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लगन मेष की होने पर और मंगल का मेष राशि में उपस्थित होने पर जब कोई ग्रह बुरा फ़ल देता है तो उसके बारे में इस प्रकार से जाना जाता है,मंगल के विरोधी ग्रह बुध शुक्र शनि माने जाते है,राहु और केतु भी मंगल को बुरा असर देते है। इसके अलावा कोई ग्रह त्रिक भाव में हो और उसके ऊपर भी कोई बुरा ग्रह असर दे रहा होता है तो वह भी अपना बुरा असर मंगल को देता है। जैसे ग्यारहवें भाव में गुरु स्थापित है,और गुरु को नवें भाव में विराजमान राहु देख रहा है,इसके साथ ही केतु जो तीसरे भाव में होगा वह भी गुरु को अपनी द्रिष्टि दे रहा होगा,इस प्रकार से मंगल गुरु के द्वारा ही बाधित होने लगेगा,ग्यारहवा भाव बडे भाई का है,सबसे पहले बडा भाई ही जातक के ऊपर असर देना शुरु करेगा,वह जातक को केतु का असर लेकर केवल साधन के रूप में प्रयोग करेगा,और उसके बाद जातक को राहु के गुरु पर असर होने के कारण जातक का बडा भाई तीन पुत्रों को पैदा करने के बाद जल्दी ही गुजर जायेगा,और जातक को तीन पुत्रों के साथ वही व्यवहार करना पडेगा,यानी पालन पोषण और शिक्षा से लेकर शादी सम्बन्ध उनको जीविका में लगाना,उनके लिये घर और बाहर की आफ़तों से लडना भी माना जा सकता है। नवां भाव का राहु बडे भाई को बालारिष्ट का प्रकोप देगा और किसी तरह के नवें भाव के कारण से बडे भाई को आफ़त आयेगी,अक्सर इन मामलों मे बडा भाई अपनी पत्नी यानी जातक की भाभी के पराक्रम से दुखी होगा,और वह उसके द्वारा किसी प्रकार के बनाये कारण से अपने को जोखिम में डाल लेगा,और उसका अन्त हो जायेगा। इन मामलों में उसकी भाभी द्वारा दिये गये भोजन के रूप में भी माना जा सकता है,वह किसी प्रकार से विषैला भोजन उसके बडे भाई को दे सकती है,अन्जाने में कोई दवा जो रियेक्सन वाली हो दे सकती है,परिणाम में उसकी मृत्यु निश्चित मानी जा सकती है। राहु का प्रभाव हवाई यात्रा और विदेश में जाने से भी है,बडा भाई किसी कारण से विदेश जाये और वहीं पर जाकर रुक जाये,उसका वापस आना ही नही हो सके,अथवा उसके ऊपर विदेशी संस्कृति का प्रभाव पडना शुरु हो जाये,और वह वहीं पर शादी करके बैठ जावे। मंगल पर गुरु का असर आने पर जातक का दिमाग भी घूम सकता है और वह अपने जीवन साथी के अलावा किसी अन्य की स्त्री या पुरुष की तरफ़ आकर्षित हो जाये और अपने जीवन को उसी के साथ बिताने का संकल्प ले ले,इस प्रकार से भी जातक का पूरा जीवन ही खतरे में जा सकता है। गुरु का असर मंगल पर जाने से जातक के सिर में हमेशा एक प्रकार का भूत भरा रहे कि वह किसी अनदेखी शक्ति का धारक है और वह जो कुछ भी करना चाहता है वह कर सकता है,उसे कोई रोकने वाला नही है। गुरु विद्या का कारक है जातक के अन्दर कमाने वाली विद्या का असर पैदा हो जाये और वह अपने पुराने संस्कारों को छोड कर विदेश से कमाने वाले कार्य करना शुरु कर दे,उन कार्यों के अन्दर कोई गलत कार्य होता हो,इस प्रकार से राहु जो जेल जाने का कारक है जातक को जेल भेज कर जातक की पुरानी सामाजिक स्थिति में ग्रहण भी लगा सकता है,जातक के शरीर से यह हिस्सा पुट्ठों का कारक है,जातक के अन्दर गुरु यानी वायु और राहु यानी कैमिकल वाली हवा का प्रवेश पुट्ठों में हो जाने से वह चलने फ़िरने के लिये परेशान होने लगे,उसके लिये एक एक पग चलना मुश्किल हो जाये। राहु का सीधा असर मंगल पर जाने से और मंगल का सिर के स्थान में रहने के कारण सिर के अन्दर खून का प्रवाह कभी तेज और कभी कम होने के कारण वह जातक की जीने वाली जिन्दगी में अपना असर देना शुरु कर दे,जातक को अक्समात क्रोध आना शुरु हो जाये,जातक का को पता नही चले कि वह क्या करने जा रहा है,और जब कोई काम खराब कर ले तो उसे बाद में सोचने के लिये बाध्य होना पडे,जातक का प्रभाव बडे अस्पताली संस्थानो से जुडा हो,उसे किसी भी बीमारी के लिये बडे अस्पतालों में जाना पडे,जातक का दाहिना हाथ अक्समात रह जाये,अर्धांग की बीमारी हो जाये,जातक के सिर में अचानक चोट लगे और जातक की दाहिनी बांह या कान में चोट लग जाये। इसके अलावा जातक की शिक्षा वाले स्थान में नियुक्ति हो जाये और जातक वहां पर कोई अनैतिक काम करना शुरु कर दे। जातक का सामाजिक जीवन केवल एक अन्जान जगह पर बसने का भी माना जा सकता है,राहु का नवें स्थान में जाने का कारण और गुरु यानी जीव का ग्यारहवे भाव में जाने से जातक का जीवन लाभ वाले कमाने के क्षेत्र में चला जाये और जातक कमाने के लिये किसी अन्जानी जगह पर उसी प्रकार से जाकर बस जाये जैसे कोई भगोडा जाकर बसता है। इसके अलावा जातक का परिवार ननिहाल खान्दान के समाप्त हो जाने या ननिहाल परिवार के कही और चले जाने के बाद ननिहाल में बसना पड जाये। यह तो सब था राहु के असर के द्वारा,इसके बाद अगर मंगल पर शनि अगर असर दे रहा हो तो शनि मंगल की युति में खोपडे का केंसर भी माना जा सकता है,खोपडे के खून के अन्दर खून का जमना भी माना जाता है,जिससे जातक मंद बुद्धि का भी हो सकता है,जातक की कुंडली में अगर शनि मंगल की युति लगन में हो जाती है तो जातक को कसाई का रूप प्रदान करता है जातक के अन्दर दया नामकी चीज नही होती है,वह किसी को भी किसी भी कारण के लिये काट सकता है,किसी को भी मार सकता है,किसी को भी अपाहिज कर सकता है,किसी के प्रति भी दुर्भावना बनी रह सकती है। केतु का प्रभाव होने के लिये वह दूसरों के आदेश का पालन करता होता है,वह किसी के कहने से किसी को भी मार सकता है,और अक्सर इस प्रकार के जातकों के अन्दर आदमी को हथियार के रूप में प्रयोग करने की पूरी योग्यता होती है वह जानता है कि कौन सा आदमी कौन से हथियार के रूप में काम आ सकता है। उसके अलावा उसे अन्य प्रकार की दवाइयों और शरीर को ठीक करने वाले कारणों का ज्ञान भी होता है।
सिर की शक्ति होता है लगन का मंगल
लग्न का मंगल एक तरह की स्टाम्प की तरह से होता है,जो कह दिया वह कह दिया,फ़िर बाद में कोई भी कुछ कहे,उससे लेना देना नही जो कह दिया है उसे ही करना है। अक्सर देखा गया है कि लगन के मंगल वाले के माथे में निशान जरूर बनता है। वह निशान चाहे किसी तिल या मस्से के रूप में हो या फ़िर किसी प्रकार की चोट के रूप में व्यक्ति की पहिचान बनाने के लिये लगन का मंगल निशान जरूर देता है। मंगल एक सेनापति की तरह अगर माना जाये तो लगन का मंगल पूरे शरीर के साथ अपने घर अपने जीवन साथी और अपने लिये भविष्य में आने वाले अपमान जानजोखिम के कारणों को जरूर कन्ट्रोल रखता है,लगन के मंगल का एक बहुत बडा अधिकार अपने दुश्मनो की तरफ़ जरूर होता है,वे पहले बडी आसानी से उन्हे सामने लाने की कोशिश करते है और बहुत ही मीठी और बहादुरी से उसकी रक्षा करते है,लेकिन जैसे ही वे समझते है कि अब उनके अलावा और कोई उस व्यक्ति का धनी धोरी नही है तो वह आराम से उसे हलाल करने में बहुत मजा लेते है। अक्सर देखा जाता है कि लगन के मंगल पर अगर किसी प्रकार से शनि की अष्टमेश के साथ युति बन जाये तो वह खिला खिलाकर मारने में विश्वास रखते है,उनके अन्दर जरा सी भी क्षोभ नही होता है कि जिसे वे सता रहे है,वह तडप रहा है वह अपनी जान से जा रहा है,लेकिन उनके लिये मात्र वह एक मनोरंजन का साधन होता है।मंगल के साथ केतु का आना भी एक तरह से आफ़त की पुडिया को बांधना होता है,जातक हिंसा मे इतना उतारू हो जाता है कि वह गिनने लगता है कि उसने इतनों को मारा है। मंगल अग्नि से सम्बन्धित है तो केतु हथियार से बन्दूक तोप मिशाइल यह सभी मंगल केतु के द्वारा ही समझी जाती है। हिंसक लोग अधिकतर मामलों में सिर की चोट देकर ही मारना पसंद करते हैं। लगन के मंगल को विस्फ़ोट वाली खोपडी कही जाये तो भी कोई अनापत्ति नही होगी। इस मंगल के रूप शरीर के अलावा अगर दूसरे स्थानों देखें तो अलग अलग रूप मिलते हैं। शनि-मंगल को साथ मिला लें तो वह काली पत्थर की मूर्ति बन जाती है,जिसपर लाल रंग का सिन्दूर चढा दिया तो वह देवता का रूप बन जाता है,केतु-शनि-मंगल की आपस की युति में वह लोहे का सरिया बन जाता है जो आग में गर्म होकर लाल रंग का रूप धारण कर लेता है,सूर्य-शनि-मंगल-केतु का योगात्मक रूप बन जाये तो वह शमशान में जलाने वाला बांस का रूप ले लेता है जिससे अन्तिम संस्कार के समय कपाल क्रिया करते है। बुध-मंगल-शनि को साथ में जोड लिया जाये तो वह कुम्हार के अवा में पकता हुआ घडा बन जाता है। बुध मंगल शनि के साथ अगर राहु का मेल हो जाता है तो वह महाकाली की मूर्ति बन जाती है,जिस पर जाने अन्जाने में बलि चढाई जाती है,और खून से इस पत्थर को लाल किया जाता है। कसाई खाने का पत्थर भी इसी श्रेणी में लाया जा सकता है। शनि-राहु-मंगल को अगर कार्य के रूप में देखा जाये तो वह कोयले से चलने वाली भट्टी में काम करता हुआ आदमी भी माना जा सकता है। शुक्र का प्रभाव अगर इन कारकों में जुड जाये तो स्थान के अनुसार वह काले लाल रंग के कपडे के रूप में भी माना जा सकता है।