकार से अन्य ग्रहों के साथ इस केतु का अपना अपना सामजस्य बनता ह

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इस चित्र मे देखो इस लडकी की लगन का केतु छठे भाव के मंगल बद से पीडित कर रहा है। मिथुन लगन की यह लडकी बहुत बातूनी है,कालपुरुष से मेष राशि लगन की मान्यता को देती है,शरीर के अंगों में यह सिर की कारक होती है,केतु के मिथुन राशि में आते ही नीच के केतु की मान्यता हो जाती है,और राहु अपने धनु राशि का सप्तम में चला जाता है,राहु भी नीच का प्रभाव देता है,इसी के साथ मंगल की वृश्चिक राशि कुंडली के छठे भाव में विराजमान हो जाती है। और जब इस राशि में मंगल भी अपना प्रभुत्व जमा लेता है तो यह राशि पूरी तरह से खतरनाक हो जाती है,मंगल से अगली राशि में राहु विराजमान होता है और वह नीच का होने के कारण अपनी नीचता से बाज नही आता है,मंगल के दो रूप एक नेक और एक बद यह परिभाषा लालकिताब के अनुसार बताई जाती है,बद मंगल के देवता भूत प्रेत पिशाच आदि बताये गये है,और नेक मंगल के देवता हनुमान जी और उत्तम देव बताये जाते है,लेकिन रुद्रशक्ति के अनुसार व्रुश्चिक राशि का रुद्र शिवजी के रूप में भी माना जाता है,ग्यारहवा रुद्र हनुमानजी को बताया गया है,शिव अघोरी रूप में वृश्चिक राशि के माने जाते है,और जो व्यक्ति इस लडकी के लिये तांत्रिक प्रयोग करने वाला है वह इसके सप्तम भाव को प्रयोग करने के बाद इस लडकी पर अपने प्रयास को प्रेषित करेगा। एक बार इस लडकी के दरवाजे पर एक नंगा मैला कुचैला व्यक्ति जिसके अन्दर बदबू आ रही थी कुछ खाने के लिये मांगने के लिये आया,इस लडकी ने उसे घर के अन्दर बनी हुयी दाल और रोटी खाने के लिये देनी चाही,उसने इस लडकी से माँस पकाकर खिलाने के लिये कहा,इस बात पर इसे गुस्सा आयी और आसपास से दो चार लोगों को बुलाकर उस व्यक्ति दरवाजे से भगा दिया। वह व्यक्ति जाते जाते बोलकर गया कि एक तुझे भी नंगा नही घुमा दिया तो देखना। एक महिने के बाद यह लडकी अपने बाल नोचने लगी और भद्दी भद्दी गालियां देने लगी,आसपास के लोगों ने इसे मनोचिकित्सक को दिखाया,उसे पागल खाने में भर्ती कर दिया गया,लेकिन एक साल तक कोई इस लडकी पर दवाइयों और इलाज का फ़र्क नही आया,इसके परिजन इसकी जन्म पत्री और विवरण लेकर मेरे पास आये,मैने जन्म पत्री में देखा तो उपरोक्त ग्रह स्थिति सामने आयी। उपाय के लिये लडकी को उन तांत्रिक बाधाओं से मुक्ति के लिये केवल केतु को सबल बनाकर ही उसे सुधारा जा सकता था। केतु की सबलता के लिये दुर्गा उपासना और सप्तशती का हवनात्मक रूप भी करना जरूरी था। लेकिन जो उपाय सबसे अधिक कारगर साबित हो सकता था वह काली का विपरीत प्रत्यांगिरा स्तोत्र। नवरात्रों में मैने उस लडकी को उसके पति और भाई के साथ बुलवाया और विधि विधान से काली का महाविपरीत प्रतियांगिरा स्तोत्र का पाठ किया और अभिमंत्रित जल को उसे पिलाने लगा,दिनो दिन उस लडकी के अन्दर बदलाव आना शुरु हो गया,कभी कभी वह एकदम नर्वस हो जाती और बहुत जोर से हंसने लगती,कभी अचानक रोने लगती,कभी अचानक गालियां और तोडफ़ोड पर उतारू हो जाती,लेकिन मैने अपनी हिम्मत नही हारी,अष्टमी के दिन त्रिमधू से प्रत्यांगिरा का हवन किया और पेठा (एक प्रकार का फ़ल जो पेठा नामकी मिठाई के लिये प्रयोग किया जाता है) की बलि माँ काली को प्रदान की,प्रसाद लडकी को खिलाया,वह बहुत अच्छी तरह से बातें करने लगी और ऐसे लगने लगा जैसे उसे कुछ भी बीमारी नही है।

केतु फ़ल (दूसरा भाग)

केतु का दूसरा नाम सहारा देने वाले साधनों के रूप में जाना जाता है। बिना सहारे के बच्चा भी जन्म के बाद खडा नही हो सकता है,और जीवन उसके हाथ पैर शरीर के विभिन्न अंग सहारे के रूप में काम करते है। केतु की सीमा उसी प्रकार से अनन्त है जैसे कि राहु की सीमा,अन्य किसी ग्रह की सीमा को आराम से वर्णित किया जा सकता है लेकिन राहु केतु की सीमा को वर्णन नही किया जा सकता है। यह दोनो ही छाया ग्रह है और दोनो प्रकार की शक्तियों के रूप में काम करती है,दो प्रकार की शक्तियों में केतु नकारात्मक है लेकिन दिखाई देता है,राहु सकारात्मक है लेकिन दिखाई नही देता है। इस चित्र में आप देख रहे है कि पानी के अन्दर से दो कमल नाल निकले है और दोनो पर ब्रह्मा और विष्णु विराजमान है,यह दोनो सकारात्मक रूप के रूप में जाने जाते है ब्रह्मा का काम निर्माण करना है और विष्णु का काम ब्रह्मा के द्वारा निर्मित सृष्टि का पालन करना है,लेकिन आप देख रहे होंगे कि भगवान शिव शेर पर लेटे है,और उनकी नाभि से जो कमल नाल निकली है,और बडा सा कमल का फ़ूल है,उस फ़ूल पर पंचमुखी तथा दसभुजाओं को धारण करने वाली शक्ति कामाख्या देवी विराजमान है,यह शक्ति किसी भी जीव की सकारात्मक प्रवृत्ति को अवशोषित करने के बाद एक नये निर्माण का विकास करने के लिये जानी जाती है। संहार का ही दूसरा नाम नया निर्माण है,यह सब आप गीता में पढ सकते है,कि आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नये शरीर को धारण उसी प्रकार से करती है जैसे एक मनुष्य पुराने वस्त्र को त्याग कर नये वस्त्र को धारण करता है। माता कामाख्या को लगन के केतु के रूप में मान्यता दी जाती है,जैसे गुरु और मंगल का साथ अगर बारहवें भाव में है तो माँ तारा का रूप मिलता है उसी प्रकार से लगन के केतु के लिये माता कामाख्या को जाना जाता है। संसार का कोई भी जीव बिना उसी प्रकार के जीव के अपनी नयी देह को नही धारण कर सकता है,एक ही प्रकार के जीव के अन्दर दोनो प्रकार के जीव एक सकारात्मक और नकारात्मक का भी होना जरूरी है। जैसे पुरुष सकारात्मक है और स्त्री नकारात्मक है। स्त्री का काम एक तरफ़ पुरुष की सकारात्मकता को बढाने का है और दूसरी तरफ़ मैथुन के द्वारा उस सकारात्मकता को अपने गर्भ में स्थापित करने के बाद नये जीव के निर्माण करने का है। मतलब एक तरफ़ तो वह अपने पति को विभिन्न प्रकार के भोजन फ़ल और अन्य साध्य साधनों के द्वारा पोषित करती है तो दूसरी तरफ़ अपने मैथुन के दौरान उस वीर्य नामक पके हुये पोषित रस को ग्रहण कर लेती है। जो शरीर माता के द्वारा पैदा किया जाता है वह नये रूप में होता है माता उस शरीर को पालने पोषने में कोई कोताही नही करती,तो स्त्री रूप में उस पाले हुये शरीर का अवशोषण करने के बाद नयी शक्ति को पैदा करने से माना जाता है। यह क्रम लगातार चलता रहता है। शरीर की निर्माण प्रक्रिया को पूरा करने के लिये नकारात्मक और सकारात्मक दोनो रूपों का होना अति आवश्यक होता है,चाहे वह शरीर मनुष्य रूप में हो या जानवर या कीट पतंग पक्षी वृक्ष किसी भी रूप में हो,नकारात्मक और सकारात्मक रूप होने अति आवश्यक है। योनि रूप में माता कामाख्या और लिंग रूप में भगवान शिव को पूजा जाता है,यह दोनो रूप ही संसार की उत्पत्ति और विनाश के कारक माने जाते है। लगन के केतु के लिये अक्सर लोगों के अन्दर भ्रान्ति रहती है,कि यह केतु केवल सहायक के रूप में ही पैदा हुआ है और जीवन में तरक्की नही कर सकता है। लेकिन यह सोच कतई गलत है,संसार का हर जीव जन्तु वृक्ष आदि सभी के लिये किसी न किसी प्रकार की सहायता के लिये ही पैदा हुये है। प्रकृति के संतुलन के लिये जहाँ सकारात्मकता अधिक पैदा हो जाती है वहाँ प्रकृति पहले से ही नकारात्मकता को पैदा करने के लिये नकारात्मकता को तैयार रखती है। जैसे एक वन में अगर सौ हिरण उसने पैदा केवल इसलिये किये है कि वे घास पात और वृक्षों को खाकर उनकी संख्या को प्रकृति के अनुपात के हिसाब से संयत रखें,तो वे हिरण जो सौ से अधिक नही हो जावें,इसलिये दस शेर या हिरणों को मारने वाले जीव भी पैदा कर दिये है। जो जीव बहुत ही सशक्त है उनके लिये बुद्धिजीवी जीव पैदा कर दिये है जैसे कि मनुष्य। मनुष्य के संतुलन के लिये भी प्रकृति अपने अपने समय पर कोई ना कोई विनाश लीला उसी की गल्तियों से प्रस्तुत कर देती है। इसके अलावा भी मनुष्य मनुष्य को ही मारने और अधिक संख्या में नही होने के प्रति उसके अन्दर प्रकृति एक प्रकार का दुर्भावना रूपी बीज बो देती है,जैसे भाई भाई तो आराम से रह सकते है लेकिन उनकी पत्नियां आपस में बैर भाव और दुर्भावना से एक दूसरे को साथ साथ नही रहने देतीं,अथवा उन दोनो के अन्दर उन आवश्यकताओं को पैदा कर देती है कि वे हार कर अलग अलग हो जाते है। कोई किसी को धर्म से मार देता है कोई किसी को समाज से मार देता है कोई देश के नाम से कोई जाति के नाम से कोई राजनीति के नाम से यह प्रत्यक्ष रूप से मारक रूप नही होकर अप्रत्यक्ष रूप से मारक शक्तियां सर्व शक्तिमान मनुष्य के अन्दर भी प्रकृति ने दी है। सहायक के रूप में लगन का केतु पांच प्रकार से नकारात्मकता भरता है,और उसी अनुपात में लगन से सप्तम का राहु खाली जगह को भरने का काम करता है,और सकारात्मक बल देता है। जैसे लगन का केतु तीसरी नजर से तीसरे भाव को देखता है और जातक के अन्दर अपनी लिखने की कला को या चित्रकारी की कला को देता है कलम और पेपर देता है कम्पयूटर देता है की बोर्ड को देता है तो सप्तम का राहु चित्रकारी को करने के लिये दिमाग को पैदा करता है कम्पयूटर के अन्दर सोफ़्टवेयर के रूप में दिमाग को देता है,तीसरा भाव अपने को प्रदर्शित करने का भी है,उसके लिये लगन का केतु अपने छोटे भाई बहिनों के अन्दर नकारात्मकता को भरता है तो सप्तम का राहु उन छोटे भाई बहिनो के अन्दर उनसे पंचम स्थान में बैठ कर अचानक विद्या वाला योग पैदा कर देता है और वे अच्छी विद्या को प्राप्त करने के बाद दिमागदार बन जाते है। लगन का केतु घर से बाहर रहने का बल देता है तो सप्तम का राहु बाहर रहने के लिये वहाँ के रीति रिवाज और खानपान तथा अलावा सम्बन्धों के प्रति अपना बल देता है,जिससे व्यक्ति को बाहर रहने के लिये कोई परेशानी नही हो सके। लगन का केतु अपनी पंचम द्रिष्टिसे सन्तान भाव को देखता है और उसे खाली रखने की कोशिश करता है,लेकिन सप्तम का राहु अपने ग्यारहवें स्थान को एक ऐसा सकारात्मक पुत्र दे देता है जो अन्य सौ में अपना नाम कमाकर चलने वाला हो और पूरे परिवार के अलावा अन्य लोगों के लिये भी अपना बल देने के लिये माना जाये। लगन का केतु धन से पराक्रम से घर से और शिक्षा से दूर करने की कोशिश करता है और जीवन साथी को भी वाचाल या झूठ बोलने की आदत देता है,शादी के बाद जातक का सामाजिक जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है,कितनी ही मेहनत की जावे वह बेकार सी साबित होती है,अचानक किसी ना किसी मामले में खर्च होना जरूर पाया जाता है। जातक को जीवन साथी की उंगलिओं पर नाचना जरूर पडता है,कारण अक्समात निर्णय लेने की आदत से वह किसी लायक नही रहता है। जितना बल जीवन साथी के द्वारा दे दिया जाता है,यानी जितनी चाबी भर दी जाती है उतना ही चलने के लिये राजी होना पडता है।

लगन का केतु और अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

केतु के द्वारा बनाई गई खाली जगह को मनुष्य आजीवन उसे भरने के लिये प्रयत्नशील रहता है,केतु का हाल गागर में सागर को पैदा करने जैसा होता है,जितना यह असरकारी होता है उतना ही मनुष्य प्रयत्न शील रहने के लिये मजबूर होता है। मैने पहले भी कहा है कि संसार की हर वस्तु और जीव के अन्दर राहु केतु का समावेश है,जैसे लकडी की बांसुरी को ही ले लीजिये,बांसुरी केतु है और उसे बजाने वाला और उसके छेद राहु है,कपडे की बटन केतु है,यह गोचर से जिस भाव में आता है उसी भाव की कारक वस्तुओं में रुकावट पैदा कर देता है,केतु का काम मोक्ष को प्रदान करना होता है,कार्य से केतु को कोई मतलब तब तक नही होता है जब तक कि राहु अपना आदेश नही दे। लगन का केतु अगर शनि से शासित है तो वह वकालत के गुण पैदा कर देता है,शनि केतु ही दर्जी की औकात देते है,लगन का केतु मारकेटिंग करने वाला व्यक्ति बन जाता है,शनि से पत्थर लोहा नौकरी प्रापर्टी आदि का काम करने लगता है,सूर्य से सरकारी नौकर बनकर काम करने लगता है और सरकारी कामों के अन्दर सरकारी आदेशों को प्रेषित करना और सरकारी आदेशों को बनाना,चुनाव आदि लडकर जनता के अन्दर विजयी बनना और फ़्रिर जैसे सरकार अपने कानून और कारणों से अपने कार्य करवाये उन्हे करना। शुक्र के साथ केतु का सामजस्य भी नही बैठ पाता है या तो जातक का दिल अपने को प्रदर्शित करने का होता है,या फ़िर जातक को बताये गये ढंग से कार्य करना होता है,जातक कार्य उसी प्रकार से करता है जैसे कोई कार्य प्री प्रोग्राम किया गया हो। कठपुतली इसका मुख्य उदाहरण है,उसके अंगों को हिलाने वाला कोई और,गाने वाला कोई और भावना को समझाने वाला कोई और होता है। इसी के साथ अगर गुरु केतु को लेलेते है तो गुरु जो सम्बन्धों का कारक होता है यह केतु सम्बन्धों को करवाने का कार्य करता है,जैसे कि शादी विवाह करवाना,किसी प्रकार से जो पहले से निर्देशित कानून है और उन्ही कानूनों के अनुसार ही व्यक्ति को सजा देना या सजा से बरी करने का काम भी गुरु केतु करता है,बहुत ही धार्मिक होने से जातक का ध्यान समाधि की तरफ़ मन चला जाता है और वह अपने को पूर्ण रूप से भगवान या प्रकृति के ऊपर छोड देता है। जैसा प्रकृति उससे करवाती है वह करता रहता है। इक्के के घोडे की तरह भी माना जा सकता है,उसे लगाम नाम के राहु के अनुसार चलना पडता है अपनी मर्जी से कहीं भी नही जा सकता है। खेत में बोने वाले बीज की तरह से माना जा सकता है जब तक उसे बोया नही जायेगा और राहु नाम की प्रकृति की शक्ति नही दी जायेगी वह अपने आप जमेगा नही। पूजा में बजाया जाने वाला शंख माना जा सकता है जब तक उसे बजाया नही जायेगा राहु नामकी फ़ूंक उसके अन्दर नही मारी जायेगी वह आवाज निकालेगा ही नही।

केतु को सबल या दुर्बल केतु की भावना ही करती है

इस का उदाहरण हम आज के बने बैटरी इन्वर्टर से ले सकते है,इसका काम बिजली को इकट्ठा करने के बाद अपने पास रखना होता है,जैसे ही बिजली चली जाती है वह बिजली को अपने पास से सप्लाई करना शुरु कर देता है,कम या अधिक बिजली को देने के लिये बैटरी जो कि एक केतु का ही रूप है,की सीरीज बढाने से वोल्टेज बढाये जा सकते है,और पैरलल लगाने से उसकी शक्ति यानी वाटेज बढाये जा सकते है,कई केतु एक साथ मिलाकर काम में लेने से शक्ति का प्रदर्शन सही रूप से किया जा सकता है। लेकिन तादात से अधिक केतु का सहायक होना भी समय के बाद दुखदायी हो सकता है। जैसे एक ही विषय को पढना और उस विषय से सम्बन्धित विवरण अगर भविष्य में बदल जाता है या नया कोई आविष्कार हो जाता है तो वह बेकार ही साबित होजायेगा,जैसे कि पहले टेलीफ़ोन की मान्यता खूब थी,लेकिन मोबाइल के आते ही उसके बनाने वाले बेचने वाले और चलाने वाले सभी बेकार हो गये। केतु के खराब होने से शरीर के अंगों से पता चल जाता है,जैसे कि हाथ सुन्न हो गया और काम नही कर रहा है इसका मतलब है कि केतु खराब नही हुआ है हाथ को शक्ति देने वाले राहु का खराब होना माना जायेगा,आंख से कम दिखाई देना शुरु हो गया है तो वहाँ भी राहु को देखना पडेगा सीधे से केतु को नही देखेंगे,केतु को तो तभी खराब माना जायेगा जब हाथ या आंख बिलकुल ही खत्म हो गयी हो। जिस प्रकार से गाडी की पेट्रोल खत्म होने से वह सडक पर खडी हो जाती है,उसी प्रकार से लगन का केतु किसी न किसी प्रकार से शरीर के अन्दर से राहु की शक्ति समाप्त होने पर बेकार हो जाता है,शरीर के अन्दर राहु का स्थान अद्रश्य शक्ति के रूप में जाना जाता है और राहु मस्तिष्क में निवास करता है,मस्तिष्क से सोचने समझने की शक्ति का बेकार होना भी केतु को बरबाद करने के लिये मुख्य माना जायेगा। पेन के अन्दर से स्याही के खत्म होने से राहु और केतु के बारे में नही सोचना पडेगा,स्याही के कारक ग्रह को सोचना पडेगा कि उसके अन्य कारक ग्रह भी साथ दे रहे है कि नही।

लगन का केतु और उससे सम्बन्धित रिस्तेदार

केतु का सम्बन्ध शनि से होने पर जो भी रिस्तेदार होते है,वे सब काम धन्धे से सम्बन्ध रखते है यह सम्बन्ध चाहिये ठेकेदार से जुडा हो या फ़िर किसी पार्टी के पास करने से अथवा दुकान में काम करने वाले हेल्पर के रूप में हो,सूर्य से सम्बन्ध होने पर बडे भाई की सन्तान से भी माना जाता है भतीजे के रूप में भी माना जा सकता है अथवा वह पिता के साले यानी मामा से भी माना जा सकता है,अथवा पिता के द्वारा रखे गये नौकर भी माना जाता है। इसके अलावा चन्द्रमा से सम्बन्ध होने से माता खानदान से सम्बन्धित रिस्तेदार माने जाते है,नाना के बारे में भी यह केतु अपना समर्थन व्यक्त करता है। मंगल के साथ होने से चाचा या मामा या खून के रिस्तेदारों से भी माना जाता है बडे भाई या छोटे भाई के साले से भी सम्बन्ध माना जाता है,बुध के साथ होने से भान्जे के रूप में भी माना जाता है,और अगर बुध के साथ राहु तेज है तो वह बहिन के पति के रूप में भी माना जाता है। गुरु के साथ होने से वह किसी धार्मिक व्यक्ति का चेला भी माना जा सकता है अथवा किसी प्रकार से अपाहिज होने की दशा में साथ देने वाला घर या बाहर का व्यक्ति भी माना जाता है,शरीर के अंगों के बारे में अगर गुरु और केतु किसी खराब ग्रह से सम्बन्धित है तो यह किसी प्रकार से सम्बन्धित अंग को बरबाद करने के लिये भी माना जाता है। शुक्र के साथ केतु के होने से यह पत्नी को हेल्पर के रूप में प्रस्तुत करता है अथवा किसी कारण से पत्नी का हेल्पर बनकर ही रहना पडता है। पत्नी का हेल्पर बन कर रहने से वह अपने विचारों और कार्यो को अपने अनुसार व्यक्त नही कर सकता है वह केवल अपनी पत्नी या पति की आज्ञा पर अपने शरीर और मन को गिरवी जैसा रख देता है।

केतु का फ़ल तीसरा भाग

केतु दूसरे भाव में अपने फ़लों को धन और भौतिक साधनों के रूप में अभाव देने का काम करता है,और इस अभाव को पूरा करने के लिये राहु अष्टम स्थान जो मौत का स्थान बोला जाता है से पूरा करता है। इस भाव का केतु कुटुम्ब के नाम से भी जाना जाता है और परिवार को आगे चलाने के लिये मामा भान्जा या साले के रूप में आकर परिवार की पूर्ति को देने वाला होता है,गोचर से यह परिवारी जनों को बाहर रखने वाला और जन्म कुंडली से परिवारी जनों को समाप्त करने या दूरस्थ भेजने वाला माना जाता है। इस भाव के केतु वाले जातक के अक्सर एक भाई और होता है और वह वृश्चिक राशि का या वृश्चिक लगन में पैदा होता है,घर के लिये वह अपने द्वारा अपनी क्रियाओं से एक तरह से बरबाद करने वाला ही माना जाता है,घर के अन्दर स्त्री जातकों का अभाव हो जाता है,माता को भी बडी बीमारी होती है। अक्सर माता के प्रति यह केतु मंगल वाला असर पैदा करता है,नाभि से नीचे की बीमारियां आदि होती है,अक्सर माता के लिये सर्जन की छुरी हमेश इन्तजार ही किया करती है।

केतु का स्वभाव बहुत ही हठीला होता है दूसरे भाव में

दूसरे भाव का केतु अपनी आदतों को कुछ इस प्रकार का बना लेता है कि उसे हर काम को करने की हठ पैदा हो जाती है,किसी भी वस्तु को लेना है तो वह उस वस्तु को लेने के लिये अपने सभी प्रयासों को करने से नही चूकता है,और उस वस्तु को जब तक प्राप्त नही कर लेता है तब तक उसे चैन ही नही आता है। यही हाल भोजन के मामले में भी देखा जाता है,उसे खाने से अधिक चखने की आदत होती है,अक्सर इस भाव के जातक की जीभ अपने होंठो को चाटा करती है। उसके सामने के चार दांत नुकीले होते है और दांतों की बनावट एक जैसी नही होती है। कोई भी काम करते वक्त जातक को आलस जरूर आता है।