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मन की स्थिति चन्द्रमा (बे-लगाम घोडा)

ज्योतिष के शास्त्र में रुचि लेने के बाद जो बहुत ही रोचक ग्रह सामने आया वह था चन्द्रमा। खुद तो रोशन है नही और दूसरे की रोशनी को लेकर भी अपने को चमकाने से डरता है,पन्द्रह दिन सीधा और पन्द्रह दिन टेढा। एक धरती के पीछे कितने ग्रह पडे है,पहले शनि पडा रहा,उसके बाद गुरु ने पीछा किया फ़िर मंगल की बारी आयी और अब चन्द्रमा इसके पीछे चक्कर लगाने के लिये मजबूर है,चन्द्रमा के बाद बारी शुक्र की आयेगी और उसके बाद बुध की,एक अनार सौ बीमार वाली कहावत धरती के पीछे पडी है। सूर्य का काम क्या है सुबह को निकला और शाम को अपने घर का रास्ता नाप लिया,धरती का आफ़िस रात को खाली रहता है,चन्द्रमा को मौका मिलता है और वह रात भर गुप चुप कर धरती का पीछा किया करता है। इस चन्द्रमा को जो उपाधियां ज्योतिष में मिली है उनके अनुसार यह मन का कारक है,और जब मन को उत्पन्न करने वाला चन्द्रमा खुद ही पन्द्रह दिन के लिये काली रातें दे सकता है तो धरती पर रहने वाली धरती की आत्माओं के मन कैसे होंगे। वह भी कभी उजाले के लिये सोचेंगे और कभी अन्धेरे में ही अपनी मौज करने के लिये आमने सामने होंगे। किसी के मन के माफ़िक काम होगा और किसी के मन के खिलाफ़ काम होगा,इस तरह से कैसे मन को संभाला जा सकता है। ऋषि मुनि सभी अपनी अपनी बातें करते है कि वे मन को संभालने के लिये प्रयास करते रहे,कुछ तो सफ़ल भी हो गये लेकिन कुछ सफ़ल होकर भी अपने असफ़ल करके चले गये। सारी जिन्दगी विश्वामित्र ने तपस्या की और मन के कारण अन्तिम अवस्था में रम्भा के मन लग गया। मन की लालसा कभी पूरी नही होती है,अभी तो अपने शरीर पर खुजलाने के अन्दर लगा है और कुछ देर बाद जैसे ही खुजली में राहत मिली सीधा चला गया कलकत्ता वाली मेमसाहब के पास,वहाँ से जरा सी फ़ुर्सत मिली चला गया सीधा हरिद्वार की हर की पैडी पर स्नान करने के स्थान पर फ़िर वहाँ से फ़ुर्सत नही मिल पायी कि घर की रसोई में आकर बैठ गया,यानी इस मन की रफ़्तार से कोई भी नही चल सकता है,कितनी जल्दी से अपनी रास्ता को बदल कर कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है इसका कोई पैमाना नही है।

चन्दा को मामा कहना बचपन से सीखा था,लेकिन जब तक समझ नही आयी तब तक चन्दामामा के नाम से ही जाना जाता रहा। लेकिन जब हकीकत की कहानी सामने आयी तो सोचने लगा कि बेकार में ही अम्मा के भाई की उपाधि देते रहे यह तो सीधा अम्मा की बात को बताता है। ज्योतिष के अन्दर जानकारी मिली कि चौथे भाव को जिसे सुख का भाव कहा जाता है,अम्मा की गोद कहा जाता है,जन्म लेने वाले स्थान को जाना जाता है,पहले पहल सीखी जाने भाषा के नाम से जाना जाता है,दूध पानी तालाब सभी की उपाधि के साथ चलाने वाले वाहन के रूप में चन्द्रमा को ही जाना जाता है। जब अम्मा का कारक है तो अम्मा को चन्दा कहना कोई गलत बात नही मामा शब्द में दो बार मा मा कहा जाता है और अम्मा के शब्द में एक बार ही मा कहा जाता है। अब मा से बडा मामा अपने आप ही हो जाता है।

पानी और मन की उपाधि चन्द्रमा के द्वारा ही बतायी जाती है। चन्द्रमा तो एक भाव को पार करने में सवा दो दिन का समय लेता है लेकिन मन तो चुटकी बजाते ही बारह के बारह भावों को तय करने के बाद सामने आकर खडा हो जाता है। पुराने जमाने में चन्द्रमा के क्षेत्र में घोडे का स्थान था,लेकिन आज के युग में जो हवाई जहाज है वह भी चन्द्रमा के क्षेत्र में आना चाहिये,लेकिन धरती पर चलने वाले वाहन तो चन्द्रमा के अन्दर आते है और पानी में चलने वाले वाहनों के लिये चन्द्रमा को नैऋत्य में देखा जाता है,पर हवा में चलने वाले वाहनों को देखने के लिये चन्द्रमा पर ग्रहण लगाकर राहु के साथ देखा जाता है। जब राहु की बात आती है तो कहीं कहीं पर बात भी सही लगती है। जितने भी हवाई यात्रा करने वाले होते है वे अपने मन में कहीं न कहीं तो यह मानकर ही चलते होंगे कि हवाई यात्रा में जरा सी टुक हुयी और वे राहु के ग्रहण काल में तो चले ही जायेंगे। जितने समय घर का सदस्य हवा में रहता है घर के लोग अपनी सांसों को राहु की ग्रहण स्थिति में ही रखते होंगे,खैर जो भी जब चन्द्रमा ही अमावस्या को नही दिखाई देता है और वक्र चन्द्रमा को राहु ग्रहण नही दे सकता है तो हमेशा एक जैसी स्थिति तो आती नही है।

इस संसार में मन के मालिक चन्द्रमा को लोगों ने अपने अपने सामाजिक धर्म के अनुसार अपना इष्टदेव भी बनाया है,हिन्दू ने उसे अपना गौरव दिया है और भगवान भोले नाथ के दाहिने तरफ़ भू: भाग पर प्रकाशित किया है,तो मुसलमान उसे अपने ईद के चांद के रूप में देखा है,ईशाई ने फ़ुलमून लाइट को सैलीबरेशन को बनाया है और अपने शादी विवाह के समारोह में वह अपनी जीवन संगिनी को और खुद को उसी के रंग में रंग कर पादरी के सामने जाने में जश्न का माहौल बनाता है,पारसी ने उसे अपने अन्तर्द्वंद के समय गवाह के रूप में माना है। लेकिन ज्योतिष की व्याख्या के अनुसार चन्द्रमा को माँ का दर्जा दिया गया है। वह धरती रूपी अपनी संतान को निगाह में रखती है,किसी भी प्रकार के सुख दुख को समझकर उसे समझाती है। पूर्णिमा के दिन वह उलासित होकर अपने आगोश में खीचने क लिये अधिक बल लगाती है और समुद्र के पानी के साथ जीवों के शरीर की अस्सी प्रतिशत पानी की मात्रा को अपनी तरफ़ आकर्षित करती है। मन का चन्द्रमा की तरफ़ आकर्षित होना बाजिब भी है,कारण चन्द्रमा के दिनों के अनुसार आज भी मुस्लिम सम्प्रदाय महीने की दिन की गिनती करता है,लेकिन हिन्दू समाज चन्द्रमा को करवा चौथ के दिन ही पहिचान पाता है। जबकि चन्द्रमा दोनो को ही समान भाव से अपनी तरफ़ आकर्षित करता है।