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सुख के साथ दुख

स्वयम्भू ने इन्द्रियों को बहिर्मुख होने का विधान बनाया है,इसी लिये मनुष्य सामने की ओर देखता है,अन्तरात्मा को नही देखता है,अमृत्व प्राप्ति की इच्छा रखने वाले किसी किसी ज्ञानी ने विषयों से द्रिष्टि फ़ेरकर अन्तर्स्थ आत्मा का दर्शन किया है। वेदों में जो पहला अनुसंधान मिलता है,वह बाह्य विषयों को लेकर है,उसके बाद इस नवीन विचार का उदय हुआ कि वस्तु का वास्तविक स्वरूप बाहर के जगत का खोजने के द्वारा नही वरन बाहर की ओर निगाह घुमाकर यानी अपने भीतर की तरफ़ देखने से पाया जा सकता है। निगाह को अपने भीतर की तरफ़ ले जाने पर एक सूर्य का दर्शन होता है बिलकुल उसी तरीके से जैसे बाहर का सूर्य दिखाई देता है,इसी को आत्मप्रकाश कहा जाता है,जिन व्यक्तियों के अन्दर बालबुद्धि होती है वे बाहरी काम्य वस्तुओं की तरफ़ भागते है,इसी लिये वे मृत्यु से डरते भी है,लेकिन जो समझ गये होते है वे किसी प्रकार से भी बाह्य वस्तुओं की तरफ़ नही भागते है,इच्छा करना ही सबसे बडी बुराई है,इनकी संख्या को कोई भी आजतक गिन नही सका है। अनन्त की खोज अनन्त में ही की जाती है,हमारी अन्तर्वर्ती आत्मा ही एक मात्र अनन्त वस्तु है,शरीर मन आदि जो जगत्प्रपंच हमे देखते है,अथवा जो हमारी चिन्तायें या विचार है,उनमे से कोई भी अनन्त नही हो सकता है,जो देखने वाला गवाह देने वाला पुरुष इन सबको देख रहा है अर्थात मनुष्य की आत्मा जो सर्वदा जाग रही है,वही एक मात्र अनन्त है,इस जगत के अनन्त कारण की खोज में हमें उसी मेम जाना पडेगा। जो यहां है वही वहां भी है,जो वहां है वह ही यहां है,जो अलग अलग रूप देखते है वे ही बार बार मौत को देखते है,पहले के मनुष्यों को स्वर्ग में जाने की असीम इच्छा हुआ करती थी,लेकिन स्वर्ग का सुख भोगने के बाद भी नर्क में जाना तो पडेगा ही,फ़िर उनके अन्दर एक भावना जाग्रत हुयी कि जहां दुख और सुख नामकी चीज ना हो उसे वहां जाना चाहिये,जहां दुख नही होते है वह स्वर्ग के नाम से जाना जाता है,जहां सुख नही होता है वह नर्क के नाम से जाना जाता है और जहां दुख और सुख दोनो ही नही होते है वही मोक्ष का घर कहा जाता है। यह तो पता ही है कि किसी भी स्थान या व्यक्ति का नाश केवल काल गति पर ही निर्भर है,अक्सर समझा जाता है कि इस संसार में पूजे जाने वाले देवता कभी इस संसार में मनुष्य बन कर ही जिन्दा थे। अपने सत्कर्मों के प्रभाव से वे देवता बन गये,यह देवत्व अलग अलग पदों के नाम से जाना जाता है। वेदों में भी जो देवों के नाम है वे हमेशा के लिये रहने वाले या चिन्ता करने वाले नही है। जैसे समझा जाये कि देवताओं के राजा समझे जाने वाले इन्द्र और पानी के देवता वरुण किसी व्यक्ति के नाम नही है,यह नाम अलग अलग पदों के नाम है,जैसे जो पहले इन्द्र था बाद में उसका इन्द्रत्व वाला पद चला गया और दूसरा व्यक्ति इन्द्र की पदवी पर बैठ गया। सभी देवताओं और देवियों के बारे में इसी प्रकार से जानना चाहिये। जो लोग कर्म के बल पर इन पदों के अधिकारी हो गये है वे अपने समय पर इन पदों पर विराजमान होंगे,और जो विराजमान होंगे अपने समय पर विनाश की तरफ़ भी जायेंगे,यही कालगति का नाम है। अमरत्व कभी भी देशकाल से अतीत होने के कारण भौतिक वस्तु यानी जो वस्तु दिखाई दे रही है उसके लिये नही माना जा सकता है। इसका कारण है कि कोई भी वस्तु किसी ना किसी देश में तो पैदा हुयी ही है,बिना देश के किसी वस्तु के पैदा होने का कोई स्थान हो तो पता लगे कि अमरत्व उस देश में है। वस्तु का रूप है तो वह नाशवान है,यही अटल सत्य है। जो वस्तु पैदा हुयी है वह नाश होगी,जिसने जन्म लिया है वह मरेगा जरूर,वस्तु के रूप में देखा जाये तो पहाड धूल बनेगा,फ़िर धूल जमकर पहाड बन जायेगी। जन्म के साथ ही मौत भी पैदा होती है,जिस प्रकार से सूर्य के उदय होने के बाद वस्तु के एक भाग में उजाला होता है तो दूसरे भाग में अन्धेरा होता है वही अन्धेरा छाया भी कही जाती है,व्यक्ति के उजाले में चलने के समय जो छाया अनुसरण करती है वही मौत का रूप होती है,जीवन के साथ साथ मौत चला करती है। सुख को दुख के साथ जोडना भी एक कला है,अगर सुख है तो दुख उसके साथ जुडा है,आज अमीर है तो कल गरीब होगा,कल गरीब था तो आज अमीर भी होगा। किसी भी वस्तु की पहिचान अलग अलग करना हमारी मूर्खता में ही शामिल की जासकती है। संसार की कोई भी वस्तु आज सुखकर होती है तो कल दुखकर भी होगी,आज पुत्र का सुख सुख लगता है कल जब उसके अपने स्वभाव होंगे उसके अपने काम होंगे तो दुखकर लगने लगेंगे। होटल के अन्दर बैठ कर कहा जाता है कि आज चिकन का लेग पीस खाना है,चिकन खाना बहुत ही सुखकर लगता है,लेकिन अगर दूसरी तरफ़ घूम कर देखा जाये तो जिस चिकन का लेग पीस सामने है उसे काटते समय कितना दुख मिला होगा,आज किसी भी देश की भूमि को लेने के लिये दूसरा देश सेनाओं को लडा देता है तरह तरह के कूट नीति वाले काम करता है,उस कूटनीति के पीछे जितना सुख उस देश के वाशिन्दों को भूमि की प्राप्ति के समय मिलता है,उतना ही दुख जिस देश की  भूमि को लिया गया है और कूटनीति तथा मरने वाले सैनिकों को प्राप्त हुआ है उसकी गणना करली जाये तो हिस्सा बराबर बराबर का ही मिलेगा। मतलब यही कहा जा सकता है कि आज दुख है तो कल सुख है,और आज सुख है तो कल दुख जरूर है,सम भाव से देखने पर सुख दुख बराबर बराबर के हिस्सेदार है। आज संसार का बदलाव भौतिक रूप से हो रहा है,अगर यही बदलाव लगातार चलता रहेगा तो या जगत में दुख नाम का शब्द ही खत्म हो जायेगा,या फ़िर लोग सुख को स्वर्ग की तरह से माना करेंगे,लेकिन ऐसा नही हो सकता है,कारण सुख और दुख का आपसी सम्बन्ध है,और आगे भी रहेगा कितना ही प्रयास कर लिया जाये,शरीर को कृत्रिम तरीके से भी बना लिया जाये तो भी दुख तो रहेगा ही। जिस देश की वासनायें अधिक प्रबल हो जाती है उस देश में पागलों की संख्या में बढोत्तरी हो जाती है। जिन लोगों के पास जितनी अधिक भोग की वस्तुयें होती है उनके पास उतने ही दुख पैदा हो जाते है। कार है तो रखने की जगह चाहिये,रखने की जगह के लिये एक मकान की जरूरत होगी,मकान को बनाने के लिये जगह की जरूरत होगी,और कार के साथ वे वस्तुयें भी चाहिये जिनके साथ कार का प्रभाव होता है नही तो कार भी बेकार ही मानी जायेगी। कार को रखने वाले को हमेशा उसकी पेट्रोल की चिन्ता रहेगी,पहियों की हवा और उनके चलने का समय भी ज्ञात रखना पडेगा,कार के अन्दर की सुविधाओं का भी ख्याल रखना पडेगा। लेकिन जिनके पास कार नही है उन्हे भी कल्पना का दुख झेलना पडता है,कि उनके पास कार नही है,कार है तो उसे सम्भालने और रखरखाव का दुख है,दोनो के पास सुख भी है,वे कार से जल्दी से अपने लक्ष्य की तरफ़ पहुंच जाते है और उनके पास कार नही है तो वे देर से पहुंचते है। जब तक सबके मन में यह बात घर नही करेगी कि सुख के बराबर ही दुख है,दुख कोई बडी भारी आपदा नही है,वह केवल हमारे द्वारा ही पैदा की जाती है और नष्ट भी की जाती है। आशावादी बने रहने पर सब कुछ मिल जायेगा,आज नही तो कल,लेकिन निराशावादी बनने पर जो आज पास में है वह भी कल नही होगा।