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घर में भाग्यशाली कौन ?
जातक की कुंडली जब बनाई जाती है तो परिवार के सदस्यों का हिस्सा अलग अलग भावों के अनुसार माना जाता है। जैसे दसवां भाव पिता के लिये चौथा भाव माता के लिये तीसरा भाव छोटे भाई बहिनो के लिये और ग्यारहवा भाव बडे भाई के लिये,पंचम भाव बडे भाई की पत्नी के लिये नवां भाव छोटे भाई बहिनों के पति और पत्नियों के लिये,बारहवां भाव पिता के छोटे भाई बहिनो के लिये और और छठा भाव चाचियों और छोटे फ़ूफ़ाओं के लिये माना जाता है। आठवां भाव पिता के बडे भाई के लिये और दूसरा भाव ताई के लिये माना जाता है। पिता की माता यानी दादी के लिये लगन को माना जाता है और सप्तम स्थान को पत्नी या पति के साथ दादा का भी माना जाता है। इस तरह से एक ही कुंडली में परिवार की सभी पीढियां जो पीछे गुजर गयीं है और जो आगे आयेंगी सभी का दर्पण द्रश्य होता है। कुंडली में जातक के लिये जातक की पत्नी या पति के लिये,जातक के पुत्र के लिये पुत्री के लिये माता के लिये पिता के लिये छोटे भाई बहिनो और बडे भाई बहिनो के लिये कौन किस तरह से भाग्य का कारक है,या दुर्भाग्य देने वाला है इसके बारे में विवेचन आपके सामने है।
कुंडली का नवां भाव भाग्य का कारक होता है इस भाव में जो भी ग्रह होते है वे जातक के भाग्य और दुर्भाग्य को बताते है इसके अलावा भाग्य के मालिक जिस भाव में होते है उस भाव की कारक वस्तुयें और व्यक्ति रिस्तेदार जातक के लिये भाग्यशाली माने जाते है। छोटे भाई की पत्नी जातक के लिये भाग्यशाली होती है,उसके द्वारा जो भी पूजा पाठ कार्य आदि किये जाते है वे जातक के लिये भाग्य की वृद्धि करते है। स्वयं जातक अगर अपने छोटे भाई बहिन के पति या पत्नी की मान्यता को रखता है तो भाग्य की बढोत्तरी जीव रूप में अपने आप होने लगती है,अगर किसी रत्न से दस प्रतिशत भाग्य बढता है तो पूजा पाठ से बीस प्रतिशत भाग्य की बढोत्तरी होती है उसी जगह अगर जीव के रूप में या रिस्तेदार के रूप में मान्यता और आदर सत्कार किया जाता है तो भाग्य की पचास प्रतिशत बढोत्तरी होती है। उसी तरीके से पति या पत्नी के भाग्य के लिये उसके छोटे भाई बहिनो के पति पत्नी या जातक के छोटे भाई बहिन उसके लिये भाग्य बढोत्तरी का कार्य करते है। अपने छोटे भाई बहिनों के पति और पत्नियों से भाग्य की बढोत्तरी के लिये उनकी सहायता करना,उनको मानसिक रूप से प्रसन्न रखना,उनके लिये अच्छे अच्छे कार्य करना,उनके खराब समय में सहायता करना,भोजन वस्त्र और रहन सहन के मामले में उसी प्रकार से देखभाल करना जैसे मंदिर में जाकर भगवान को सजाते है,उनके लिये नित्य भोग का प्रावधान करते है,साफ़ सफ़ाई और उनके लिये ख्याल करते है,इस तरह से अपने से छोटे भाई बहिनो के पति और पत्नियों के लिये किये जाने वाले कार्य भाग्य का वर्धन करने वाले होते है।
जिस तरीके से जातक के प्रति जातक के छोटे भाई बहिन के पति और पत्नियां भाग्य की बढोत्तरी करने वाले होते है उसी तरह से जातक के जीवन साथी के लिये जातक के छोटे भई बहिन भाग्य के कारक होते है। अक्सर यह कारण देवर भाभी के लिये देखा जा सकता है,और अक्सर जिन देवर भाभियों में आपस का प्रेम होता है उनके घर हमेशा फ़लते फ़ूलते ही देखे जा सकते है। पत्नी के लिये छोटा बहनोई जो छोटी ननद का पति होता है वह भी भाग्य बढाने के लिये माना जाता है,अक्सर जो लोग इस प्रकार के सम्बन्धी की आवभगत और इज्जत आदि बढाने के साथ मर्यादा की पालना करते है वे अपने भाग्य को बढाने की कामना ही करते है,अगर इन रिस्तेदारों में कोई रिस्तेदार रूठा हुआ है तो मान लेना चाहिये कि भाग्य का पाया वहीं से कमजोर माना जायेगा,अक्सर लोगों को देखा जाता है कि अपने जीवित ग्रहों से सम्बन्धित लोगों को तिरस्कार देने के बाद वे पूजा पाठ और भक्ति के स्थानों की तलास में रहते है,लेकिन उन्हे अगर अपने ही घर के अन्दर के ग्रहों को पूजा पाठ की बजाय मान मर्यादा और इज्जत से रखा जाये और उन्हे उनके समय पर बुलाया जाये,उन्हे खिलाना पिलाना उनके ऊपर खर्च करना आदि किया जाये तो सम्बन्ध भी मधुर बनते है और आगे की जिन्दगी भी उन्नति के लिये अग्रसर होती है। पति के छोटे भाई की बात अभी मैने ऊपर बतायी है,अक्सर देखा जाता है कि पति के छोटे भाई का स्थान पत्नी के लिये नवें स्थान से देखा जाता है,और देवरानी तीसरे भाव के लिये पराक्रम बढाने वाली होती है,अगर देवरानी के द्वारा अपनी मर्यादा को आगे बढाने वाली बात की जाये तो नाम के साथ इज्जत की भी बढोत्तरी होती है,भले ही वह अपने घर से आयी थी तो कई प्रकार के अवगुण उसके पास थे,अगर धर्म से देवर के साथ बर्ताव किया जाये और देवरानी को अपने लिये सहायता के कामो में रखा जाये तो वह जरूर ही आपके लिये साथ देने वाली होगी,लेकिन हम यह नही सोच पाते है,हम अपने अपने अहम के कारण अपने ही रिस्तेदार को छोड कर दूर के भगवान को पूजने जाते है वहां अन्जान लोगों की संगति में अन्जान स्थान के खानपीन से परेशान हो लेते है लेकिन अपने अहम के कारण घर के मान्य सदस्यों से दूरी अच्छी लगती है।
घर में छोटे भाई बहिनो के लिये भी भाग्य वर्धक लोग होते है,जैसे तीसरे भाव से नवां भाव ग्यारहवां भाव होता है,बडे भाई का घर माना जाता है,जातक के मित्रों का भाव माना जाता है,जैसे बडे भाई का आदर सत्कार करते है वैसे ही जातक के मित्रों का आदर सत्कार अगर छोटे भाई बहिन करते है तो वे भी समय पर भाग्य बढाने का काम करते है,अगर कोई छोटा भाई बहिन दुखी है और जातक पास में नही है तो वह जातक के मित्रों को अपनी सहायता के लिये पुकार सकते है,और जब उनका पहले से आदर सत्कार किया गया होगा तो वे बडे आराम से सहायता के लिये भागे आयेंगे। इसके अलावा भी पिता के कुटुम्ब के लोग भी इसी घर से अपना सम्बन्ध रखते है,जातक के जीवन साथी के घर से भी और शिक्षा के स्थान के लोग इस स्थान से सम्बन्ध रखते है,माता के ताऊ भी इसी स्थान से सम्बन्ध रखते है.
बडे भाई से नवे भाव में जातक का सप्तम भाव आता है,यह भाव जातक की पत्नी या पति का होता है,जातक के जीवन साथी का जुडना बडे भाई के लिये भाग्य वर्धक माना जाता है।