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वास्तु के अनुभूत सिद्धांत
किताबों में पढकर या लोगों के बताने के बाद किसी भी समस्या का समाधान तभी दिमाग में बैठता है जब उस समस्या के प्रति खुद के अनुभव सामने हों। जब तक किसी समस्या को अन्तर्मन और भौतिक रूप से समझ नही लिया जाय तब तक वह समस्या एक पहेली की तरह ही लगती है और आज के भौतिक युग में जब मनुष्य चांद सितारों की सैर करने लगा है तो और भी मुश्किल हो जाता है कि जो हकीकत किसी समस्या के लिये बताई गयी है वह हो भी सकती है,या केवल कोरी कल्पना है,अथवा किसी प्रकार की अफ़वाह ही है। मैने रूबरू होकर जब समस्याओं और उनके समाधान के लिये प्रयोग किये और जब खुद ही उन समस्याओं से गृसित भी हुआ साथ ही जो फ़ल मिले वह भी शास्त्रों से मिलते जुलते थे तो समझ में आया कि शास्त्र भी अनुभूतित सिद्धान्तों पर ही लिखे गये है। और किसी भी शास्त्र की लिखित बात को जब तक कोरी कल्पना नही कहा जा सकता है जब तक कि लिखित समस्या से रूबरू नही हुआ जाये। मैं आपको वास्तु सिद्धान्तो के नियम के प्रति बताने की कोशिश कर रहा हूँ।
वास्तु मे सिद्धान्त है कि अग्नि दिशा का पानी घर की महिलाओं और पुरुषों के बायें अंग के लिये हानिकारक है। मेरे घर का दरवाजा पूर्व में है और दक्षिण पूर्व में सीढियां है,उन सीढियों के नीचे पानी का नल लगा हुआ है। घर के अन्दर महिलाओं की समस्या मुख्य कारण था। उन कारणों में एक समस्या डाक्टरी कारण दूसरी समस्या पता नही कब घर में क्लेश पैदा हो जाये और पता नही कब पडौसियों से लडाई का माहौल बन जाये। घर में खाना तो बनाया जाये लेकिन कभी कभी ही सभी लोग साथ बैठ्कर खाना खायें,कभी कोई घर पर नही है और कभी कोई घर पर नही है। लडकियों के मामले में भी यह कारण समझ में आये कि पहले तो लडकियों की शिक्षा पूरी नही हो पायी और दूसरे लडकी का स्वभाव मनोरंजन के साधनों में अधिक लगता,गाने बजाने के साधन घर में चलते रहते,टीवी और सीडी की भरमार घर के अन्दर बनी रहने लगी। लडकों का स्वभाव अच्छा होने के बावजूद भी वे किसी न किसी प्रकार के नशे के आदी होने लगे जैसे तम्बाकू का सेवन करना और गुटका आदि को प्रयोग में लाने का आदी हो जाना। घर का मुखिया किसी ना किसी राजनीति कारण से जोड दिया जाना और अधिक काम होने के बावजूद भी काम का पूरा नही होना,किये गये काम के अन्दर कोई न कोई कमी रह जाना और धन की कमी बनी रहना। यह प्रभाव अक्समात नही बना,लगातार बनता रहा,किसी प्रकार से भी किये गये साधनों से कम नही हुआ। नल को वहाँ से हटाया तो नही केवल टोंटी को बन्द करने के बाद उसके अन्दर पोलीथीन लगा दी,जो भी साधन वहां पर पानी भरने वाले थे सभी को घर के पश्चिमोत्तर कोने में सिफ़्ट कर दिया,पानी को प्रयोग करने के लिये इसी दिशा को प्रयोग में लाया जाने लगा,घर की हालत सुधरने लगे,घर की महिलायें अपने अपने कामों को करने लगीं,स्वास्थ्य की कमियां दूर होने लगीं,सभी के दिमाग अपने आप सुधरने लगे,धन की हालत सुधरने लगी काम समय से होने लगा,लडकों को जो आदत लगातार तामसी चीजों को लेने की लग गयी थी वह कम होकर छूटने लगी।
पानी को अग्नि से उठाकर इस दिशामें लाते ही मेरे द्वारा किये जाने वाले काम से मन हटने लगा और दूसरे कामों में मन जाने लगा,जो काम किसी समय में बहुत मेहनत करने के बाद भी नही पूरे होते थे वे आराम से पूरे होने लगे और अधिक धन कमाने की इच्छा होने लगी। बच्चों का जो पढाई का मूड समाप्त होने लगा था वह फ़िर से शुरु होने लगा,घर से टीवी और डिस से ध्यान हटने लगा। पानी को इस दिशा में लाते ही किये गये काम की प्रसिद्धि होने लगी और जो काम लोग नही चाहते वही काम आराम से होने लगे। अक्सर कहा जाता है कि घर के अन्दर जब भी क्लेश होता है तो वह किसी न किसी प्रकार की कमी से ही होता है। जब कमियां पूरी होने लगीं तो क्लेश भी कम होने लगा। कुछ समय उपरान्त प्रसिद्धि इतनी बढ गयी कि लोग साथ छोडने को तैयार ही नही होते थे,काम को दिन रात मिलकर भी किया जाता तो काम की कमी नही होती थी। पहले पानी की प्लास्टिक की टंकी मकान के ईशान कोण के बरामदे के ऊपर छत पर रखी थी,लेकिन वायव्य में पानी लाने के कारण उसी दिशा में बनी रसोई के ऊपर पानी की टंकी लानी पडी,रसोई जो पहले अग्निकोण में थी उसे वायव्य दिशा में जहां पानी की टंकी रखी थी वहां लाना पडा। रसोई के आते ही घर के अन्दर मेहमानों की संख्या बढने लगी।
जिन लोगों को मैं पिछले चालीस सालों से भूल चुका था,जो रिस्तेदार किसी मरी मौत में भी सामने आने की कोशिश नही करते थे,पता नही उनके अन्दर कहां से मेरे परिवार के प्रति ख्याल आना शुरु हुआ और वे आने लगे। आना और जाना तो माना जा सकता है लेकिन पन्द्रह दिन महिना भर रहना और भी बडी बात मानी जा सकती है। एक एक बार में दस दस लोग आकर घर के अन्दर रहने लगे,पहले घर के खर्चो के लिये मकान के नीचे के भाग में गुजारे के खर्चे के लिये किरायेदार को रखना पडता था लेकिन पानी और भोजन की दिशा को बदलते ही किरायेदारों को भी घर से बाहर निकालना पडा,और जो कमरे खाली हुये थे उन कमरों में रिस्तेदारों को टिकाना पडा। हमारी कालोनी मे सीवर लाइन नही है,लोगों ने अपने अपने घर के बाहर पिट बनवाकर उनके अन्दर जल-मल जमा करने की आदत बना रखी है। उसी प्रकार के शौचालय भी प्रयोग में लाये जाते है। उन शौचालयों का पानी उन्ही पिट में जाकर जमा होता है और रेतीला इलाका होने के कारण वह अपने आप सूखता रहता है,जब पानी अग्नि में था तो अक्सर सीपर को बुलाकर शौचालयों को साफ़ करवाना पडता था,लेकिन जल का स्थान बदलते ही शौचालय भी अपने आप साफ़ रहने लगे,कोई महिने दो महिने में सीपर को बुलाकर साफ़ करवाने की शुरुआत हो गयी। कितने ही मेहमान आये और चले गये लेकिन शौचालय सम्बन्धी परेशानी नही आयी। खाने के मदों में मेहमानों के हिसाब से ही खर्चा होने लगा। एक गैस सिलेण्डर जो पहले एक महिना चला करता था वह दस या बारह दिन में ही समाप्त होने लगा,पत्नी को बाजार से ही फ़ुर्सत नही,कभी सब्जी लेने के लिये कभी राशन लेने के लिये और अधिकतर मुहल्ले का ही बनिया से ही सामान को लाया जाने लगा,कहाँ तेल एक या दो किलो महिने में खत्म होता था वह अब पीपे में आने लगा फ़िर भी तेल की कमी महसूस होने लगी। लेकिन एक बात जरूर समझ से बाहर की थी कि बच्चों के द्वारा काम करने के अन्दर उतनी ही उन्नति होने लगी और मुझे भी अपने काम से धन की आमदन में यह समझ में नही आता था कि कितना आया है और कितना चला गया है। जो बिजली के बिल पहले चार सौ देने में जोर आता था वह बिजली के बिल चार हजार भी देने में जोर नही आता था,पहले एक टेलीफ़ोन का बिल समय से नही जमा हो पाता था,वहां अब पांच पांच मोबाइल काम कर रहे थे। आने जाने वालों के लिये भोजन और अन्य कामों से घर के अन्दर की महिलाओं को टीवी की तो छोडो गाने सुनने की भी फ़ुर्सत नही थी। वायव्य की रसोई लाते ही एक बात और हुयी कि बडा लडका अपनी पत्नी के साथ अपने ससुराल गया और वहां से उसे जाने क्या जमी कि वह मेरे पैत्रिक गांव में जाकर रहने लगा,मैने जब कारण पूंछा तो कुछ नही बताया लेकिन पत्नी ने बताया कि उसके ससुराल वाले कह रहे थे कि वह अब घर नही रह गया है,वह अब धर्मशाला बन गयी है जहां लोग आते है खाते है रुकते है और चले जाते है,इसलिये वह अलग रहने लगा है।
मुझे जुकाम नही जाता था कितने ही इलाज कर लिये कितनी ही दवाइयां खालीं लेकिन नाक सुर्र सुर्र करती ही रहती थी। गले में कफ़ घडघडाता ही रहता था। जाने कहां कहां से इलाज करवा लिये लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ। कोई अच्छी दवा मिल जाती थी तो कुछ दिन के लिये कम हो जाता था लेकिन फ़िर जरा सा मौसम चेंज हुआ कि फ़िर वही हाल हो जाता था। पानी की टंकी जैसे ही वायव्य दिशा में रसोई की छत पर आयीं कि तीसरे या चौथे दिन से नाक का पानी सूख गया। आज कोई दवा नही खा रहा हूँ और आराम से रात को नींद आती है लेकिन रात को सोने का समय पता नही कब मिलता है इसलिये जरूर परेशान हूँ काम करने से फ़ुर्सत ही नही है सोने का क्या काम ? रात को चार चार बजे तक काम करना और फ़िर सो जाना और सुबह जागकर सीधे काम पर बैठ जाना और जब काम करते करते ही पेशाब लगती है तो बाथरूम तक जाना और फ़िर वापस आकर काम करने लग जाना,भोजन वही तीन बजे से चार बजे के बीच में करना,बीच में काम को बन्द करने के बाद नहाना पूजा पाठ करना और भोजन करने के बाद एक घंटे के लिये आराम करना और फ़िर काम करने लग जाना। काम के दौरान कम से कम चालीस चाय पीना और लगातार धूम्रपान करना। इस आदत से परेशान होकर पत्नी ने एक बार कहना चालू किया कि या तो जल्दी से कोई बडी बीमारी हो जायेगी या कोई बीमारी अचानक परेशान करेगी,इस डर से उन्होने मुझे सीधा डाक्टर से चैक करवाने के लिये बोला,डाक्टर ने अपनी सलाह से कई चैक अप करवाने के लिये लिख दिया और जब रिपोर्ट आयी तो सभी को हैरानी कि किसी भी प्रकार की फ़ेफ़डों में या गले में या मुंह में परेशानी नही,लोग चार चार चाय पीने के बाद डायबटीज के मरीज बन जाते है लेकिन यहां न कोई शुगर की बीमारी और ना ही कोई फ़ेफ़डों की बीमारी,डाक्टर की रिपोर्ट पढने के बाद पत्नी को भी आश्चर्य हुआ लेकिन यह सब मुझे अन्दाज लग रहा था कि घर के वास्तु से या टंकियों के बदलाव से या काम की अधिकता से हुआ था।
मेरे पडौस में एक नाई का मकान है,उसके मालिक की अपनी नाई की दुकान है और खुद के कोई औलाद नही होने से वह अपने दो भतीजों को अपने पास रखता है एक भतीजा सरकारी नौकरी में है और दूसरा प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करता है। घर का मकान और आमदन अच्छी,मकान मालिकिन को मैं भाभी जी कहकर पुकारता था,ऊपर से बहुत अच्छे स्वभाव की थीं,लेकिन अन्दर से उन्हे कोई भी प्रोग्रेस मेरी या मेरे बच्चों की बहुत बुरी लगती थी,वे किसी झाडफ़ूंक वाले के पास भी जाती थी और रोजाना शाम को दरवाजे पर खडे होकर कोई पूजा करती थी। मुहल्ले वालों से किसी ना किसी बात को बढा चढाकर कहना उनकी आदत थी। जब तक किसी न किसी से लडाई न करवा दें तब तक उनको चैन नही आता था,मेरे सामने भी पूर्वी भारत के एक सज्जन रहते है पता नही उन्होने किस बात को उनसे कह दिया कि उनकी पत्नी बिना बातचीत ही मुझे और मेरे घर वालों को गाली देने लगीं,बच्चों को सहन नही हुआ तो मैने उनसे चलाकर पूंछा कि आपको मैने तो कुछ कह नही दिया है,फ़िर भी आप लोग गाली क्यों देते हो,उन्होने कहा कि मेरी नाली सामने है और मैं कचडा तुम्हारे दरवाजे के सामने लगाऊगी तुम रोक सको तो रोक लेना,मैने उनसे इतना ही कहा कि कचडा रोड पर आप लगाओगे,आपके अपने हिस्से में लगाते रहना मेरे घर के दरवाजे पर लगाओगे तो उसका भी उपाय करना पडेगा,उसके बाद उन्होने कचडा घर के आगे लगाना शुरु कर दिया,मैने ध्यान नही दिया सीपर को पचास रुपया और महिने के देकर उस कचडे को भी उठवाने लगा,मैं किसी से लडाई नही लडना चाहता था,जब शांति से काम निकले तो लडने की बात ही नही होती है। उसी दौर में मेरे पास काफ़ी लोग आने लगे,सर्दी गर्मी और बरसात के डर से मैने अपने कमरे के सामने एक टीन शैड बनाने के लिये सोचा और नाई के मकान की तरफ़ से जो मेरे घर के दक्षिण में है दिवाल को ऊंचा करने के बाद टिन शैड डलवा दिया। वह टिन शैड कमरे की ऊंचाई का था,इसलिये नाई की तरफ़ से मकान ऊंचा हो गया,पांच ईंट की ऊंची दिवाल टिन शैड के ऊपर से भी बनवा दी जिससे आन्धी तूफ़ान में टिन उडे नहीं। उस टिन के लगवाने के तीसरे महिने ही पता लगा कि नाई अपने मकान को बेचकर जा रहा है,मैने उनसे पूंछा कि अचानक आपको यह मकान बेचने की क्या बात सूझी,वह बोले कि मेरा धन्धा तीन महिने से बन्द है और भतीजे भी अपनी अपनी नौकरी छोड्कर बैठे है और उनके यहां किसी दहेज सम्बन्धी केश चल रहा था उसका भी फ़ैसला भतीजे के विरुद्ध हुआ है सो उसके लिये भी पैसा देना पडेगा,आखिर में छठे महिने वे अपने मकान को एक पंडित को बेच कर चले गये। मुहल्ले की लडाइयां खत्म हो गयीं थी,लोग आपस में एक दूसरे से बात करने लगे थे। उस पंडित ने जब से मकान खरीदा तब से उसके भी धन वाले कारण बनने लगे,हालांकि उसका मेडिकल स्टोर था और दवाइयों से अच्छी इनकम थी लेकिन वह सब फ़ेल होने लगे,वह पंडित भी चौथे महिने मकान को बेचकर चला गया और उस मकान को एक सीपर ने खरीदा,वह रिटायर्ड है किसी सरकारी अस्पताल में काम करता था,उसके बच्चे सभी अपने अपने मकान में है वह मकान अधिकतर बंद ही रहता है।
हमारे मकान के दक्षिण पश्चिम दिशा में एक राजपूत का ही मकान है। काफ़ी अच्छे लोग है लेकिन जब भी कोई मेरे बारे में बात करता है तो उससे जाने क्या क्या कहने लगते है। जब भी होली या कोई मुहल्ले का कार्यक्रम होता है तो चन्दा लेने के लिये आते है मुहल्ले से अधिक चन्दा देता हूँ लेकिन फ़िर भी उनके अन्दर जाने क्या हवा भरी हुयी है कि जब देखो तब और जहां सुनो वहां केवल मेरी ही बुराई करते है। उनके मकान का दरवाजा पश्चिम दक्षिण के कोने में ही है। दो भाई एक ही मकान में रहते है और दोनो ही अपने अपने अनुसार काम करते है,बडा भाई पिता की नौकरी पर लगा है और छोटा भाई खुला धन्धा करता है। दोनो की पहले शादी एक ही घर से दो बहिनों के साथ हुयी थी,लेकिन पता नही किसी आपसी झगडे की बजह से दोनो को छोड दिया था,उनकी माताजी के मरने पर वह दोनो बहिने अपने घर वालों के साथ आयीं थी। न्याय पंचायत भी हुयी लेकिन फ़ैसला हो नही सका,छोटी तो अपने घर वालों के खिलाफ़ होकर रहने लगी लेकिन बडी वाली अपने घर वापस चली गयी,पांच छ: महिने के बाद पता लगा कि छोटी वाली मिट्टी का तेल डाल कर जल कर मर गयी और बाद में दोनो भाइयों ने अपने अपने अनुसार दूसरी शादी कर ली।
दोनो भाई अपने अपने अनुसार रहते है कई बार छोटे भाई के लिये अखबारों में आता है कि वह किसी न किसी बुरे काम के अन्दर पकडा गया है,और उसके मित्र दोस्त सभी किसी न किसी कारण से घर के अन्दर जमा होते रहते है घर के अन्दर ही डैक चलना उछल कूद और शराब मांस की पार्टी होना आदि बातें पूरे मुहल्ले के सामने होती है। किसी बात का उन्हे डर इसलिये नही लगता है क्योंकि वे सभी प्रकार के बुरे लोगों से सम्पर्क रखते है,पुलिस थाने गुंडे सभी उनकी जेब में होते है इसलिये जानकर भी कोई उनसे बुराई नही लेता है,एक दो ने सामने आने की कोशिश भी की लेकिन किसी न किसी बहाने उन्होने उन्हे बुरी तरह से बेइज्जत किया,इस डर से कोई उनके सामने नही आता है,सही मायनों में कहा जाये तो वह नैऋत्य का दरवाजा उनके लिये आसुरी वृत्तियों से पूर्ण कर रहा है। इस दरवाजे के बाद भी एक बात और सामने देखी जाती है कि सरकारी जमीन सडक के बाद है उसे भी उन्होने फ़र्जी तरीके से बेच दिया है,कानून का उन्हे किसी प्रकार से भी डर नही लगता है। उनके सामने ढलान है तथा घर से निकले पानी का बहाव दक्षिण की तरफ़ है।
मुझे याद है कि पिताजी ने घर बनाया था,उस जमाने में घर कच्चे बनते थे। कच्चे घर की नाली को उन्होने जानबूझ कर पूर्व की तरफ़ निकाला था,और उस नाली को बनाने के लिये काफ़ी दिक्कते आयीं थी एक ऊंचे टीले को काटकर बनायी गयी नाली में हर बरसात में पानी का बहाव तेज होने और उस नाली में टीले की मिट्टी के ढह जाने से जो मिट्टी भरती थी उसे रात को लालटेन की रोशनी में नाली से निकालना पडता था,जब कई साल यह समस्या आयी तो उस नाली को पक्की ईंटों से ढक कर बना दिया गया था,लेकिन तीन या चार साल बाद उस नाली को और उसके अन्दर जमा मिट्टी को साफ़ करवाना पडता था। पूर्व दिशा में नाली होने के बाद घर का जो भी खर्चा होता था वह केवल धार्मिक कार्यो में ही खर्च होता था,कभी कथा कभी भागवत कभी रामायण और कभी आने जाने वाले साधु सन्तो और धार्मिक लोगों पर ही घर का धन खर्च होता था,जितने लोग खाने वाले आते थे उससे अधिक खेती में पैदा हो जाता था,कभी इस बात की कमी नही महसूस की गयी कि अनाज का टोटा पडा है। वर्तमान में मेरे मकान की नाली भी पूर्व दिशा में है और पानी का बहाव भी पूर्व की ओर है,इस प्रकार से आज भी हमारे घर में जो भी खर्चा होता है वह धार्मिक कामों मे ही अधिक खर्च होता है। इसके विपरीत पीछे वाले घर का पानी दक्षिण में जाने से उस घर में जो भी खर्चा होता है वह बुरे कामों में ही होता है। पहले माँ के मरने पर खर्चा हुआ फ़िर बहू के मरने पर पुलिस और उसके मायके वालों को दिया जाने वाला खर्चा हुआ और जब कोई और बुरा काम नही होता है तो खर्चा शराब कबाब और नाच तमासे में खर्च हो रहा है। कम से कम दस मुकद्दमे बुरे कामो को करने की एवज में भी चल रहे है उनके लिये वकील और अदालतों में भी खर्चा इसी प्रकार से हो रहा है,कोई न कोई पुलिस वाला आये दिन उनके घर आता ही रहता है और वह भी किसी सम्मन या नोटिस की तामील के लिये ही आता होगा।
इस सिद्धान्त को मैने कई घरों की गणना करने के बाद देखा कि जिन घरों का पानी उत्तर दिशा की तरफ़ निकलता है उन घरों का धन किसी न किसी कारण से लडकियों के प्रति ही खर्च किया जाता है। हमारे घर के दक्षिण दिशा में एक शर्मा जी रहते है उनके घर का दरवाजा और घर से निकलता हुआ पानी उत्तर दिशा की तरफ़ ही है,उनके चार पुत्रियां और एक पुत्र है,उन लडकियों की पढाई लिखाई और शादी सम्बन्ध में ही उनका धन जा रहा है,जब कि लडका न तो पढाई में तेज है और न ही किसी प्रकार से शरीर से स्वस्थ है। इसी प्रकार से एक हमारे अच्छे जानकार है उनकी दुकान फ़ोटोग्राफ़ी की है अच्छा पैसा आता है उन्होने भी अपनी लडकी के इलाज में पूरी कमाई लगा दी है। एक सज्जन का घर का मुंह तो पूर्व की तरफ़ ह लेकिन पानी घर से निकला हुआ सीधा उत्तर की तरफ़ जाता है,उनके भी चार लडकियां है और दो लडके,एक लडका मन्द बुद्धि का है और दूसरा जुआरी शराबी सभी गुणों से भरपूर है। पूरा घर लडकियों पर ही निर्भर है। इसके अलावा उनके घर में शौचालय पूर्वोत्तर दिशा (ईशान) में बना है,अधिकतर उनके घर के बारे में अफ़वाहें उनके मुहल्ले में और जान पहिचान वालों में सुनी जाती है।
घर की ईशान दिशा धर्म और भाग्य की दिशा बताई जाती है,इस दिशा में शौचालय बनाने से घर के सदस्यों के अन्दर अनैतिकता पनपने लगती है,घर के बच्चे माता पिता की बात को नही मानते है और किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य को कर सकते है। इस बात की सत्यता को जांचने के उद्देश्य से मैने छानबीन की तो पता लगा कि जिन सज्जन के चार लडकिया है और उनके दोनो बच्चे एक मंद बुद्धि और दूसरा शराबी जुआरी है। घर के मुखिया को दोनो बच्चे जब मन में आता है तभी पीटना चालू कर देते है,माँ का भी यही हाल है वह भी अपने देवर को पूरा समर्थन देती है और अपने पति को जूती की नोक पर रखती है। उन्होने अपनी बडी लडकी की शादी दक्षिण दिशा में की वह अपने घर से लडाई करने के बाद अपने पति के साथ आकर उसी घर में एक कमरे में रहने लगी। पति तो प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करता है और लडकी अपने मिलने वालों से घिरी रहती है,उससे छोटी लडकी की शादी पूर्व दिशा में की गयी उसका पति शराबी है और चोरी चकारी के कामों के अन्दर अधिकतर जेल में ही रहता है,वह अपने बच्चों का पेट घर घर में काम करने के बाद पाल रही है,अधिकतर वह अपनी माँ के पास ही रहती है। तीसरी लडकी की शादी घर से उत्तर दिशा में की है उसका पति अधिकतर घर से बाहर ही रहता है और साल में दो चार दिन के लिये घर आता है,कहने को तीन बच्चे है लेकिन एक भी बच्चा न तो शिक्षा में है और ना ही किसी काम को करते है सभी दिन भर सडकों पर घूमते रहते है कभी किसी का सामान उठाकर कबाडी वाले को बेचना और कभी उठाई गीरी करने के बाद अपने बचपने को बरबाद करने का ही उनका काम है,वह लडकी भी अपने कुंआरे देवर के साथ जिसकी उम्र पैंतीस साल की है के साथ रहती है उसने भी शादी से मना कर दिया है। चौथी लडकी की शादी भी दक्षिण दिशा में रहती है उसके पति की उम्र उससे लगभग दो गुनी है वह भी घरों को बनाने और चिनाई आदि का काम करता है,वह लडकी भी अपनी माँ के पास अधिकतर रहती है,उस घर में रहने वाले लोगों केलिये अधिकतर मुहल्ले वाले और जान पहिचान वाले नाक ही सिकोडा करते है,कोई भी भला आदमी उनके घर जाने की हिम्मत नही करता है और जिसके घर भी उस घर की लडकियां आजाती है उस घर के लिये लोग उंगलियां उठाने लगते है। पिता कोई काम नही करता है,माँ कोई काम नही करती है लडका मन्द बुद्धि है,दूसरा शाम को शराब के नशे में धुत देखा जाता है,देवर अधिकतर घर पर ही पडा रहता है तो सोचने लायक भी बात है कि घर का खर्चा कैसे चलता होगा,जब कि पूरे मुहल्ले से कीमती साडियां और जेवर उनके पास है,लाली लिपिस्टिक उनके चेहरों से छूटती नही है,जब भी उस घर के सामने से निकलो तो एक या दो लडकियां छज्जे पर खडी हुयी ही दिखती है। इसके अलावा भी एक दो जगह पर इसी बात को देखा,कोई तो खुला है और कोई छुपा हुआ गलत कामों के अन्दर अपने को लगाये है,जिन घरों में पुरुष संतान है वह अपने माता पिता को कुछ नही समझती है और अधिकतर मामलों में पिता को ही पिटता हुआ देखा जा सकता है,इस प्रकार के घरों में अधिकतर रिस्ते धर्म भाई और धर्म बहिन के बने हुये अधिक मिलते है,धर्म भाई और बहिन उसी कैटेगरी के होते है,जिनकी या तो शादियां नही हुयी होती है और हो भी गयी होती है तो वे अपने अपने जीवन साथी से दूर रह रहे होते है,नौकरी पेशा वाले लोग और रोजाना के काम करने वाले लोग भी इसी प्रकार के घरों में रहकर अपने एकांत जीवन को आराम से निकालते देखे जा सकते है। अक्सर इस प्रकार के घरों में किराये से दिये जाने वाले कमरे फ़मिली के साथ किराये से रहने वाले लोगों को नही दिये जाते है और जो फ़ैमिली के साथ रहने वाले लोग होते भी है उनके अन्दर या तो अनैतिक रूप से भाग कर आये लोग होते है या फ़िर अन्य किसी कारण से गलत रिस्ते लेकर चलने वाले लोग होते है।