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चिपका है जो आसपास वह पंचेन्द्रिय युत जग सारा है,
उससे है आशक्ति जुडी यह ना मेरा और तुम्हारा है।
हम जीते है और कर्म भी करते सत्य द्रश्य को लेते मान,
मेरी ताकत मेरा कुल है यही अहम का है अभिमान॥
एक समय जब बोध जगेगा तब प्रश्न एक उर उपजेगा,
क्या जगत सत्य है सूर्य सत्य है भ्रम का बादल घेरेगा।
विषय भोग में मस्त रहा क्या झूठा है और क्या सच्चा है,
यौवन बूढा अन्त मर गया कर्म से जन्मा बच्चा है॥
कोई कहता मरने के बाद ना कोई धरा पर आता है,
लेकिन पेड के मरते ही क्या फ़ल का आस्तित्व मिट जाता।
क्या सागर से आया बादल जब पानी को बरसाता है,
वह पानी सिमट सिमट फ़िर सागर में ना जाता है॥
जो जन्मा है वह मरता भी है अटल सत्य है झूठ नही,
जव जीवन है तो मौत भी है तो फ़िर भ्रान्ति की बात नहीं।
हम इन्द्रियों की सीमा में बन्धे है इससे आगे ना जा पाते,
जो भेद जगत के और भी है वे हम से ना आकर मिल पाते॥
जिस तरह से बने खिलौना नया नया नाम एक बन जाता,
उसी तरह से जीवन आता अपने अपने नाम से रहजाता।
जो इमारत बनती है जीवन को स्थापित करने को,
वही इमारत गिर पडती है जीवन का भेद बदलने को॥
कोई दुखी ना रहना चाहे सुख की चाह सभी को है,
जबकि पता है कि बिना दुखी हो सुख नही मिल पाता है।
जल्दी से सुख मिल जाये जो पाना है वह आजाये,
प्राणी को व्यथा का रूप यही लम्बे काल तक भटकाता है॥
जब मिल जाता है सुख तो मानते है कि जगत सुखदायी है,
जैसे ही मिलने लगते घोर दुख कहते है जगत दुखदायी है॥
वही है अच्छा वही बुरा है वही है अपना वही पराया,
क्या कहते हो अपने मन से कोई अपने को समझ नही पाया॥
जो भूत भविष्य को समझ न पाये रखे विश्वास वर्तमान में,
क्या कल की वह सोच सकेगा पशु सद्रश्य अनुमान है वह।
एक व्यक्ति जब कह उठता है क्या माता और पिता यहाँ,
उसकी गति भी पशु सद्रश्य है पक्का है अन्दाज यहाँ॥
जो भूत को समझे वह वर्तमान को जिन्दा रख सकता है,
वर्तमान की श्रेणी ही भविष्य की तरफ़ ले जाती है॥
कल क्या था और आज क्या है कल का अनुमान बन जाता है,
जो कल किया था वह आज मय ब्याज के अपने आप मिल जाता है॥