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मानव का अपने परिवार के प्रति जो कर्तव्य है उनके लिये लिखना बहुत बडी बात है,और इस बात को समझने के लिये भी कोई विशेष नियम एक ही तरह के नही अपनाये जा सकते है,अलग अलग संस्कृति में अलग अलग भावनायें होती है,अलग अलग नियम कानून होते है,अलग अलग मर्यादायें होती है,उन सब को एक साथ नही जोडा सकता है,इसके साथ ही कल और आज को आने वाले कल के साथ नही जोडा जा सकता है,कल के लिये कल को देखने के बाद ही कोई बात की जा सकती है,माता पिता के लिये सभी बच्चे एक जैसे ही होते है,लेकिन उनका वर्गीकरण अधिक दिमाग,कम दिमाग और बिना दिमाग के कर लिया जाता है,अधिक दिमाग का सबसे छोटा भाई भी हो सकता है,और अगर वह चाहे कि वह अपने माता पिता के लिये सबसे कम दिमाग के बडे भाई की तरह व्यवहार करे तो यह प्रकृति की अवमानना ही कही जायेगी। परिवार के लिये एक दूसरे को देखने समझने और सहायता करने के लिये कोई अहसान वाली बात तब तक नही बन सकती है जब तक कि खुद के अन्दर अहम की भावना नही पैदा हो,लेकिन जो असमर्थ है और वह बलात सहायता भी लेता है और किये गये सहायता वाले काम को मानता भी नही है तो वह सहायता करने वाले सदस्य के दिमाग में क्षोभ पैदा करने के लिये काफ़ी माना जायेगा। आज के आर्थिक प्रधानता वाले युग में अगर एक व्यक्ति अपने परिवार को ही पाल पोष कर आगे बढा रहा है तो यह भी के बडी बात मानी जा सकती है,संगठित रहने के लिये कम से कम पिछली जायदाद अगर माता पिता के द्वारा जोड कर बच्चों के लिये इकट्ठी की गयी है कि उससे आगे आने वाली पीढी को दस बीस प्रतिशत भी सहायता मिल जाती है तो परिवार का इकट्ठा रहना सही माना जा सकता है,अगर पिछली कोई सहायता नही है तो दूर रहने में ही अच्छाई है।
अहसान भाई भाई कभी एक दूसरे पर नही करते हैं
एक बात जो सबसे अधिक समझ में आती है वह आज की आजादी वाली बात,दो भाई इकट्ठे रह सकते है,कारण दोनों को एक ही जगह से प्राण मिले है,और दोनो की जब तक शादियां नही होती है बडे आराम से रहते है लेकिन जैसे ही शादी होती है दोनो के अन्दर पता नही कहां से इतने विचार और धारणायें गलत बन जाती है कि दोनो कभी कभी तो एक दूसरे की शक्ल तक देखने की भी पोजीशन मे नही होते है,इसका विचार अपने अपने अनुसार बंधन में नही रहना और बंधन में रहने के अलावा भी एक दूसरे की कोई भी बात सहन नही करना भी माना जाता है,शादी के बाद दोनो भाई एक दूसरे की बात को इतना दिमाग में रखने लग जाते है कि उन्हे हर बात में चुभती हुयी तीखी धार सी ही दिखाई देती है,अक्सर जिन लोगों की शादियां नही हुयी होती है वे अक्सर घर की लडाई में अधिक शामिल माने जाते है,जैसे कि भाभी ने कुछ कह दिया है तो वह घर के सदस्यों के लिये नाक का बाल बन जाता है और उस नाक के बाल के लिये घर के अन्दर अक्सर कलह पैदा होने लगती है,जब कि सभी को पता है कि पत्नी केवल अपने पति और बच्चों के लिये ही अपने जीवन को मानती है,उसके लिये सास स्वसुर आदि तभी तक मान्य है जब तक कि उसका पति कमाने के योग्य नही है जैसे ही पति कमाने के योग्य हो जाता है उसके लिये केवल अपने घर और अपने परिवार को सम्भालने की बात ही समझ में आती है वह हमेशा यही चाहती है कि उसका पति दूसरों की तभी सहायता करे जब वे उसके सामने हाथ फ़ैलाकर गिडगिडाकर मांगने के लिये आयें,परिवार में जब कोई असहाय या बुजुर्ग व्यक्ति होता है तो सभी उसे देख कर अपना अपना भाव पैदा करते है,अक्सर घर के अन्दर एकता महिलाओं में तभी देखी जाती है जब घर का कोई मुखिया असहाय या बेबस हो जाता है,वे एक दूसरे से नमक मिर्च लगाकर उसी के बारे में बातें करती रहती है.यह बात अधिकतर मध्यम वर्ग के अन्दर अधिक देखी जाती है,निम्न वर्ग में घर की बात सम्भली जरूर रहती है लेकिन उन परिवारों में भी जब कोई विशेष बात बनती है तो अक्समात ही पासा पलटता देखा गया है,अक्सर परिवार में विघटन करने वाले लडकों के ससुराल वाले होते है वे अपनी अपनी लडकियों को इतना रिमोट करते है कि वे या तो अपने जीवन साथी और घर को त्याग कर अपने मायके वापस आजाती है अथवा वे घर में विघटन पैदा करने के बाद घर के सदस्यों की शक्ल तक देखना पसंद नही करती है। सास के पास अगर किसी तरह से ननद आकर टिक जाती है तो घटना और भी गंभीर हो जाती है,बहू कभी नही चाहती है कि उसकी हक वाली स्थिति को उसकी ननद अपने हाथों से पूरा करे,लेकिन सास का कर्तव्य होता है कि वह अपनी बेटी को बहुत ही नाजुक मिजाज से देखभाल करती है,इस बात में भी घर को तोडने के लिये जब और समस्या खडी होजाती है जब दामाद अपनी बात को परिवार में रखने के लिये कोई भी राय देने के लिये तैयार होता है,जब कि दामाद को पता नही होता है कि उसके घर पर चावल पकते है और उसकी ससुराल में केवल रोटियां ही पकती है वह चावल के भाव को घर की रोटिओं के साथ जब जोडता है तो घर का वातावरण और अधिक खतरनाक हो जाता है,घर की बहू को अक्सर सभी बातों को तब और सुनना पडता है अगर उसने अपनी कोई बात घर वालों से बिना पूंछे अपने मायके वालों को कह दी है। मायके वाले अक्सर इसी ताक में रहते है कि कब घर का माहौल खराब हो और वे अपनी अपनी आकर चढी कढाही में सेकें।